वायुमंडल व इसकी संरचना

Atmosphere

वायुमंडल का संघटन एवं संरचना

पृथ्वी के चारों ओर हजारों किमी . की ऊंचाई तक फैले हुए गैसीय आवरण को वायुमंडल कहा जाता है । वायुमंडल अनेक गैसों का मिश्रण है । ये गैसें निम्नलिखित हैं :

गैसे आयातन का प्रतिशत

  • नाइट्रोजन - 78.08
  • ऑक्सीजन 20.24
  • आर्गन - 0.93
  • कार्बन डाईऑक्साइड - 0.03
  • वायु में भार होता है एवं धरातल पर इसका जो दबाव पड़ता है उसे वायुदाब कहा जाता है । समुद्र तल पर वायुदाब 1013.25 mb . ( 14.7 पौंड प्रति वर्ग इंच ) होता है ।

    कार्बन डाईआक्साइड गैस पृथ्वी से होने वाले दीर्घ तरंग विकिरण को आंशिक रूप से सोखकर उसे गर्म रखती है ।

    ओजोन गैस पराबैंगनी किरणों से जीवों की रक्षा करती है ।

    वायुमंडल का 50 % भाग 5.6 कि . मी . की ऊंचाई तक सीमित है । वायुमंडल के निचले स्तर में भारी गैस ( कार्बन डाईआक्साइड 20 कि.मी. तक , ऑक्सीजन तथा नाइट्रोजन 100 कि . मी . तक ) पायी जाती है , जबकि अधिक ऊंचाई पर हाईड्रोजन , हीलियम , नियान , क्रिप्टन एवं जेनॉन जैसी हल्की गैसें पाई जाती है ।

    गैसों के अलावा वायुमंडल में जलवाष्प , धुंआ के कण , नमक के कण , धूल - कण भी विभिन्न अनुपात में पाये जाते है ।

    धूलकण सूर्य से आने वाली किरणो के प्रकीर्णन ( Scattering ) का भी कार्य करते हैं , जिसके कारण आकाश का रंग नीला दिखाई देता है ।

    वायुमंडल की संरचना

    वायुमंडल में वायु की अनेक संकेन्द्रीय परत है । जो घनत्व एवं तापमान की दृष्टि से एक - दूसरे से बिल्कुल भिन्न हैं । तापमान के उर्ध्वाधर वितरण के आधार पर वायुमंडल को निम्नलिखित परतों में विभाजित किया जाता है ।

    क्षोभमंडल - यह वायुमंडल की सबसे निचली एवं सघनतम परत है , जिसमें वायु के संपूर्ण भार का 75 % भाग पाया जाता है । संकेन्द्रित होने के कारण बादलों का निर्माण , तूफान , चक्रवात आदि की उत्पत्ति जैसी मौसम संबंधी घटनाएं इसी मंडल में होती हैं । इस स्तर में ऊंचाई के साथ तापमान में कमी आती है । तापमान में यह गिरावट की दर 1°C प्रति 165 मीटर या 3 .6°F / 1000 फीट या 6 . 5°C / km की है । इसे सामान्य ताप ह्यस दर ( Normal Lapse Rate ) कहा जाता है ।

    समतांप मंडल - क्षोभ सीमा के ऊपर समताप मंडल स्थित है । इसकी । ऊंचाई धरातल से 50 कि.मी. तक है । यहां सूर्य की पैराबैंगनी किरणों का अवशोषण करने वाली ओजोन गैस मौजूद होती है । क्लोरो फ्लोरो कार्बन ( CFC ) हैलोन जैसी हैलोजनेटेड गैसों के कारण इस मंडल का काफी नुकसान हुआ है । समताप मंडल में बादलों का अभाव होता है । तथा धूल के कण एवं जलवाष्प भी नाममात्र के ही पाये जाते हैं ।

    मध्य मंडल - समताप मंडल के ऊपर स्थित होता है एवं 50 कि.मी . से 80 कि.मी . की ऊंचाई से लेकर 400 कि.मी . की ऊंचाई के बीच फैला हुआ है ।

    आयन मंडल - इसे तापमंडल भी कहा जाता है । इस मंडल का फैलाव 80 कि . मी . से लेकर 400 कि . मी . की ऊंचाई तक है । इस मंडल में तापमान तेजी से बढ़ता है एवं इसकी ऊपरी सीमा पर यह बढ़कर 1000°C हो जाता है । पृथ्वी से प्रेषित रेडियों तरंगे इसी मंडल से परावर्तित होकर पुन : पृथ्वी पर वापस लौट आती है । इस मंडल की हवा विद्युत आवेशित होती है अतः इस मण्डल में वायु के कण विद्युत विर्सजन के कारण चमकने लगते हैं ।

    सूर्यातप - सौर मंडल में सूर्य ही ऊर्जा अथवा उष्मा का प्रधान स्रोत है । सूर्य तल का औसत तापमान 5700°C ( 6000°K ) है । सूर्य के केन्द्रीय भाग का अनुमानित तापमान लगभग 1. 5 - 2 .0 करोड़ डिग्री केल्विन है । इस प्रकार सूर्य दहकता हुआ गैसीय पिण्ड है जिससे निरंतर चारों ओर अपरिमित ऊर्जा का विकिरण होता रहता है ।

    वायुदाब

    प्रति इकाई क्षेत्रफल पर वायु के स्तंभ के भार का वायुदाब कहा जाता है । सागर तल पर वायुदाब अधिकतम होता है । वायुदाब को मिलीबार ( mb ) में मापा जाता है । यद्यपि वायुदाब परिवर्तनशील होता है फिर भी समुद्र तल पर औसत वायुदाब 20 . 92 इंच या 76 सेंटीमीटर पारे ( Mercury ) के समतुल्य या 1013 . 2 मिलीबार माना जाता है । वायुमंडल में जलवाष्प की मात्रा बढ़ने पर वायुदाब में कमीं आ जाती है । किसी स्थान पर सारा दिन एक समान वायुदाब नहीं रहता है । किसी स्थान पर वायुदाब दो बार बढ़ता है एवं दो बार घटता है ।

    पवन

    पृथ्वी के धरातल पर वायुदाब की विषमताओं के कारण हवा उच्च वायुदाब से निम्न वायु दाब की ओर प्रवाहित होती है । क्षैतिज रूप से गतिशील हवा को ही पवन कहा जाता है । पृथ्वी के घूर्णन के कारण अपकेन्द्रीय बल की उत्पत्ति होती है एवं पवन की दिशा फेरेल नियम ( Ferrel ' s law ) , द्वारा निर्धारित होती है ।

    वर्षा का वितरण

    संसार में औसत वार्षिक वर्षा मात्र 97 से . मी . होती है । भूमध्य रेखा के दोनों ओर 5° अक्षांश तक काफी अधिक वर्षा होती है । वैसे स्थानीय तूफान या झंझावत , जिनमें ऊपर की ओर तीव्र हवाएं चलती हैं तथा बिजली की चमक एवं बादलों की गरज के साथ घनघोर वर्षा होती है एवं कभी - कभी इतनी तेज वर्षा होती है कि ऐसा प्रतीत होता है मानो मेघ ही फट पडे हो । इस प्रकार की वर्षा को वर्षा प्रस्फोट - ( Cloud Burst ) कहा जाता है ।

    चक्रवात

    जब वायुदाब में अंतर पड़ने के कारण केन्द्र में निम्न दाब का निर्माण हो जाता हैं एवं उसके चारों ओर उच्च दाब रहता है तो वायु चक्राकार प्रतिरूप बनाने उच्च दाब से निम्न दाब केन्द्र की ओर तेजी से चलने लगती है , इसे ही चक्रवात कहा जाता है । चक्रवात में वायु के चलने कि दिशा उत्तरी गोलार्द्ध में घड़ी की सुइयों के विपरीत ( Anticlockwise ) एवं दक्षिणी गोलार्द्ध में घड़ी की सुइयों की दिशा में ( Clockwise ) होती हैं ।


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