कार्य , ऊर्जा एवं शक्ति : भौतिक विज्ञान रेलवे एवं अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए

Work,Energy and Power For Railway Exams PDF

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कार्य ( Work ): किसी वस्तु पर बल लगाकर बल की दिशा में विस्थापन को कार्य कहते हैं अर्थात्
कार्य = बल × विस्थापन या W = F.s
SI पद्धति में कार्य का मात्रक जूल है ।

धनात्मक कार्य जब वस्तु में विस्थापन , बल की दिशा में होता है , तो वस्तु पर किया गया कार्य धनात्मक होता है ; जैसे -

( a ) जब कोई वस्तु स्वतन्त्र रूप से गुरुत्व के अधीन गिरती है ।
( b ) जब घोड़ा समतल सड़क पर गाड़ी को खींचता है ।

ऋणात्मक कार्य जब वस्तु में विस्थापन बल की दिशा के विपरीत होता है तो किया गया कार्य ऋणात्मक होता है ; जैसे -

( a ) घर्षण बल द्वारा किया गया कार्य , ऋणात्मक होता है , क्योंकि विस्थापन घर्षण बल की दिशा के विपरीत होता है ।
( b ) जब एक धनावेशित कण दूसरे धनावेशित कण की ओर जाता है ।

शून्य कार्य जब वस्तु में विस्थापन बल की दिशा के लम्बवत् होता है , तो किया गया कार्य शून्य होता है ; जैसे -

( a ) जब एक कुली सिर पर बोझा लिए समतल प्लेटफॉर्म पर चलता है ।
( b ) जब वस्तु वृत्त पर एक पूरा चक्कर लगाती है ।
( c ) जब एक व्यक्ति अधिक बोझ लिए हुए अपने स्थान से विस्थापित नहीं होता ।

ऊर्जा ( Energy ) : किसी वस्तु में कार्य करने की क्षमता को उस वस्तु की ऊर्जा कहते हैं । ऊर्जा एक अदिश राशि है । इसका SI मात्रक जूल( Joule ) है । वस्तु में जिस कारण से कार्य करने की क्षमता आ जाती है , उसे ऊर्जा कहते हैं ।

ऊर्जा दो प्रकार की होती है - गतिज ऊर्जा एवं स्थितिज ऊर्जा ।

1 . गतिज ऊर्जा ( Kinetic Energy ) : किसी वस्तु की गति के कारण उसमें जो ऊर्जा होती है , उसे गतिज ऊर्जा कहते हैं । यदि m द्रव्यमान की वस्तु v वेग से चल रही हो , तो उस वस्तु की गतिज ऊर्जा

K =
1 / 2
mv2

इसके प्रमुख अनुप्रयोग निम्न हैं -

वायु की गतिज ऊर्जा पवन - चक्की को चलाने के काम में आती है ।

पानी की गतिज ऊर्जा जल - चक्की को चलाने के काम में आती है ।

गतिज ऊर्जा के कारण ही बन्दूक की गोली लक्ष्य में धंस जाती है ।

2 . स्थितिज ऊर्जा ( Potential Energy ) : किसी वस्तु की स्थिति के कारण उसमें जो ऊर्जा होती है , उसे स्थितिज ऊर्जा कहते हैं । यदि m द्रव्यमान की वस्तु पृथ्वी तल से h ऊँचाई पर स्थित हो , तो वस्तु की स्थितिज ऊर्जा
U = mgh

इसके प्रमुख अनुप्रयोग निम्न हैं

लिपटे हुए स्प्रिंग की स्थितिज ऊर्जा घड़ी चलाने के लिए प्रयुक्त की जाती है ।

तने हुए धनुष की स्थितिज ऊर्जा के कारण ही बाण आगे की दिशा में जाता है ।

बाँध में स्थित पानी की स्थितिज ऊर्जा का प्रयोग विद्युत ऊर्जा का उत्पादन करने में किया जाता है ।

ऊर्जा संरक्षण का सिद्धान्त ( Principle of Conservation of Energy ) : ऊर्जा को न तो उत्पन्न किया जा सकता है और न ही नष्ट किया जा सकता है परन्तु केवल एक प्रकार की ऊर्जा को दूसरे प्रकार की ऊर्जा में परिवर्तित किया जा सकता है । इस ब्रह्माण्ड ( Universe ) की कुल ऊर्जा नियत है ।

द्रव्यमान - ऊर्जा तुल्यता ( Mass - Energy Equivalence ) : सन् 1905 में आइन्स्टीन ने द्रव्यमान तथा ऊर्जा के मध्य एक सम्बन्ध स्थापित किया । आइन्स्टीन का द्रव्यमान ऊर्जा समीकरण कहा जाता है ।
E = mc2 ( जहाँ , c प्रकाश का वेग है )
E = mc2 में द्रव्यमान संरक्षण तथा ऊर्जा संरक्षण का एकीकरण हो जाता है ।

ऊर्जा का रूपान्तरण

सौर सेल ➜प्रकाश ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में
डायनेमो➜ यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में
विद्युत मोटर➜ विद्युत ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में
माइक्रोफोन ➜ ध्वनि ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में
लाउडस्पीकर ➜ विद्युत ऊर्जा को ध्वनि ऊर्जा में
सितार ➜ यांत्रिक ऊर्जा को ध्वनि ऊर्जा में
बल्ब / टयूब - लाइट / हीटर का जलना ➜ विद्युत ऊर्जा को प्रकाश एवं ऊष्मा ऊर्जा में
मोमबत्ती का जलना ➜ रासायनिक ऊर्जा को प्रकाश एवं ऊष्मा ऊर्जा में
कोयले का जलना ➜ रासायनिक ऊर्जा को ऊष्मा ऊर्जा में
इंजन ➜ ऊष्मा ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में
विद्युत् सेल ➜ रासायनिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में
प्रकाश विद्युत ➜ सेल प्रकाश ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में
सोलर सेल ➜सौर ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में
विद्युत हीटर ➜ विद्युत ऊर्जा को ऊष्मीय ऊर्जा में

शक्ति ( Power ) : कार्य करने की दर को शक्ति कहते हैं । यदि t समय में किया गया कार्य W हो , तो शक्ति

P =
W / t

SI पद्धति में शक्ति का मात्रक जूल / सेकण्ड अथवा वाट है ।
1 वाट = 1 जूल / सेकण्ड = 1 न्यूटन मीटर / सेकण्ड

मशीनों की शक्ति को अश्व शक्ति ( Horse Power - H . P ) में भी व्यक्त किया जाता है ।
1 H.P. = 746 वाट

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