1 . अपना रख , पराया चख : अपना बचाकर दूसरों का माल हड़प करना
2 . अपनी करनी पार उतरनी : स्वयं का परिश्रम ही काम आता है ।
3 . अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता : अकेला व्यक्ति शक्ति हीन होता है ।
4 . अधजल गगरी छलकत जाय : ओछा आदमी अधिक इतराता है ।
5 . अंधों में काना राजा : मूर्खों में कम ज्ञान वाला भी आदर पाता है ।
6 . अंधे के हाथ बटेर लगना : अयोग्य व्यक्ति को बिना परिश्रम संयोग से अच्छी वस्तु मिलना ।
7 . अंधा पीसे कुत्ता खाय : मूर्खों की मेहनत का लाभ अन्य उठाते हैं /असावधानी से अयोग्य को लाभ ।
8 . अब पछताये होत क्या , जब चिड़िया चुग गई खेत : अवसर निकल जाने पर पछताने से कोई लाभ नहीं ।
9 . अन्धे के आगे रोवै अपने नैना खोवै : निर्दय व्यक्ति या अयोग्य व्यक्ति से सहानुभूति की अपेक्षा करना व्यर्थ है ।
10 . अपनी गली में कुत्ता भी शेर बन जाता है । : अपने क्षेत्र में कमजोर भी बलवान होता है ।
11 . अन्धेर नगरी चौपट राजा : प्रशासन की अयोग्यता से सर्वत्र अराजकता आ जाना ।
12 . अन्धा क्या चाहे दो आँखें : बिना प्रयास वांछित वस्तु का मिल जाना ।
13 . अक्ल बड़ी या भैंस : शारीरिक बल से बुद्धिबल श्रेष्ठ होता है ।
14 . अपना हाथ जगन्नाथ : अपना काम अपने ही हाथों ठीक रहता है ।
15 . अपनी - अपनी डपली अपना - अपना राग : तालमेल का अभाव / सबका अलग - अलग मत होना /एकमत का अभाव ।
16 . अंधा बाँटे रेवड़ी फिर - फिर अपनों को देय : स्वार्थी व्यक्ति अधिकार पाकर अपने लोगों की सहायता करता है ।
17 . अंत भला तो सब भला : कार्य का अन्तिम चरण ही महत्त्वपूर्ण होता है ।
18 . आ बैल मुझे मार : जानबूझ कर मुसीबत में फंसना
19 . आम के आम गुठली के दाम : हर प्रकार का लाभ / एक काम से दो लाभ
20 . आँख का अंधा नाम नयन सुखः गुणों के विपरीत नाम होना ।
21 . आगे कुआँ पीछे खाई : दोनों / सब ओर से विपत्ति में फँसना
22 . आप भला जग भला : अपने अच्छे व्यवहार से सब जगह आदर मिलता है ।
23 . आये थे हरि भजन को ओटन लगे कपास : उद्देश्य से भटक जाना / श्रेष्ठ काम करने की बजाय तुच्छ कार्य करना / कार्य विशेष की उपेक्षा कर किसी अन्य कार्य में लग जाना ।
24 . आधा तीतर आधा बटेर : अनमेल मिश्रण / बेमेल चीजें जिनमें सामंजस्य का अभाव हो ।
25 . इन तिलों में तेल नहीं : किसी लाभ की आशा न होना ।
27 . आठ कनौजिए नौ चूल्हे : फूट होना ।
28 . उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे : अपना अपराध न मानना और पूछने वाले को ही दोषी ठहराना ।
29 . उल्टे बाँस बरेली को : विपरीत कार्य या आचरण करना
30 . ऊधो का न लेना , न माधो का देना : किसी से कोई मतलब न रखना / सबसे अलग ।
31 . ऊँची दुकान फीका पकवान : वास्तविकता से अधिक दिखावा / दिखावा ही दिखावा / केवल बाहरी दिखावा ।
32 . ऊँट के मुँह में जीरा : आवश्यकता की नगण्य पूर्ति
33 . ऊखली में सिर दिया तो मूसल का क्या डर : जब दृढ़ निश्चय कर लिया तो बाधाओं से क्या घबराना ।
34 . ऊँट किस करवट बैठता है : परिणाम में अनिश्चितता होना ।
35 . एक पंथ दो काज : एक काम से दोहरा लाभ / एक तरकीब से दो कार्य करना / एक साधन से दो कार्य करना ।
36 . एक अनार सौ बीमार : वस्तु कम , चाहने वाले अधिक एक स्थान के लिये सैकड़ों प्रत्याशी
37 . एक मछली सारा तालाब गंदा कर देती है : एक की बुराई से साथी भी बदनाम होते हैं ।
38 . एक म्यान में दो तलवारें नहीं समा सकती : दो प्रशासक एक ही जगह एक साथ शासन नहीं कर सकते ।
39 . एक हाथ से ताली नहीं बजती : लड़ाई का कारण दोनों पक्ष होते हैं ।
40 . एक तो करेला दूजे नीम चढ़ा । : बुरे से और अधिक बुरा होना / एक बुराई के साथ दूसरी बुराई का जुड़ जाना ।
41 . कागज की नाव नहीं चलती : बेइमानी से किसी कार्य में सफलता नहीं मिलती ।
42 . काला अक्षर भैंस बराबर : बिल्कुल निरक्षर होना ।
43 . कंगाली में आटा गीला : संकट पर संकट आना ।
44 . कोयले की दलाली में हाथ काले । : बुरे काम का परिणाम भी बुरा होता है / दुष्टों की संगति से कलंकित होते हैं ।
45 . का वर्षा जब कृषि सुखानी : अवसर बीत जाने पर साधन की प्राप्ति बेकार है ।
46 . कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा भानुमति ने कुनबा जोड़ा : अलग - अलग स्वभाव वालों को एक जगह एकत्र करना / इधर - उधर से सामग्री जुटा कर कोई निकृष्ट वस्तु का निर्माण करना ।
47 . कभी नाव गाड़ी पर कभी गाड़ी नाव पर : एक - दूसरे के काम आना परिस्थितियाँ बदलती रहती हैं ।
48 . काबुल में क्या गधे नहीं होते : मूर्ख सब जगह मिलते हैं ।
49 . कहने पर कुम्हार गधे पर नहीं चढ़ता : कहने से जिद्दी व्यक्ति काम नहीं करता ।
50 . कोउ नृप होउ हमें का हानि : अपने काम से मतलब रखना ।
51 . कौवा चला हंस की चाल भूल गया अपनी भी चाल : दूसरों के अनधिकार अनुकरण से अपने रीति रिवाज भूल जाना ।
52 . कभी घी घना तो कभी मुट्ठी चना : परिस्थितियाँ सदा एक सी नहीं रहतीं ।
53 . करले सो काम भजले सो राम : एक निष्ठ होकर कर्म और भक्ति करना
54 . काज परै कछ और काज सरै कछु और : दुनिया बड़ी स्वार्थी है काम निकाल कर मुँह फेर लेते हैं ।
55 . खोदा पहाड़ निकली चुहिया : अधिक परिश्रम से कम लाभ होना
56 . खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है । : स्पर्धावश काम करना / साथी को देखकर दूसरा साथी भी वैसा ही व्यवहार करता है ।
57 . खग जाने खग हीं की : मूर्ख व्यक्ति मूर्ख की बात भाषा समझता है ।
58 . खिसियानी बिल्ली खम्भा नोंचे : शक्तिशाली पर वश न चलने के कारण कमजोर पर क्रोध करना
59 . गागर में सागर भरना : थोड़े में बहुत कुछ कह देना
60 . गुरु तो गुड़ रहे चेले शक्कर हो गये : चेले का गुरु से अधिक ज्ञानवान होना
61 . गवाह चुस्त मुद्दई सुस्त : स्वयं की अपेक्षा दूसरों का उसके लिए अधिक प्रयत्नशील होना
62 . गुड़ खाए और गुलगुलों से परहेज : झूठा ढोंग रचना ।
63 . गाँव का जोगी जोगना , आन गाँव का सिद्ध : अपने स्थान पर सम्मान नहीं होता
64 . गरीब तेरे तीन नाम - झूठा ,पापी , बेईमान । : गरीब पर ही सदैव दोष मढ़े जाते हैं / निर्धनता सदैव अपमानित होती है ।
65 . गुड़ दिये मरे तो जहर क्यों दे : प्रेम से कार्य हो जाये तो फिर दण्ड क्यों ।
66 . गंगा गये गंगादास यमुना गये यमुनादास : अवसरवादी होना ।
67 . गोद में छोरा शहर में ढिंढोरा : पास की वस्तु को दूर खोजना
68 . गरजते बादल बरसते नहीं : कहने वाले ( शोर मचाने वाले ) कुछ करते नहीं
69 . गुरु कीजै जान , पानी पीवै छान : अच्छी तरह समझ बूझकर काम करना
70 . घर - घर मिट्टी के चूल्हे हैं : सबकी एक सी स्थिति का होना सभी समान रूप से खोखले हैं ।
71 . घोड़ा घास से दोस्ती करे तो क्या खाये ? : मजदूरी लेने में संकोच कैसा
72 . घर का भेदी लंका ढाहे : घरेलू शत्रु प्रबल होता है ।
73 . घर की मुर्गी दाल बराबर : अधिक परिचय से सम्मान कम / घरेलू साधनों का मूल्यहीन होना ।
74 . घर बैठे गंगा आना : बिना प्रयत्न के लाभ , सफलता मिलना
75 . घर में नहीं दाने बुढिया चली भुनाने : झूठा दिखावा करना
76 . घर आये नाग न पूजै , बाँबी पूजन जाय : अवसर का लाभ न उठाकर उसको खोज में जाना
77 . घर का जोगी जोगना ,आन गॉव का सिद्ध : विद्वान को अपने घर की अपेक्षा बाहर अधिक सन्मान / परिचित की अपेक्षा अपरिचित का विशेष आदर
78 . चमड़ी जाय पर दमड़ी न जाए : बहुत कजूस होना ।
79 चलती का नाम गाड़ी : काम का चलते रहना / बनी बात के सब साथ होते हैं
80 चंदन की चुटकी भली गाड़ी : अच्छी वस्तु तो थोड़ी भी भली ।
81 . चार दिन की चॉदनी फिर अंधेरी रात : सुख का समय थोड़ा ही होता है ।
82 चिकने घडे पर पानी नहीं ठहरता : निर्लज्ज पर किसी बात का असर नहीं होता ।
83 . चिराग तले अंधेरा : दूसरों को उपदेश देना स्वयं अज्ञान में रहना
84 चींटी के पर निकलना : बुरा समय आने से पूर्व बुद्धि का नष्ट होना
85 . चील के घोंसले में मॉस कहाँ ? :भूखे के घर भोजन मिलना असंभव होता है ।
86 . चुपड़ी और दो - दो : लाभ में लाभ होना
87 . चोरी का माल मोरी में : बुरी कमाई बुरे कार्यों में नष्ट होती है ।
88 . चोर की दाढ़ी में तिनका : अपराधी का सशंकित होना / अपराधी के कार्यों से दोष प्रकट हो जाता है ।
89 . चोर - चोर मौसेरे भाई : दुष्ट लोग प्रायः एक जैसे होते हैं एक से स्वभाव वाले लोगों में मित्रता होना
90 . छछुदर के सिर में चमेली का तेल : अयोग्य व्यक्ति के पास अच्छी वस्तु होना
91 . छोटे मुँह बड़ी बात : हैसियत से अधिक बातें करना
92 . जहाँ काम आवै सुई का करै तरवारि : छोटी वस्तु से जहाँ काम निकलता है यहाँ बड़ी वस्तु का उपयोग नहीं होता है ।
93 . जल में रहकर मगर से बैर : बड़े आश्रयदाता से दुश्मनी ठीक नहीं ।
94 . जब तक सॉस तब तक आस : जीवन पर्यन्त आशान्वित रहना ।
95 . जंगल में मोर नाचा किसने देखा : दूसरों के सामने उपस्थित होने पर ही गुणों की क़द्र होती है / गुणों का प्रदर्शन उपयुक्त स्थान पर
96 . जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी : मातृभूमि का महत्व स्वर्ग से भी बढ़कर है ।
97 . जहाँ मुर्गा नहीं बोलता वहाँ क्या सवेरा नहीं होता । : किसी के बिना कोई काम नहीं रुकता कोई अपरिहार्य नहीं है ।
98 . जहाँ न पहुँचे रवि वहाँ पहुँचे कवि : कवि दूर की बात सोचता है । / सीमातीत कल्पना करना |
99 . जाके पैर न फटी बिवाई , सो क्या जाने पीर पराई :जिसने कभी दुःख नहीं देखा वह दूसरों का दुख क्या अनुभव करे
100 . जाकी रही भावना जैसी , हरि मूरत देखी तिन तैसी : भावनानुकूल ( प्राप्ति का होना ) औरों को देखना
101 . जान बची और लाखों पाये : प्राण सबसे प्रिय होते हैं ।
102 . जाको राखे साइयाँ मारि सके न कोय : ईश्वर रक्षक हो तो फिर डर किसका , कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता ।
103 . जिस थाली में खाये उसी में छेद करना : विश्वासघात करना / भलाई करने वाले का ही बुरा करना / कृतघ्न होना |
104 . जिसकी लाठी उसकी भैंस : शक्तिशाली की विजय होती है ।
105 . जिन खोजा तिन पाइयों गहरे पानी पैठ : प्रयत्न करने वाले को सफलता / लाभ अवश्य मिलता है ।
106 . जो ताको कॉटा बुवै ताहि बोय तू फूल : अपना बुरा करने वालों के साथ भी भलाई का व्यवहार करो
107 . जादू वही जो सिर चढ़कर बोलेः उपाय वही अच्छा जो कारगर हो
108 . झटपट की घानी आधा तेल आधा पानी : जल्दबाजी का काम खराब ही होता है ।
109 . झूठ कहे सो लड्डू खाय साँच कहे सो मारा जाय : आजकल झूठे का बोल बाला है ।
110 . जैसी बहे बयार पीठ तब वैसी दीजै : समयानुसार कार्य करना ।
111 . टके का सौदा नौ टका विदाई : साधारण वस्तु हेतु खर्च अधिक
112 . टेड़ी उँगली किये बिना घी नहीं निकलता : सीधेपन से काम नहीं ( चलता ) निकलता ।
113 . टके की हाँडी गई पर कुत्ते की जात पहचान ली : थोड़ा नुकसान उठाकर धोखेबाज को पहचानना ।
114 . डूबते को तिनके का सहारा : संकट में थोड़ी सहायता भी लाभप्रद / पर्याप्त होती है ।
115 . ढाक के तीन पात : सदा एक सी स्थिति बने रहना
116 . ढोल में पोल : बड़े - बड़े भी अन्धेर करते हैं ।
117 . तीन लोक से मथुरा न्यारी : सबसे अलग विचार बनाये रखना
118 . तीर नहीं तो तुक्का ही सहीं : पूरा नहीं तो जो कुछ मिल जाये उसी में संतोष करना ।
119 . तू डाल - डाल मैं पात - पात : चालाक से चालाकी से पेश आना / एक से बढ़कर एक चालाक होना
120 . तेल देखो तेल की धार देखो : नया अनुभव करना धैर्य के साथ सोच समझ कर कार्य करो परिणाम की प्रतीक्षा करो ।
121 . तेली का तेल जले मशालची का दिल जले । : खर्च कोई करे बुरा किसी और को ही लगे ।
122 . तेते पाँव पसारिये जेती लाम्बी सौर : हैसियतानुसार खर्च करना / अपने सामर्थ्य के अनुसार ही कार्य करना
123 . तन पर नहीं लत्ता पान खाये अलबत्ता : अभावग्रस्त होने पर भी ठाठ से रहना / झूठा दिखावा करना ।
124 . तीन बुलाए तेरह आये : अनिमन्त्रित व्यक्ति का आना ।
125 . तीन कनौजिये तेरह चूल्हे : व्यर्थ की नुक्ताचीनी करना / ढोंग करना ।
126 . थोथा चना बाजे घना : गुणहीन व्यक्ति अधिक डींगें मारता है / आडम्बर करता है ।
127 . दूध का दूध पानी का पानी : सही सही न्याय करना ।
128 . दमडी की हॉडी भी ठोक बजाकर लेते हैं : छोटी चीज को भी देखभाल कर लेते हैं ।
129 . दान की बछिया के दाँत नहीं गिने जाते : मुफ्त की वस्तु के गुण नहीं देखे जाते ।
130 . दाल भात में मूसल चंद : किसी के कार्य में व्यर्थ में दखल देना ।
131 . दुविधा में दोनों गये माया मिली न राम : सदेह की स्थिति में कुछ भी हाथ नहीं लगना ।
132 . दूध का जला छाछ को फूंक फूंक कर पीता है : एक बार धोखा खाया व्यक्ति दुबारा सावधानी बरतता है ।
133 . दूर के ढोल सुहाने लगते हैं : दूरवर्ती वस्तुएँ अच्छी मालूम होती हैं दूर से ही वस्तु का अच्छा लगना पास आने पर वास्तविकता का पता लगना ।
134 . दैव दैव आलसी पुकारा : आलसी व्यक्ति भाग्यवादी होता है ।
135 . धोबी का कुत्ता घर का न घाट का : किधर का भी न रहना न इधर का न उधर का
136 . न नौ मन तेल होगा और न राधा नाचेगी : ऐसी अनहोनी शर्त रखना जो पूरी न हो सके / बहाने बनाना ।
137 . न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी : झगड़े को जड़ से ही नष्ट करना
138 . नक्कार खाने में तूती की अवाज : अराजकता में सुनवाई न होना बड़ों के समक्ष छोटों की कोई पूछ नहीं ।
139 . न सावन सूखा न भादों हरा : सदैव एक सी तंग हालत रहना
140 . नाच न जाने आँगन टेढ़ा : अपना दोष दूसरों पर मढ़ना / अपनी अयोग्यता को छिपाने हेतु दूसरों में दोष हूँढना ।
141 . नाम बड़े और दर्शन छोटे : बड़ों में बड़प्पन न होना गुण कम किन्तु प्रशंसा अधिक ।
142 . नीम हकीम खतरे जान , नीम मुल्ला खतरे ईमान : अध कचरे ज्ञान वाला अनुभवहीन व्यक्ति अधिक हानिकारक होता है ।
143 . नेकी और पूछ - पूछ : भलाई करने में भला पूछना क्या ?
144 . नेकी कर कुए में डाल : मलाई कर भूल जाना चाहिये ।
145 . नौ नगद , न तेरह उधार : भविष्य की बड़ी आशा से तत्काल का थोड़ा लाभ अच्छा / व्यापार में उधार की अपेक्षा नगद को महत्व देना ।
146 . नौ दिन चले अढ़ाई कोस : बहुत धीमी गति से कार्य का होना
147 . नौ सौ चूहे खाय बिल्ली हज को चली : बहुत पाप करके पश्चाताप करने का ढोंग करना ।
148 . पढ़े पर गुने नहीं : अनुभवहीन होना ।
149 . पढे फारसी वेचे तेल , देखो यह विधान का खेल : शिक्षित होते हुए भी दुर्भाग्य से निम्न कार्य करना ।
150 . पराधीन सपनेह सुख नाही : परतंत्र व्यक्ति कभी सुखी नहीं होता ।
151 . पॉचों उंगलियाँ बराबर नहीं होती : सभी समान नहीं हो सकते ।
152 . प्रभुता पाय काहि मद नाहीं : अधिकार प्राप्ति पर किसे गर्व नहीं होता ।
153 . पानी में रहकर मगर से वैर : शक्तिशाली आश्रयदाता से वैर करना ।
154 . प्यादे से फरजी भयो टेढो - टेढो जाय : छोटा आदमी बड़े पद पर पहुंचकर इतराकर चलता है ।
155 . फटा मन और फटा दूध फिर नहीं मिलता : एक बार मतभेद होने पर पुनः मेल नहीं हो सकता ।
156 . बारह बरस में घूरे के दिन भी फिरते हैं । : कभी न कभी सबका भाग्योदय होता हैं ।
157 . बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद : मुर्ख को गुण की परख न होना / अज्ञानी किसी के महत्त्व को आंक नहीं सकता ।
158 . बद अच्छा , बदनाम बुरा : कलंकित होना बुरा होने से भी बुरा है ।
159 . बकरे की माँ कब तक खैर मनायेगी : जब संकट आना ही है तो उससे कब तक बचा जा सकता है ।
169 . बावन तोले पाव रत्ती : बिल्कुल ठीक या सही सही होना |
160 . बाप न मारी मेंढकी बेटा तीरंदाजः बहुत अधिक बातूनी या गप्पी होना
161 . बॉबी में हाथ तू डाल मंत्र मैं पढूं : खतरे का कार्य दूसरों को सौंपकर स्वयं अलग रहना ।
162 . बाप बड़ा न भैया , सबसे बड़ा रुपया : आजकल पैसा ही सब कुछ है ।
163 . बिल्ली के भाग छींका टूटना : संयोग से किसी कार्य का अच्छा होना / अनायास अप्रत्याशित वस्तु की प्राप्ति होना ।
164 . बिन मगे मोती मिले मांगे मिले न भीख : भाग्य से स्वतः मिलता है इच्छा से नहीं ।
165 . बिना रोए माँ भी दूध नहीं पिलाती : प्रयत्न के बिना कोई कार्य नहीं होता ।
166 . बैठे से बेगार भली : खाली बैठे रहने से तो किसी का कुछ काम करना अच्छा ।
167 . बोया पेड़ बबूल का आम कहाँ से खाए : बुरे कर्म कर अच्छे फल की इच्छा करना व्यर्थ है ।
168 . भई गति साँप छछंदर जैसी : दुविधा में पड़ना । 169 . भूल गये राग रंग भूल गये छकड़ी तीन चीज याद रही नोन , तेल , लकड़ी : गृहस्थी के जंजाल में फंसना
170 . भूखे भजन न होय गोपाला : भूख लगने पर कुछ भी अच्छा नहीं लगता ।
171 . भागते भूत की लंगोट भली : हाथ पड़े सोई लेना जो बच जाए उसी से संतुष्टि / कुछ नहीं से जो कुछ भी मिल जाए वह अच्छा ।
172 . भैंस के आगे बीन बजाये भैंस खड़ी पगुराय : मूर्ख को उपदेश देना व्यर्थ है ।
173 . बिच्छू का मंत्र न जाने सॉप के बिल में हाथ डाले : योग्यता के अभाव में उलझनदार काम करने का बीड़ा उठा लेना ।
174 . मन चंगा तो कटौती में गंगा : मन पवित्र तो घर में तीर्थ है ।
175 . मरता क्या न करता : मुसीबत में गलत कार्य करने को भी तैयार होना पड़ता है ।
176 . मानो तो देव नहीं तो पत्थर : विश्वास फलदायक होता है ।
177 . मान न मान मैं तैरा मेहमान : जबरदस्ती गले पड़ना ।
178 . मार के आगे भूत भागता है : दण्ड से सभी भयभीत होते हैं ।
179 . मियाँ बीबी राजी तो क्या करेगा काजी ? : यदि आपस में प्रेम है तो तीसरा क्या कर सकता है ?
180 . मुख में राम बगल में छुरी : ऊपर से मित्रता अन्दर शत्रुता धोखेबाजी करना ।
181 . मेरी बिल्ली मुझ से ही म्याऊँ : आश्रयदाता का ही विरोध करना
182 . मेंढ़की को जुकाम होना : नीच आदमियों द्वारा नखरे करना ।
183 . मन के हारे हार है मन के जीते जीत : साहस बनाये रखना आवश्यक है / हतोत्साहित होने पर असफलता व उत्साहपूर्वक कार्य करने से जीत होती है ।
184 . यथा राजा तथा प्रजा : जैसा स्वामी वैसा सेवक
185 : यथा नाम तथा गुण : नाम के अनुसार गुण का होना ।
186 . यह मुँह और मसूर की दाल : योग्यता से अधिक पाने की इच्छाकरना
187 . मुफ्त का चंदन , घिस मेरे नंदनः मुफ्त में मिली वस्तु का दुरुपयोग करना ।
188 . रस्सी जल गई पर ऐंठ न गई : सर्वनाश होने पर भी घमण्ड बने रहना / टेक न छोड़ना ।
189 . रंग में भंग पड़ना : आनन्द में बाधा उत्पन्न होना ।
190 . राम नाम जपना , पराया माल अपना : मक्कारी करना ।
191 . रोग का घर खाँसी , इगड़े का घर हाँसी : हँसी मजाक झगड़े का कारण बन जाती हैं ।
192 . रोज कुआ खोदना रोज पानी पीना : प्रतिदिन कमाकर खाना रोज कमाना रोज खा जाना ।
193 . लकड़ी के बल बन्दरी नाचे : भयवश ही कार्य संभव है ।
194 . लम्बा टीका मधुरी बानी दगेबाजी की यही निशानी : पाखण्डी हमेशा दगाबाज होते हैं ।
195 . लातों के भूत बातों से नहीं मानते : नीच व्यक्ति दण्ड से / भय से कार्य करते हैं कहने से नहीं ।
196 . लोहे को लोहा ही काटता है : बुराई को बुराई से ही जीता जाता है ।
197 . वक्त पड़े जब जानिये को बैरी को मीत : विपत्ति / अवसर पर ही शत्रु व मित्र की पहचान होती है ।
198 . विधिकर लिखा को मेटनहारा : भाग्य को कोई बदल नहीं सकता ।
199 . विनाश काले विपरीत बुद्धि : विपत्ति आने पर बुद्धि भी नष्ट हो जाती है ।
200 . शबरी के बेर : प्रेममय तुच्छ भेंट
201 . शक्कर खोर को शक्कर मिल ही जाती हैं : जरूरतमंद को उसकी वस्तु सुलभ हो ही जाती है ।
202 . शुभस्य शीघ्रम : शुभ कार्य में शीघ्रता करनी चाहिए ।
203 . शठे शाठ्यं समाचरेत : दुष्ट के साथ दुष्टता का व्यवहार करना चाहिये ।
204 . सांच को आँच नहीं : सच्चा व्यक्ति कभी डरता नहीं ।
205 . सब धान बाईस पंसेरी : अविवेकी लोगों की दृष्टि में गुणी और मूर्ख सभी व्यक्ति बराबर होते हैं ।
206 . सब दिन होत न एक समान : जीवन में सुख - दुःख आते रहते हैं , क्योंकि समय परिवर्तनशील होता है ।
207 . सैइयाँ भये कोतवाल अब काहे का डर : अपनों के उच्चपद पर होने से बुरे कार्य बे हिचक करना ।
208 . समरथ को नहीं दोष गुसाईं : गलती होने पर भी सामर्थ्यवान को कोई कुछ नहीं कहता ।
209 . सावन सूखा न भादों हरा : सदैव एक सी स्थिति बने रहना ।
210 . साँप मर जाये और लाठी न टूटे : सुविधापूर्वक कार्य होना / बिना हानि के कार्य का बन जाना ।
211 . सावन के अंधे को हरा ही हरा सूझता है : अपने समान सभी को समझना ।
212 . सीधी अँगुली से घी नहीं निकलताः सीधेपन से कोई कार्य नहीं होता
213 सिर मुंडाते ही ओले पड़ना : कार्य प्रारम्भ करते ही बाधा उत्पन्न होना ।
214 सोने में सुगन्ध : अच्छे में और अच्छा ।
215 . सौ सुनार की एक लुहार की : सैंकड़ों छोटे उपायों से एक बड़ा उपाय अच्छा ।
216 सूप बोले तो बोले छलनी भी : दोषी का बोलना ठीक नहीं
217 . हथेली पर दही नहीं जमता : हर कार्य के होने में समय लगता है ।
218 . हथेली पर सरसों नहीं उगती : कार्य के अनुसार समय भी लगता है ।
219 . हल्दी लगे न फिटकरी रंग : आसानी से काम बन जाना / कम खर्च में अच्छा कार्य ।
220 . हाथ कंगन को आरसी क्या : प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता क्या ?
221 . हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के और : कपटपूर्ण व्यवहार / कहे कुछ करे कुछ / कथनी व करनी में अन्तर ।
222 . होनहार बिरवान के होत चीकने पात : महान व्यक्तियों के लक्षण बचपन में ही नजर आ जाते हैं ।
223 . हाथ सुमरिनी बगल कतरनी : कपटपूर्ण व्यवहार करना ।
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