आवृतबीजी व पादपों में जनन ( Reproduction In Angiosperms )
आवृतबीजी पादपों में मुख्यपीढी बीजाणुद्भिद ( 2n ) होती है । पादप शरीर जड़ तने व पर्ण में विभेदित होता है ।
युग्मकोद्भिद पीढी ( n ) अल्प जीवी , अत्यन्त हवासित होती हैं तथा बीजाणुभिद् पीढी पर ही विकसित होती है । युग्मकोंद्भिद पीढी का स्वतन्त्र अस्तित्व नही होता है ।
आवृत बीजी पादपों में दो प्रकार का जनन पाया जाता हैं ।
- अलैंगिक जनन
- लैंगिक जनन
अलैंगिक जनन में अर्धसूत्री विभाजन एवं युग्मक संलयन नहीं होता हैं । इस जनन द्वारा पौधे अपने समान आकार एव आनुवांशिकी लक्षणों वाली संतति उत्पन्न करते हैं इस प्रकार के जनन में पादप के कायिक भागो ( जड़ तना व पर्ण एवं कलिका ) से नये पौधों का निर्माण होता है ।
अलैंगिक जनन दो प्रकार का होता है -
- अनिषेक बीजता
- कायिक जनन
अनिषेक बीजता एक असामान्य प्रकार का जनन है जिसमें अर्धसूत्री विभाजन व युग्मक संलयन के बिना ही भ्रुण / बीज से नये पादपों का निर्माण होता है
कायिक जनन में पौधों के कायिक भागों यथा मूल , स्तम्भ व पर्ण से नये पादपों का निर्माण होता है ।
कायिक जनन पौधों में प्राकृतिक रूप से निर्मित संरचना द्वारा तथा मानव निर्मित विधियों कशा कर्तन , रोपण व स्तरण द्वारा कराया जाता
आवृतबीजी पौधों में लैंगिक जनन से सम्बन्धित सभी संरचनाये पुष्प में बनती है ।
नर जननांग से सम्बन्धित संरचना पुमंग तथा मादा जननांग से सम्बन्धित संरचना जायांग होती हैं ।
बाह्य दल पुंज व दलपुंग सहायक चक्र कहलाती हैं ।
अनिषेकबीजता द्वारा अलैंगिक जनन - इसमें प्रवर्धन तो बीज द्वारा होता है लेकिन इन बीजों ( भ्रूणों ) का विकास बिना अर्धसूत्रण व युग्मक संलयन के होता है ।
कायिक जनन - जब पादप का पुनरुद्भवन बीज के अतिरिक्त पादप के अन्य किसी कायिक भाग से होता है तो इसे कायिक जनन कहते हैं ।
प्रवर्ध ( Propagule ) - पादप के वे भाग जो कायिक जनन में काम आते हैं उन्हें प्रवर्ध कहते हैं ।
कायिक जनन दो प्रकार का होता है -
तने द्वारा कायिक प्रवर्धन के उदाहरण - अदरक ( प्रकंद ) , आलू ( कन्द ) , ( शल्ककन्द ) लहसुन , अरबी ( धनकन्द ) , स्ट्राबैरी ( भूस्तारी ) , घास ( ऊपरीभूस्तारी ) , पोदीना ( अन्त : भूस्तारी )
कन्दीय जड़ों द्वारा कायिक प्रवर्धन के उदाहरण - शकरकन्द , डेहलिया एवं एस्पेरेगस आदि ।
पत्थरचट्टा ( ब्रायोफिल्लम ) में कायिक जनन पत्तियों द्वारा ( पत्तियों के किनारों से निकलने वाली अपस्थानिक कलिकाओं ) द्वारा होता है ।
जननांगों द्वारा ( या पत्रप्रकलिकाओं द्वारा ) कायिक प्रवर्धन के उदाहरण - रामबांस ( Agave ) , रतालू ( Dioscorea ) ।
कृत्रिम कायिक प्रवर्धन की प्रमुख विधियों के नाम - 1 . कर्तन 2 . दाब लगाना 3 . रोपण ।
स्तम्भ कर्तन द्वारा कायिक प्रवर्धन गन्ना , अंगूर , गुलाब , बोनेनविलिया आदि पादपों में उपयोगी रहता है ।
टीला दाब विधि में तने की झुकी हुई शाखा को जमीन से दबाते समय उस शाखा का शीर्ष भाग जमीन से ऊपर रखना चाहिए व एक या अधिक पर्व संधिया जमीन में दब जानी चाहिए । उदा . मोगरा , चमेली ।
गुट्टी - कृत्रिम कायिक जनन की वायुदाब ( या गुट्टी लगाना ) विधि में वृक्ष की मोटी शाखा के स्वस्थ भाग के चारों ओर छाल को वलय के रूप में हटा कर देते हैं व इस भाग को मॉस , गीली रूई या गीली मिट्टी ढ़क देते हैं । ढके हुए इसी भाग को गुट्टी कहते हैं ।
कलम - कृत्रिम कायिक जनन की रोपण विधि में अच्छी किस्म के पादप का वह भाग जिसका रोपण किया जाता है , उसे ही कलम ( Scion ) कहते हैं ।
स्कन्द - कृत्रिक कायिक जनन की रोपण विधि में निम्न गुण वाला वह स्थानीय पादप जिस पर कलम लगाई जाती है अर्थात् जो नये पादप का आधार बनता है उसे ही स्कन्द ( Stock ) कहते हैं ।
रोपण विधि द्वारा कायिक प्रवर्धन गुलाब , आम , सेब , नीम्बू व अमरूद आदि पादपों में उपयोगी रहता है ।
ह्वीप या जीभी या जिह्वारोपण विधि में स्कन्द में ' V ' आकृति का चीरा लगाय जाता है ।
कलिका रोपण विधि में स्कन्द की छाल में ' T ' आकृति का चीरा लगाते हैं ।
आवृत्तबीजी पादपों में लैंगिक जनन पुष्प द्वारा होता है ।
पुष्पासन - पुष्प वृन्त का शीर्ष चौड़ा व फूला हुआ भाग पुष्पासन नाम से जाना जाता है ।
अपूर्ण पुष्प - जब पुष्प के चारों चक्रों ( बाह्यदलपुंज , दलपुंज , पुमंग व जायांग ) में से किसी एक भी अनुपस्थिति हो तो ऐसे पुष्प को अपूर्ण पुष्प कहते हैं । उदाहरण - लौकी व पपीता आदि ।
पुंकेसर - पुमंग की एक इकाई या सदस्य को पुंकेसर नाम से जाना जाता है ।