पदार्थ ( Matter ): प्रत्येक ऐसी वस्तु जो स्थान घेरती है तथा जिसमें भार होता है , पदार्थ कहलाती है ; जैसे - जल , लोहा , लकड़ी , वायु , दूध , आदि क्योंकि इनमें से प्रत्येक वस्तु स्थान घेरती है ( अर्थात् उसका कुछ आयतन होत है ) तथा उसमें भार होता है । पदार्थ चार अवस्थाओं में पाया जाता है : ठोस , द्रव , गैस तथा प्लाज्मा ।
आर्किमीडीज का सिद्धांत ( Principle of Archimedes ) : जब कोई वस्तु किसी द्रव में पूरी अथवा आंशिक रूप से डुबोई जाती है तो उसके भार में कमी का आभास होता है । भार में यह आभासी कमी वस्तु द्वारा हटाए गए द्रव के भार के बराबर होती हैं इसे ‘ आर्किमीडीज का सिद्धान्त ’ कहते हैं । इसके अनुप्रयोग निम्न प्रकार हैं -
❍ लोहे की बनी छोटी - सी गेंद पानी में डूब जाती है तथा बड़ा जहाज तैरता रहता है क्योंकि जहाज द्वारा विस्थापित किए गए जल का भार उसके भार के बराबर होता है ।
❍ हवा की अपेक्षा पानी में वस्तु को उठाना आसान होता है , क्योंकि पानी में वस्तु का भार कम होता है ।
❍ हाइड्रोजन से भरे गुब्बारे हवा में उड़ते हैं , क्योंकि हाइड्रोजन का भार इसके द्वारा विस्थापित वायु के भार से कम होता है ।
❍ लोहे का घनत्व जल के घनत्व से अधिक तथा पारे के घनत्व से कम होता है इसलिए लोहे का टुकड़ा पानी में डूब जाता है लेकिन पारे में तैरता रहता है ।
❍ किसी बर्तन में पानी भरा है और उस पर बर्फ तैर रही है , जब बर्फ पूरी तरह पिघल जाएगी , तो पात्र में पानी का तल बढ़ता नहीं है , पहले के समान ही रहता है ।
❍ जब बर्फ पानी में तैरती है , तो उसके आयतन का 1/10 भाग पानी के ऊपर रहता है ।
❍ समुद्र के जल का घनत्व साधारण जल से अधिक होता है , इसलिए समुद्री जल में तैरना आसान होता है ।
समान परिस्थितियों में किसी द्रव का घनत्व उसके वाष्प के घनत्व से 103 कोटि ( Order ) अधिक होता है ।
घनत्व ( Density ) : वस्तु के द्रव्यमान तथा आयतन के अनुपात को वस्तु का घनत्व कहते हैं ।
द्रव्य का घनत्व = द्रव्य का द्रव्यमान / द्रव्य का आयतन
इसका SI मात्रक किलोग्राम मीटर -3 होता है ।
पृष्ठ तनाव ( Surface Tension ) : द्रव का स्वतंत्र पृष्ठ ( surface ) सदैव तनाव की स्थिति में रहता है तथा उसमें कम से कम क्षेत्रफल प्राप्त करने की प्रवत्ति होती है । द्रव के पृष्ठ का यह तनाव की पृष्ठ तनाव कहलाता है । पृष्ठ तनाव का मात्रक न्यूटन/ मी या जूल/मी.2 होता है ।
❍ द्रव का ताप बढ़ाने पर पृष्ठ तनाव कम हो जाता है और क्रान्तिक ताप पर यह शून्य हो जाता है ।
( T = F/ΔA )
❍ साबुन के घोल के बुलबुले , घोल के पृष्ठ तनाव कम होने के कारण बड़े बनते हैं ।
❍ पतली सुई पृष्ठ तनाव के कारण ही पानी पर तैराई जा सकती है ।
❍ पृष्ठ तनाव के कारण ही द्रव की बूंदें गोलाकार होती हैं ।
❍ पानी में मिट्टी का तेल डालने पर पानी का पृष्ठ तनाव कम हो जाता है , जिसके कारण पानी की सतह पर तैरते मच्छर के अण्डे आदि डूब जाते हैं और मच्छरों की वृद्धि रुक जाती है ।
❍ नदी से समुद्र में पहुँचने पर जहाज थोड़ा ऊपर उठ जाता है क्योंकि समुद्र में उपस्थित नमक के कारण इसकी सघनता अधिक होती है ।
❍ गर्म सूप स्वादिष्ट लगता है क्योंकि गर्म द्रव का पृष्ठ तनाव कम होता है , अत : वह जीभ के ऊपर सभी भागों में अच्छी तरह फैल जाता है ।
❍ साफ जल का पृष्ठ तनाव , साबुन के घोल के पृष्ठ तनाव से अधिक होता है । साबुन के घोल को जल में मिलाकर जल के पृष्ठ तनाव को कम किया जा सकता है ।
❍ एक ही पदार्थ के अणुओं के मध्य लगने वाले आकर्षण बल को ससंजक बल कहते हैं जबकि विभिन्न पदार्थों के अणुओं के बीच के आकर्षण बल को आसंजक बल कहते हैं । आसंजक बल के कारण ही जल किसी वस्तु को भिगोता है , पारा काँच से नहीं चिपकता आदि ।
केशिकत्व ( Capilarity ) : जब दोनों सिरों पर खुली एक केशलनी को पानी डुबोया जाता है तो पानी केशलनी में कुछ ऊँचाई तक चढ़ जाता है इसके विपरीत जब केशनली को पारे में डुबोया जाता है तो कुछ पार नली में नीचे दब जाता है । केशनली में द्रव के ऊपर चढ़ने या उतरने की घटना को केशिकत्व कहते है । किसी सीमा तक द्रव केरानली में चढ़ता या उतरता है , यह केशनली की त्रिज्या पर निर्भर करता है ।
❍ ब्लॉटिंग पेपर स्याही को शीघ्र सोख लेता है क्योंकि इसमें बने छोटे - छोटे छिद्र केशनली की तरह कार्य करते हैं ।
❍ लालटेन या लैम्प की बत्ती में केशिका के कारण ही तेल ऊपर चढ़ता है ।
प्लवन का नियम ( Law of Floatation ) : जब कोई वस्तु आंशिक अथवा पूर्ण रूप से किसी द्रव में डुबोई जाती है तो उसके भार में कमी आ जाती है । यह कमी वस्तु पर द्रव के उत्प्लावन बल के कारण होती है । उत्क्षेप ऊपर की ओर कार्य करता हैं साथ ही वस्तु का भार नीचे की ओर कार्य करता है । अत : जब कोई वस्तु किसी द्रव में डुबोई जाती है तो उस पर 2 बल कार्य करते हैं :
( i ) वस्तु का भार W नीचे की ओर । ( ii ) द्रव का उछाल W1 ऊपर की ओर ।
श्यानता ( Viscosity ) : किसी द्रव या गैस की दो क्रमागत परतों के बीच उनकी आपेक्षिक गति का विरोध करने वाले घर्षण बल को श्यान बल ( viscous force ) कहते हैं । तरल का वह गुण जिसके कारण तरल की विभिन्न परतों के मध्य आपेक्षिक गति का विरोध होता है , श्यानता कहलाता है ।
प्रत्यास्थता ( Elasticity ) : प्रत्यास्थता पदार्थ का वह गुण है जिसके कारण वस्तु , उस पर लगाए गए बाह्य बल से उत्पन्न किसी भी प्रकार के परिवर्तन का विरोध करती है तथा जैसे ही बल हटा लिया जाता है , वह अपनी पूर्व अवस्था में वापस आ जाती है ।
❍ पूर्ण प्रत्यास्थ : कोई पिण्ड जो बाह्य बल हटा लेने पर अपने आरम्भिक रूप को प्राप्त कर लेता है , पूर्ण प्रत्यास्थ कहलाता है ।
❍ पूर्ण सुघट्य : जो पिण्ड बल हटा लेने के बाद भी अपने विकृत रूप में ही रहते हैं , पूर्ण सुघट्य कहलाते हैं ।
हुक का नियम ( Hooke's Law ) : “ प्रत्यास्थता की सीमा में किसी वस्तु में उत्पन्न विकृति उस पर लगाए गए प्रतिबल के अनुक्रमानुपाती होती है । ”
किसी दी हुई वस्तु के पदार्थ के लिए प्रतिबल तथा विकृति का अनुपात एक नियतांक होता है । इसे प्रत्यास्थता गुणांक E कहते हैं ।