सरल आवर्त गति ( Simple Harmonic Motion )
जब कोई कण निश्चित समय में निश्चित मार्ग पर बार - बार गति करता है तो उसकी गति आवर्त गति कहलाती है । जब कोई कण एक सीधी रेखा में एक निश्चित बिन्दु के इधर - उधर इस प्रकार गति करता है कि उसका त्वरण विस्थापन के समानुपाती हो तथा त्वरण की दिशा सदैव निश्चित बिन्दु की तरफ रहती हो तो इस प्रकार की गति सरल अवर्त गति कहलाती हैं ।
सरल आवर्त गति की निम्न विशेषतायें हैं -
( i ) वस्तु एक सरल रेखा में माध्य स्थिति के दोनों ओर समान दूरी तक दोलन करती है ।
( ii ) गति आवर्तकालीन होती है अर्थात् गति करने वाली वस्तु अपने मार्ग के किसी बिन्दु से एक निश्चित समय के उपरान्त गुजरती है ।
( iii ) विस्थापित वस्तु सदैव माध्य स्थिति की ओर संकेत करती है अर्थात् वस्तु पर कार्य करने वाले त्वरण ( अथवा प्रत्यानयन बल ) की दिशा विस्थापन के विपरीत अर्थात् माध्य स्थिति की ओर रहती है । बल F ∝ -x
( iv ) गतिमान वस्तु की प्रत्येक स्थिति में त्वरण माध्य स्थिति से विस्थापन के अनुक्रमानुपाती होता है । त्वरण a ∝ -x
आदर्श सरल लोलक ( Ideal Simple Pendulum )
किसी पदार्थ के अत्यन्त भारी बिन्दुत्व कण को एक भारहीन पूर्णतयाः प्रत्यास्थ , अवितान्य ( Inextensible ) धागे के एक सिरे से बाँधकर किसी दृढ़ आधार से लटकाने पर समायोजन आदर्श सरल लोलक कहलाता है ।
व्यवहार में इस प्रकार का समायोजन सम्भव नहीं हैं ।
गुरुत्वीय त्वरण ( Acceleration Due To Gravity)
जब किसी पिण्ड को ऊपर की तरफ फेंकते हैं । तो वह कुछ ऊंचाई तक ऊपर जाकर फिर नीचे गिरने लगता है । नीचे गिरते समय उसका वेग प्रति सेकण्ड बढता जाता है । एक सेकण्ड में उसके वेग में जितनी वृद्धि होती है उसको गुरुत्वीय त्वरण कहते हैं तथा g से प्रदर्शित करते हैं । M.K.S. प्रणाली में g का मान 9.81 मी . प्रति सेकण्ड2 होता है ।
प्रयोगशाला में सरल लोलक
प्रयोगशाला में धातु के किसी ठोस गोले को एक हल्के व पतले धागे से बांधकर किसी दृढ आधार से लटका देते हैं । यही व्यावहारिक सरल लोलक है जो कि आदर्श लोलक के गुणों के निकटतम है । सरल लोलक में प्रयोग में आने वाले धातु के गोले को गोलक कहते हैं और निलंबन बिन्दु (Point Of Suspension ) से गोलक के गुरुत्व केन्द्र तक की दरी को सरल लोलक की प्रभावकारी लम्बाई कहते हैं । लोलक को दोलन कराने पर उसके पूरे एक कम्पन में लगे समय को आवर्त काल कहते हैं और एक सेकण्ड में होने वाले दोलनों की संख्या को आवृत्ति कहते हैं ।
सरल लोलक की गति
दोलन करते हुये गोलक की मध्य स्थिति A [चित्र 1 ] पर वेग अधिकतम होता है अर्थात् जब लोलक माध्य स्थिति A पर होता हैं उस समय उसमें केवल गतिज ऊर्जा होती है । जब वह दोलन करता हुआ B पर पहुंचता है तो उस समय गोलक की सम्पूर्ण गतिज ऊर्जा स्थितिज ऊर्जा ( Potential Energy ) में बदल जाती है वेग शुन्य हो जाता है वह फिर वापस लौटता है माध्य स्थिति A में फिर स्थितिज ऊर्जा गतिज ऊर्जा में बदल जाती है । इस गतिज ऊर्जा के कारण गोलक दूसरी तरफ C तक पहुँच जाता है और गोलक एक क्षण के लिए बिन्दु C पर रुककर फिर स्थाई सन्तुलन के लिये मध्य स्थिति की तरफ चलने लगता है । इस प्रकार गोलक अपनी माध्य स्थिति A के दोनों तरफ उस समय तक गति करता रहता है जब तक कि उसकी सम्पूर्ण ऊर्जा का वायु घर्षण के विरूद्ध कार्य करने में क्षय नहीं हो जाता ।
चित्र - 1 |
सरल लोलक का आवर्तकाल
सरल लोलक के गोले को इसकी माध्य स्थिति A से थोड़ा खींचकर छोड़ा जाए तो यह सरल आवर्त गति करने लगता है ।
यदि गोले का द्रव्यमान m है तो इसका भार mg ऊर्ध्वाधर नीचे की ओर कार्य करता है । यदि किसी क्षण दोलन करता हुआ गोलक B स्थिति में है तथा धागा मध्य स्थिति से θ कोण बनाता है तो यहां भार mg के दो घटक Mgcosθ एवं Mgsinθ होंगे । जिनमें से Mgcosθ डोरी में तनाव बराबर होता है तथा MgSinθ माध्य स्थिति की ओर कार्यरत एवं प्रत्यानयन बल का कार्य करेगा ।
चित्र - 2 |
इस प्रकार गोलक पर प्रत्यानयन बल F = -mgSinθ
ऋण चिन्ह इसलिये कि प्रत्यानयन बल F , विस्थापन x के विपरीत दिशा में है ।
यदि कोण θ छोटा हो तब Sinθ ≈ θ
चूँकि g तथा l एक स्थान पर स्थिर हैं ।
∴ त्वरण ∝ विस्थापन ( x )
इस कारण गोलक की गति सरल आवर्त गति होती है ।
यही सरल लोलक के दोलन का सूत्र है ।