गोलाईमापी का वर्णन यह यन्त्र पेंच के सिद्धांत पर कार्य करता है तथा पतली प्लेटों की मोटाई व गोलाकार तलों की वक्रता त्रिज्या ( Radius Of Curvature ) मापने के काम आता है ।
(a) गोलाईमापी |
इसमें धातु का एक त्रिभुजाकार फ्रेम F तीन टाँगों पर टिका होता है ( चित्र a ) इन टाँगों के नुकीले सिरे A,B,C एक ही तल में होते हैं तथा एक समबाहु त्रिभुज बनाते हैं । फ्रेम F के बीच में चूड़ीदार छिद्र होता है जिसमें से एक पेच गुजरता है जिसे घुण्डी H के द्वारा घुमाकर ऊपर - नीचे चलाया जा सकता है । इस पेंच की नोंक तीनों टाँगों की नोंकों से बने समबाहु त्रिभुज के केन्द्रक ( Centroid ) पर पड़ती है । फ्रेम की टाँग A पर एक उर्ध्वाधर पत्ती M लगी होती है जिस पर मिमी अथवा अर्द्धमिमी के चिन्ह अंकित होते हैं । इसे “ मुख्य पैमाना ” कहते हैं । इस पर शून्यांक प्रायः बीच में होता है । पेंच के ऊपरी सिरे पर एक गोल चकती S लगी होती है जिसकी परिधि 100 अथवा 50 बराबर भागों में बँटी रहती है । जब पेंच ऊपर - नीचे चलता है तो चकती मुख्य पैमाने M के सहारे ऊपर - नीचे खिसकती है ।
गोलीय पृष्ठ की वक्रता ( R )
(b) |
चित्र b उत्तल गोलीय पृष्ठ पर एक गोलाईमापी की स्थिति को प्रदर्शित करता है । D मध्य के पेच की नोंक है जबकि पृष्ठ पर स्थित दो टांगें A व B दिखाई दे रहीं हैं । E गोलाईमापी की तीन टांगों की नोकों द्वारा बने त्रिभुज का केन्द्रक हैं । गोल तल की वक्रता त्रिज्या R तथा DE = h उत्तल पृष्ठ के शीर्ष D की समतल सतह ABC से ऊँचाई है । वृत्त ADFG गोलीय पृष्ठ का एक वृहद वृत्त ( Major Circle ) है । जो स्फेरोमीटर की टांग A एवं पेच की नोक D से पारित तल द्वारा गोले की काट से बना है । DG इसका व्यास ( 2R ) है । चित्र की ज्यामिति से -
DE × EG × | = AE × EF |
या DE × (DG - DE) | = AE × EF |
= AE2 [AE = EF = l] | |
या h × (2R - h) | = l2 |
स्फेरोमीटर के तीनों टांगों की नोंक से समबाहु त्रिभुज ABC (चित्र) बनता है । दो स्थिर टांगों की नोकों के मध्य दूरी a हो तो
इसलिये गोलीय सतह की वक्रता त्रिज्या , उपकरण द्वारा a और h नापा जाता है , तथा सूत्र से वक्रता त्रिज्या की गणना की जाती है ।
चूड़ी अन्तराल
स्फैरोमीटर में वृत्ताकार चकती के द्वारा एक पूरा चक्कर लगाने में पेंच या चकती के द्वारा प्रधान पैमाने पर ऊपर या नीचे तय की गई दूरी स्फैरोमीटर का चूड़ी अन्तराल कहलाता है ।
वृत्ताकार पैमाने के एक चक्कर में पेंच 1 mm या 0.1 cm विस्थापित होता है । इसलिए स्फैरोमीटर में चूड़ी अन्तराल 1 mm या 0.1 cm होता है ।
सामान्यतः स्फैरोमीटर का अल्पतमांक 0.01 mm या 0.001 cm होता है ।
प्रश्न 1 . इस यन्त्र को गोलाईमापी क्यों कहते हैं ?
उत्तर - क्योंकि यह गोलाकार तलों की वक्रता – त्रिज्या नापने के काम आता है ।
प्रश्न 2 . गोलाईमापी का सिद्धांत क्या है ?
उत्तर - यह पेंच के सिद्धांत पर कार्य करता है ।
प्रश्न 3 . पेंच का सिद्धांत क्या है ?
उत्तर - पेंच को पूरा चक्कर घुमाने पर यह दो क्रमागत चूड़ियों के बीच की रेखीय दूरी तय करता है तथा यह दूरी प्रत्येक दो क्रमागत चूड़ियों के लिए नियत होती है । यही पेंच का सिद्धांत है ।
प्रश्न 4 . गोलाईमापी के पिच ( चूड़ी - अन्तराल ) का क्या अर्थ है ?
उत्तर – गोलाईमापी की चकती पूरा एक चक्कर घूमने में मुख्य पैमाने पर जितनी दूरी ऊपर अथवा नीचे तय करती है उसे चूड़ी - अन्तराल कहते हैं । यह पेंच की किन्हीं दो चूड़ियों के बीच की लम्बवत् दूरी के बराबर होता है ।
प्रश्न 5 . गोलाईमापी के अल्पतामांक से आप क्या समझते है ?
उत्तर - यह वह छोटी दूरी है जिसे इस यन्त्र से यथार्थतापूर्वक मापा जा सकता है । गोल चकती को केवल एक भाग समाने में पेंच जितना ऊपर या नीचे चलता है वह गोलाइमापी की अल्पतामांक है । इसका मान ज्ञात करने के लिए चूड़ी अन्तराल को चकती के कुल भागों की संख्या से भाग दे देते हैं ।
प्रश्न 6 . पिच्छट त्रुटि से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर - लगातार प्रयोग के कारण पेंच ढिबरी में ढीला हो जाता है जिससे पेंच को एक दिशा में घुमाते - घुमाते दूसरी दिशा में घुमाते हैं तो चकती तो घूमती हैं पर पेंच गति नहीं करता जिससे वृत्ताकार पैमाने का पाठ्यांक बदल जाता है । यही पिच्छट त्रुटि है ।
प्रश्न 7 . पिच्छट त्रुटि का निराकरण किस प्रकार किया जा सकता है ?
उत्तर - पेंच को सदैव एक ही दिशा में घुमाना चाहिये और यदि पीछे घुमाना पड़े तो थोड़ा अधिक आगे घुमाकर कुछ समय रुककर तब पीछे घुमाना चाहिये ।
प्रश्न 8 . एक अच्छे गोलाईमापी में क्या विशेषतायें होनी चाहिये ?
उत्तर – चूडियाँ एकसमान तथा बारीक कटी होनी चाहिये । पिच्छट – त्रुटि नहीं होनी चाहिये ।
प्रश्न 9 . गोलीय तल की वक्रता - त्रिज्या से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर – गोलीय तल जिस गोले का भाग है उसकी त्रिज्या को तल की वक्रता त्रिज्या कहते हैं ।
प्रश्न 10 . किसी वक्र - तल की वक्रता तथा वक्रता - त्रिज्या में क्या सम्बन्ध है ?
उत्तर – वक्रता त्रिज्या का व्युत्क्रम तल की वक्रता कहलाता है । यदि गोले की वक्रता त्रिज्या r है तो वक्रता 1/r होगी ।
प्रश्न 11 . किसी समतल की वक्रता - त्रिज्या कितनी होती है ? तथा वक्रता कितनी ?
उत्तर - वक्रता - त्रिज्या अनन्त तथा वक्रता शून्य होती है ।
प्रश्न 12 . क्या गोलाईमापी से पृथ्वी की वक्रता त्रिज्या माप सकते हैं ?
उत्तर नहीं , क्योंकि पृथ्वी की वक्रता - त्रिज्या इतनी अधिक है कि बड़े से बड़े गोलाई मापी के नीचे पृथ्वी की सतह समतल होगी तथा का मान शून्य होगा ।
प्रश्न 13 . वक्रता - त्रिज्या निकालने में आप किस सूत्र को उपयोग में लाते हैं ?
प्रश्न 14 . a तथा h में किसका मान अधिक यथार्थता से ज्ञात करना चाहिये ?
उत्तर - h का , क्योंकि यह छोटी राशि है ।
प्रश्न 15 . वे बड़े से बड़े तथा छोटे से छोटे गोले बताइये जिनकी वक्रता - त्रिज्यायें आप गोलाईमापी से नाप सकते हैं ?
उत्तर - बड़े से बड़ा गोला वह होगा जिस पर लिया गया h का पाठयांक गोलाईमापी के प्रधान पैमाने की परास के बराबर हो और छोटे से छोटा वह गोला होगा जिस पर गोलाईमापी की तीनों टाँगे सुगमता से रखी जा सके तथा h का मान गोलाईमापी के अल्पतमाक के समान हो ।
प्रश्न 16 , गोलाईमापी में तीन टाँगे क्यों होती हैं ?
उत्तर - क्योंकि किसी भी तल को कम से कम तीन बिन्दुओं द्वारा निर्धारित किया जा सकता है जो एक ही रेखा में न हों ।
प्रश्न 17 . क्या गोलाईमापी की टांगों के मध्य की दूरी समान होनी आवश्यक है ?
प्रश्न 18 . गोलाईमापी अन्य किन उपकरणों में काम आता है ?
उत्तर - यंग प्रत्यास्थता गुणांक एवं रेखीय प्रसार गुणांक के उपकरणों में , चश्में की पावर नापने वाले यन्त्र डायोप्टए - मीटर में खराद करने की मशीनों में ।
प्रश्न 10 . क्या गोलाईमापी से गोलीय दर्पण की फोकस - दूरी ज्ञात कर सकते हैं ?
उत्तर - हाँ , दर्पण की वक्रता - त्रिज्या Rज्ञात करके तथा सूत्र f = R / 2 गणना करके ।
प्रश्न 20 . क्या आप इससे किसी ठोस गोले के पदार्थ का घनत्व भी ज्ञात कर सकते हैं ?
उत्तर - हाँ , गोले की त्रिज्या r ज्ञात करके उसका आयतन सूत्र 4/3πr3 से ज्ञात कर लेंगे । फिर गोले को भौतिक तुला से तोलकर उसका द्रव्यमान ज्ञात करके , घनत्व ज्ञात कर सकते हैं ।