सल्तनतकालीन एवं मुगलकालीन इतिहास के प्रमुख ऐतिहासिक स्रोत

सल्तनतकालीन एवं   मुगलकालीन इतिहास के प्रमुख ऐतिहासिक स्रोत

प्राचीन भारतीय इतिहास के विषय में वैज्ञानिक तथा क्रमबद्ध सामग्री का चयन करना एक समस्या रही है । इसका मूल कारण प्रामाणिक ऐतिहासिक ग्रन्थों का अभाव है । परन्तु मध्यकाल में इस समस्या का पर्याप्त हल हो जाता है क्योंकि प्राचीन काल की अपेक्षा इस युग में अनेक ऐतिहासिक ग्रन्थों की रचना हुई । मध्यकाल ( 1200 ई . से 1700 ई ) के इतिहास को जानने के प्रमुख स्रोतों के रूप में मुस्लिम इतिहासकारों के ऐतिहासिक अभिलेख , यात्रा - विवरण , सुल्तानों तथा बादशाहों की आत्मकथाएँ आदि प्रमुख हैं । इनके अतिरिक्ति तत्कालीन सिक्कों तथा पुरातत्व सामग्री के माध्यम से भी मध्यकालीन इतिहास की जानकारी प्राप्त होती है ।

मध्यकालीन इतिहास के स्रोतों को निम्नलिखित भागों में विभाजित किया जा सकता है -

  • ( 1 ) ऐतिहासिक ग्रन्थ
  • ( 2 ) साहित्यिक ग्रन्थ
  • ( 3 ) यात्रा विवरण
  • ( 4 ) अमीर खुसरो के ग्रन्थ
  • ( 5 ) अभिलेख , मुद्राएँ तथा स्मारक
  • ( 6 ) पत्र - व्यवहार

( 1 ) ऐतिहासिक ग्रन्थ

मध्यकाल में अनेक ऐतिहासिक ग्रन्थ लिखे गये । इन ग्रन्थों की सहायता से हमें मध्यकाल की राजनीतिक दशा का पर्याप्त ज्ञान होने के साथ - साथ सामाजिक तथा सांस्कृतिक दशा का भी पर्याप्त ज्ञान हो जाता है ।

( अ ) सल्तनतकालीन ऐतिहासिक ग्रन्थ

इन ग्रन्थों की रचना समकालीन इतिहासकारों ने फारसी भाषा में की थी । इस काल के प्रमुख ऐतिहासिक ग्रन्थ निम्नलिखित हैं -

( 1 ) चचनामा

इस ग्रंथ से अरबों की सिन्ध विजय के बारे में जानकारी मिलती है । मूल रूप से यह अरबी में है और फारसी भाषा में इसका अनुवाद मुहम्मद अली कूफी द्वारा किया गया था । इसमें मुहम्मद बिन कासिम से पूर्व और बाद का संक्षेप में सिन्ध का इतिहास लिखा है । इसे ‘ तारीख - ए - हिन्द - सिन्ध ’ के नाम से भी जाना जाता है ।

( 2 ) तारीखे - सिन्ध ( तारीखे - मासूमी )

इस ग्रंथ की रचना पीर मुहम्मद द्वारा की गई थी । इससे मुहम्मद बिन कासिम के अरब आक्रमण से लेकर अकबर के शासनकाल तक सिन्ध के इतिहास की जानकारी प्राप्त होती है । इस ग्रंथ की रचना 1600 ई . के लगभग की गई थी ।

( 3 ) तारीखे - यामिनी

इस ग्रंथ की रचना अबु नस्त्र मुहम्मद इब्न मुहम्मद अली - उतबी ने की थी जो सुल्तान महमूद का सचिव रह चुका था । उसने सुबुक्तगीन के सम्पूर्ण शासनकाल तथा महमूद गजनवी के शासन का कुछ वृत्तान्त लिखा है । ऐतिहासिक ग्रंथ की अपेक्षा यह साहित्यिक कृति अधिक प्रतीत होता है । इसमें विस्तृत विवरण की कमी है । तिथियाँ भी अल्प मात्रा में हैं । फिर भी महमूद के प्रारम्भिक जीवन व घटनाओं के बारे में इससे काफी जानकारी प्राप्त होती है ।

( 4 ) तारीखे - मसूदी

इसकी रचना अबुल हसन मुहम्मद बिन हुसैन अल बहरी ने की थी । इसमें महमूद गजनवी तथा मसूह का इतिहास लिखा है । समकालीन दरबारी जीवन तथा दरबारियों के कुचक्रों के बारे में इस ग्रंथ से अच्छी जानकारी प्राप्त होती है ।

( 5 ) तारीखे - उल - हिन्द

इस ग्रन्थ की रचना अबूरिहान मुहम्मद बिन अहमद अलबरूनी ने की थी जो अरबी और फारसी का विद्वान होने के साथ - साथ गणित , चिकित्सा , हेतुविद्या , दर्शन और धर्मशास्त्रों का ज्ञाता था । यह ग्रंथ मूल रूप से अरबी में है । बाद में इसका फारसी भाषा में अनुवाद भी हआ था । इस ग्रंथ से महमूद गजनवी के आक्रमण से पूर्व भारत की स्थिति के बारे में काफी जानकारी प्राप्त होती है । अलबरूनी की मृत्यु 1038 - 39 ई . में हुई ।

( 6 ) ताज - उल - मासिर

इसकी रचना सदरउद्दीन हसन निजामी ने की थी । इस ग्रंथ से 1229 ई . तक के बारे में जानकारी प्राप्त होती है । इससे मुहम्मद गौरी के आक्रमण के अलावा , भारत की स्थिति , ऐबक के कार्यों तथा इल्तुतमिश के शासन के आरम्भिक वर्षों की जानकारी प्राप्त होती है । अजमेर नगर की समृद्धि तथा तत्कालीन राजनीतिक स्थिति के बारे में भी इससे अच्छी जानकारी प्राप्त होती है । इस ग्रंथ का महत्त्व इसलिए भी है कि इसी के काल में भारत में इस्लामी सत्ता की स्थापना हुई थी ।

( 7 ) तबकाते - नासिरी

इसकी रचना काजी मिनहाज - उस - सिराज ने की थी । यद्यपि इस ग्रंथ से 1258 ई . तक की घटनाओं की जानकारी प्राप्त होती है परन्तु हमारे लिए इससे सुल्तान इल्तुतमिश से लेकर नासिरुद्दीन तक के शासनकाल का विवरण विशेष महत्त्व का है , जिसका विवरण लेखक ने स्वयं अपनी जानकारी के आधार पर लिखा है । ए.एल. श्रीवास्तव के अनुसार उसका विवरण निष्पक्ष नहीं है । मुहम्मद गौरी और इल्तुतमिश के वंश के सम्बन्ध में उसका दृष्टिकोण पक्षपात पर आधारित है । वह बलबन का भी बड़ा प्रशंसक था । इतना होने पर भी दिल्ली सल्तनत की आरम्भिक जानकारी इससे प्रामाणिक रूप से प्राप्त होती है । इसमें घटनाओं का क्रमबद्ध रूप से विवरण मिलता है । तिथियाँ व अन्य तथ्य इतिहास के अधिक निकट कहे जा सकते हैं ।

( 8 ) खजाइन - उल - फुतुह ( तारीखे - अलाई )

इसकी रचना अमीर खुसरो द्वारा की गई थी जो जलालुद्दीन खिलजी से लेकर मुहम्मद - बिन - तुगलक तक सभी का समकालीन रहा था । उसने कई ग्रंथों की रचना की थी । तारीखे - अलाई की रचना 1311 ई . में की गई थी । इससे अलाउद्दीन खिलजी की विजयों के अलावा उसके आर्थिक सुधार और बाजार नियंत्रण की अच्छी जानकारी मिलती है । परन्तु खुसरो ने उन घटनाओं का विवरण नहीं दिया है जो उसके संरक्षक के विरुद्ध थीं , जैसे - जलालुद्दीन की हत्या । कहीं - कहीं उसने अलंकृत फारसी का प्रयोग किया है । कहीं - कहीं हिन्दी शब्दों का प्रयोग भी किया गया है ।
खुसरो की काव्य रचनाओं में भी ऐतिहासिक सामग्री प्राप्त होती है । ' तुहफतूह रिगार ' से बलबन के बारे में , ' वस्तुल हयात ' से निजामुद्दीन औलिया , मलिक छज्जू इत्यादि के बारे में , ' गुरात - उल - कमाल ' से निजामुद्दीन औलिया , कैकूबाद के बारे में , ' देवलरानी ' से खिज्र खाँ और देवलदेवी के बारे में जानकारी मिलती है ।

( 9 ) तारीखे - फिरोजशाही

इसकी रचना जियाउद्दीन बरनी ने की थी जो अपने युग का प्रतिभाशाली इतिहासकार था । यह ग्रंथ बलबन के राज्यारोहण से लेकर फिरोज तुगलक क शासन के छठे वर्ष तक के बारे में जानकारी देता है । बरनी को अनेक महापुरुषों और राजनेताओं से सम्पर्क का मौका मिला । अलाउद्दीन के शासन को उसने अपनी आँखों से देखा था तथा महम्मद तुगलक के दरबार में उसे 17 वर्षों तक रहने का मौका मिला था । उसने अपना ग्रंथ फिरोज तुगलक को समर्पित किया था । ' फतवा - ए - जहाँदारी ' में बरनी ने कुछ महत्त्वपूर्ण उपदेश दिए हैं , जो राज्य व्यवस्था से सम्बन्धित हैं । आदर्श शासन के बारे में उसने लिखा है ।

( 10 ) तारीखे - फिरोजशाही

इस ग्रंथ की रचना शम्स - ए - सिराज अफीफ द्वारा की गई थी । उसने अपने इस ग्रंथ की सामग्री अपने पिता और तत्कालीन उच्च अधिकारियों से प्राप्त की थी । इस ग्रंथ में फिरोज तुगलक के शासन की राजनीतिक घटनाओं , शासन सम्बन्धी सुधारों तथा सुल्तान के नेक कार्यों का विवरण दिया गया है । ईश्वरी प्रसाद के शब्दों में , “ अफीफ में बरनी जैसी न तो बौद्धिक उपलब्धि है और न इतिहासकार की योग्यता एवं सूझबूझ तथा दृष्टि । अफीफ एक - एक घटनाओं को तिथिक्रम से लिखने वाला सामान्य इतिहासकार है । "

( 11 ) फुतूहात - फीरोजशाही

इसकी रचना स्वयं फिरोजशाह तुगलक ने की थी । इससे फिरोज के कार्यों , आदेशों , विचारों और शासन के बारे में जानकारी प्राप्त होती है । कुछ विद्वानों के अनुसार यह ग्रंथ फिरोज के आदेशों का संग्रह मात्र है ।

( 12 ) सीरत - ए - फिरोजशाही

इसके लेखक का नाम अज्ञात है । इस ग्रंथ में फिरोज के गुणों का विस्तार से उल्लेख किया गया है तथा उसकी धार्मिक नीति और मूर्तिपूजा के नाश की नीति की मुक्त कंठ से प्रशंसा की गई है । इसमें उसके द्वारा निर्मित नहरों तथा प्रशासकीय सुधारों की भी जानकारी दी गई है । इस ग्रंथ की रचना 1370 ई . के लगभग की गई है । हो सकता है कि यह सुल्तान के आदेश से लिखी गई रचना हो ।

( 13 ) फतह - उस - सलातीन

इस ग्रंथ की रचना ख्वाजा अबू बक इसामी ने की थी जो मुहम्मद तुगलक का समकालीन था । इस ग्रंथ की रचना 1349 ई . के आसपास की गई थी । इससे महमूद गजनवी से लेकर सुल्तान अलाउद्दीन बहरामशाह तक के शासन के बारे में जानकारी प्राप्त होती है । यह ग्रंथ इसामी ने काफी छानबीन के बाद लिखा था । इसीलिए लेखन कार्य में काफी विलम्ब भी हुआ था । कुछ विद्वान मुहम्मद तुगलक के विरुद्ध उस पर दोषारोपण भी करते हैं । वस्तुतः उसने सुल्तान के निर्दयी कार्यों को देखा , दौलताबाद आने - जाने में लोगों को जो कष्ट उठाने पड़े , उसका वह चश्मदीद गवाह था , इसलिए वह सुल्तान का कटु आलोचक बन गया था । फिर भी उसने ऐतिहासिक घटनाओं का विस्तार से वर्णन किया है जो ऐतिहासिक दृष्टि से काफी महत्त्वपूर्ण है ।

( 14 ) किताब - उल - रहला

यह इब्नबतूता की यात्राओं का संकलन है , जो सम्भवतः 1355 - 56 ई . में पूर्ण हुआ था । वह मुहम्मद तुगलक के शासनकाल में भारत आया और लगभग आठ वर्षों तक यहाँ रहा था । उसने अपने यात्रा वृत्तान्त में भारत की भौगोलिक स्थिति , शासन व्यवस्था दरबार , डाक व्यवस्था , सुल्तान मुहम्मद के चरित्र के अलावा समकालीन राजनीतिक घटनाओं का चित्रण किया है । सामाजिक , आर्थिक और सांस्कृतिक स्थिति के बारे में भी इससे अच्छी जानकारी प्राप्त होती है । उसने अपने ग्रंथ में अपनी त्रुटियों को स्पष्ट रूप से स्वीकार किया है । उसने अपने यात्रा विवरण को ईमानदारी से लिखा है । उसकी पूर्व जानकारी निराधार हो सकती है । उस पर तथ्यों को तोड़ - मरोड़कर पेश करने का भी आरोप लगाया जाता है ।

( 15 ) तारीखे - मुबारकशाही

इस ग्रंथ की रचना याहिया बिन अहमद सरहिन्दी द्वारा की गई थी । इसमें महम्मद गौरी से लेकर सैयद वंश के तीसरे सुल्तान मुहम्मद तक के शासन की घटनाओं का उल्लेख मिलता है । सैयद वंश की जानकारी के लिए यही एकमात्र समकालीन ग्रंथ है । परवर्ती इतिहासकारों ने सैयद वंश की जानकारी इसी ग्रंथ से प्राप्त की है ।

( 16 ) वाकियात मुश्ताकी और तारीखे मुश्ताकी

इन ग्रंथों की रचना रिजकुल्ला मुश्ताकी ने की थी । यद्यपि दोनों ही ग्रंथ काव्यात्मक कृतियाँ हैं परन्तु इनसे लोदी काल के बारे ऐतिहासिक जानकारी प्राप्त होती है । वाकियात मुश्ताकी से बहलोल लोदी से अकबर के शासनकाल तक की विभिन्न ऐतिहासिक घटनाओं के बारे में पता चलता है । इनमें कहानियाँ भी दी गई हैं . जिनके माध्यम से समकालीन घटनाओं के साथ - साथ सांस्कृतिक स्थिति के बारे में जानकारी प्राप्त होती है ।

( 17 ) तारीख सलातीन - ए - अफगानी

इसे तारीखे - शाही के नाम से भी जाना जाता इसकी रचना अहमद यादगार ने की थी । इससे बहलोल लोदी , सिकन्दर लोदी तथा लोदी , शेरशाह , इस्लामशाह , फीरोजशाह , आदिलशाल , इब्राहीम सूर और सिकन्दरशाहला काफी जानकारी प्राप्त होती है । वस्तुतः यह ग्रंथ सूर वंश के बारे में प्रामाणिक जानकारी पर करता है और अकबर के बारे में भी पर्याप्त जानकारी प्रदान करता है ।

( 18 ) मखजन - ए - अफगानी

यह ग्रंथ दिल्ली के अफगान शासकों के बारे में जानकारी देने वाला दूसरा महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है । इस ग्रंथ की रचना नियामतउल्ला द्वारा की गई थी । इस पेश को 1699 ई . के आसपास लिखा गया है । इस ग्रंथ से सुल्तान बहलोल लोदी से इब्राहीम लोदी तक के शासनकाल के बारे में काफी जानकारी प्राप्त होती है ।

( 19 ) तारीखे - दाऊदी

इस ग्रंथ की रचना अब्दुल्ला ने की थी लेकिन उसके बारे में पर्याप्त जानकारी प्राप्त नहीं हो पाती है । इस ग्रंथ से बहलोल लोदी से दाऊदशाह ( 1517 ई . में बंगाल का सुल्तान ) के शासन के बारे में अच्छी जानकारी प्राप्त होती है । ग्रंथ में अलौकिक कहानियों की भरमार है । तिथिक्रम को लेकर लेखक द्वारा कई त्रुटियाँ की गई हैं ।

( ब ) मुगलकालीन ऐतिहासिक ग्रन्थ

1 . तुजुक - ए - बाबरी

मुगल साम्राज्य के संस्थापक बाबर की आत्मकथा तुजुक - ए - बाबरी में भारत की तत्कालीन राजनीतिक , आर्थिक , सामाजिक व धार्मिक दशा का विस्तृत तथा सजीव वर्णन हुआ है । प्रकृति प्रेमी होने के कारण बाबर ने भारत की वनस्पति तथा पशु - पक्षियों का भी वर्णन किया है । वर्ण - व्यवस्था , श्रम विभाजन तथा व्यवसायों आदि का भी उल्लेख यथास्थान किया गया है । इस ग्रन्थ का बाद में फारसी भाषा में अनुवाद अब्दुर्रहीम खानखाना ने किया । ' तुजुक - ए - बाबरी ' के विषय में लेनपूल लिखते हैं - “ उसकी आत्मकथा उन बहुमूल्य लेखों में से एक है जो समस्त युगों में बहुमूल्य रहे हैं । यह गिबन एवं न्यूटन की स्मृतियों तथा आगस्टाइन एवं रूसो की श्रेणियों में रखने योग्य है । ”

2 . हुमायूँनामा

इस ग्रन्थ की रचनाकार बाबर की पुत्री गुलबदन बेगम थी । इस ग्रन्थ में गुलबदन ने हुमायूँ की विजयों का उल्लेख किया है तथा उसकी कठिनाइयों व पराजयों का वर्णन किया है । इस ग्रन्थ से हमें उस समय के रीति - रिवाजों का पर्याप्त ज्ञान हो जाता है ।

3 . आइन - ए - अकबरी

मुगलकाल का सबसे महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ अबुल फजल कृत आइने अकबरी ' है । इस ग्रन्थ की प्रमुख विशेषता यह है कि इसमें तत्कालीन परिस्थितियों का पाल तथा रोचक वर्णन किया गया है । मनोरंजन के साधन , रहन - सहन . भोजन तथा खान - पान उल्लेख इस ग्रन्थ में बड़े सजीव ठंग से किया गया है । ' आइने अकबरी ' के विषय में जादूनाथ सरकार लिखते हैं , “ भारत में यह अपनी कोटि का प्रथम ग्रन्थ है और इसकी रचना उस समय थी जिस समय नवनिर्मित मुगल शासन अर्द्ध -अवस्था में था । ” के . एम . अशरफ के शब्दों में - “ आइने - अकबरी सामाजिक इतिहास का प्रतीक है । "

4 . तुजुक - ए - जहाँगीरी

इस ग्रन्थ की रचना जहाँगीर ने स्वयं की थी । इसमें जहाँगीर के शासन के अठारह वर्षों का विवरण है । सम्पूर्ण ग्रन्थ के अध्ययन से तत्कालीन ललित कलाओं , साहित्य तथा चित्रकला की प्रगति का पर्याप्त ज्ञान होता है । अनेक वृत्तान्त रोचक तथा आकर्षक हैं । जहाँगीर ने इस ग्रन्थ में अपनी दुर्बलताओं को भी स्वीकार किया है । इस ग्रन्थ के द्वितीय भाग को सम्राट जहाँगीर की अस्वस्थता के कारण मुताविद खाँ ने पूर्ण किया ।

5 . शाहजहाँकालीन ‘ बादशाहनामे ’

शाहजहाँकाल में दो बादशाहनामे लिखे गये थे । प्रथम ‘ बादशाहनामा मिर्जा अमीर काजवानी कृत है । शाहजहाँ ने सर्वप्रथम काजवानी को आदेश दिया था कि वह राज्य का वृत्तान्त लिखे , परन्तु इस ग्रन्थ में पक्षपातपूर्ण वर्णन है । दूसरा ' बादशाहनामा ' अबुल हमीद लाहौरी कृत है । इस ग्रन्थ में शाहजहाँ के राज्य के प्रारम्भिक बीस वर्षों का उल्लेख किया गया है । ग्रन्थ की शैली अत्यन्त कठिन तथा आलंकारिक है , परन्तु इसकी सामग्री अत्यन्त ठोस है ।

6 . औरंगजेबकालीन ग्रन्थ

औरंगजेब के आदेश पर मिर्जा मोहम्मद कासिम ने ' आलमगीरनामा ' नामक ग्रन्थ की रचना की । इसका प्रारम्भ 1688 ई . में हुआ था । यह ग्रन्थ औरंगजेब के शासनकाल के प्रथम दस वर्ष के इतिहास पर प्रकाश डालता है । ' सफरनामा ' का लेखक आकिल खाँ राजी है । इसकी प्रति रामपुर में सुरक्षित है ।

( 2 ) साहित्यिक ग्रन्थ

ऐतिहासिक ग्रन्थों के अतिरिक्त साहित्यिक ग्रन्थ भी मध्यकालीन इतिहास पर प्रकाश डालते हैं । साहित्यिक ग्रन्थों को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है कथा साहित्य , कला आदि से सम्बन्धित ग्रन्थ तथा काव्य व गीत साहित्य ।

कथा - साहित्य में ऐतिहासिक ग्रन्थों के समान सत्य और प्रामाणिक युद्ध घटनाओं का वर्णन न होकर कल्पना का पुट अधिक होता है । परन्तु इस प्रकार के साहित्य से उस काल की सामाजिक तथा आर्थिक दशा का ज्ञान अवश्य हो जाता है ।

' जवामी - उल - हीकायत ' एक महत्त्वपूर्ण तथा रोचक कहानी संग्रह है जिसके लेखक ' मोहम्मद ओफी ' थे । इसमें इल्तुतमिशकालीन दिल्ली की दशा का वर्णन किया गया है । इसके अतिरिक्त इसमें गजनी और बगदाद का वर्णन विशेष रूप से किया गया है । शेरशाहकालीन कवियों में सबसे प्रसिद्ध कवि जायसी थे । इनका प्रमुख काव्यग्रन्थ पद्यावत है जिसमें चित्तौड़ नरेश का सिंहल की सुन्दरी पद्मिनी के साथ प्रेमविवाह का अत्यन्त सुन्दर तथा प्रभावशाली वर्णन है । अलाउद्दीन के साथ युद्ध का भी इसमें वर्णन है ।

विद्यापति ठाकुर द्वारा रचित ' पुरुष - परीक्षा ' भी एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है । यह ग्रन्थ नीति विषयक है परन्त इसमें हिन्दू और मुसलमान दोनों वर्गों के सामाजिक जीवन का चित्रण किया गया है । सामाजिक जीवन का चित्रण बंगाल के मुकन्दराम तथा चण्डीदास के गीतों में भी मिलता है । इसी प्रकार ' सूरदास ' , ' तुलसीदास ' तथा ' कबीर ' के नाम भी विशेष उल्लेखनीय हैं । तुलसीकत रामचरितमानस उस युग के समाज का दर्पण है । कबीर के काव्य में तत्कालीन समाज के प्रमख दोषों का सजीव चित्रण किया गया है । गुरुनानक की रचनाएँ श्री उस युग के समाज का उत्तम चित्र उपस्थित करती हैं ।

( 3 ) यात्रा विवरण

भारतीय इतिहास की जानकारी के अन्य स्रोत विदेशी यात्रियों के यात्रा - विवरण हैं । समय - समय पर अनेक यात्री भारत आये और उन्होंने यहाँ की तत्कालीन दशा का बड़ा ही सजीव चित्रण किया । भारत में आने वाले यात्रियों में प्रमुख पर्यटक इब्नबतूता है । सन् 1333 . ई . में उसने सिन्ध में प्रवेश किया और पर्याप्तकाल तक दिल्ली में भी रहा । कल मिलाकर वह भारत में आठ वर्ष रहा , जब तक वह यहाँ रहा ; यहाँ के दरबारी जीवन का अध्ययन करता रहा जिसका उल्लेख उसने यथास्थान किया है । उसका प्रसिद्ध ग्रन्थ ' रहला ' ( Rhala of Ibn Batuta ) है । इस ग्रन्थ में सल्तानयगीन दरबार के नियम रीति - रिवाज तथा परम्पराओं का बड़ा सुन्दर और सजीव वर्णन किया गया है । इस वर्णन की प्रमुख विशेषता यह है कि इसमें पक्षपात की गन्ध नहीं है ।

मार्को पोलो संसार का प्रमुख पर्यटक था जो 13वीं शताब्दी में भारत आया था । उसने भारत में जो कुछ देखा , उसका वर्णन उसने अपनी पस्तक में किया है । उसके वर्णनों में दक्षिण भारत के सामाजिक जीवन का उल्लेख अधिक आया है परन्तु उसका वर्णन अत्यन्त संक्षिप्त है । सन् 1442 के लगभग ईरानी राजदूत अब्दुर्रज्जाक आया । इसके विवरणों के अध्ययन से विजयनगर की सामाजिक तथा आर्थिक दशा का ज्ञान होता है । विजयनगर का इतिहास बिना इस ग्रन्थ की सहायता के पूरा नहीं हो सकता । इससे पूर्व सन् 1205 में चीनी नौ - सेना का एक दल भारत आया था जिसमें माहौन ( Mahun ) नामक एक मुसलमान मंत्री भी था । ' माहौन ' ने बंगाल और मालाबार के विषय में विस्तार से वर्णन किया है ।

निकोली कोन्टी नामक इटली का यात्री सन् 1520 में भारत आया । उसने हमारे देश के रीति - रिवाज तथा यहाँ की जनता का जो वर्णन किया है , वह अत्यन्त स्पष्ट तथा प्रभावशाली है । डोमिगोड़ा पेइज एक पुर्तगाली यात्री था और उसने भी दक्षिण भारत की ही यात्रा की । विजयनगर का उसने विस्तार से वर्णन किया है । सन 1516 में एडोर्डो बारबोसा नामक एक यात्री भारत आया । विजयनगर का वर्णन उसने स्पष्ट तथा आकर्षक ढंग से किया है । 15वीं शताब्दी के अन्तिम चरणों में निकिटीन ( Nikitin ) और स्टेफनो ( Stephano ) नामक यात्रियों ने भी भारत का भ्रमण किया । इनके द्वारा लिखे गये वर्णन पर्याप्त प्रमाणयुक्त हैं । जहाँगीर के काल में दो प्रसिद्ध यात्री हाकिन्स और टामस रो भारत आये । हाकिन्स सन् 1508 में इंग्लैण्ड के सम्राट जेम्स प्रथम का पत्र लेकर आया था । जहाँगीर उससे विशेष रूप से प्रसन्न था , अतः उसे 4000 का मनसबदार बना दिया । हाकिन्स ने बादशाह के रहन - सहन ; दरबारी परम्पराओं तथा सामाजिक जीवन का बड़ा ही सुन्दर चित्रण किया है । जहाँगीर की विलासिता का भी वह उल्लेख करता है । सर टामस रो 1615 में इंग्लैण्ड के राजा का राजदूत बनकर जहाँगीर के दरबार में आया था । भारत में आने का उसका प्रमख उद्देश्य जहाँगीर के साथ व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित करना था । वह पर्याप्त काल तक भारत में रहा और उसने मुगल दरबार की शान - शौकत , वैभव , मुगल सरदारों के विलासपूर्ण जीवन का बड़ा सुन्दर चित्र खींचा है । कृषकों की हीन दशा तथा सामाजिक भ्रष्टाचार का भी उल्लेख उसने किया है ।

( 4 ) अमीर खुसरो के ग्रन्थ

भारतीय इतिहास के प्रमुख स्रोत के रूप में अमीर खुसरो के ग्रन्थों का भी विशेष महत्त्व है । अमीर खुसरो का मूलत : नाम अबुल हसन था । उसने खिलजी व तुगलक वंश के शासकों के यहाँ अनेक महत्त्वपूर्ण पदों पर कार्य किया था । उसने अनेक युद्धों में भी भाग लिया था । तत्कालीन समाज का चित्रण उसके ग्रन्थों में आकर्षक शैली में किया गया है । अमीर खुसरो द्वारा लिखे गये प्रमुख ग्रन्थ निम्नलिखित हैं - ( 1 ) देवलरानी , ( 2 ) मिफ्ता - उल - फुतह , ( 3 ) तुगलकनामा , ( 4 ) नूर - सिपेहर , और ( 5 ) खजाइन - उल - फुतह अथवा तारीख - ए - अलाई ।

यह सत्य है कि खुसरो के ग्रन्थों में यद्यपि ऐतिहासिक वर्णन अधिक किया गया है परन्तु स्थान - स्थान पर सामाजिक तथा आर्थिक दशा पर भी अच्छा प्रकाश डाला गया है । देवल रानी उसका प्रेमकाव्य है जिसमें ऐतिहासिक घटनाओं का विशेष उल्लेख किया गया है । अलाउद्दीन के काल का 15 वर्ष का क्रमबद्ध इतिहास खजाइन - उल - फुतह ' में वर्णित किया गया है ।

( 5 ) अभिलेख , मुद्राएँ तथा स्मारक

मध्यकालीन इतिहास जानने के साधनों में अभिलेख , मुद्राओं तथा स्मारकों का भी विशेष महत्त्व है । मध्यकालीन अभिलेख कम संख्या में हैं । ऐतिहासिक स्रोत के रूप में मुद्राओं का विशेष महत्त्व है । मुद्राओं के द्वारा साम्राज्य - विस्तार , शासकों की लोक - कल्याणकारी भावनाओं तथा मनोवृत्तियों का पता चलता है । यह सत्य है कि स्मारकों द्वारा राजनीतिक दशा का विशेष ज्ञान नहीं होता है परन्तु धार्मिक , सामाजिक , आर्थिक तथा सांस्कृतिक दशा का हमें पर्याप्त ज्ञान हो जाता है ।

( 6 ) पत्र - व्यवहार

उपर्युक्त साधनों के अतिरिक्त सरकारी दस्तावेज तथा पत्र - व्यवहारों का अपना अलग महत्त्व है । ' रियाज - उलन्शा ' जिसके लेखक महमूद गवाँ हैं तथा ' इंशानामा ' जिसके लेखक ताहिर - उल - हुसैनी हैं , इसके अच्छे उदाहरण हैं । महमूद द्वितीय और तुर्की के बैजाद प्रथम के मध्य हुए पत्र - व्यवहार का संग्रह भारत की तत्कालीन दशा पर अच्छा प्रकाश डालते हैं ।

Download PDF Of Major Historical Sources Of Sultanate Era And Mughal History

Download PDF

Download & Share PDF With Friends

Download PDF
Free
Knowledge Hub

Your Knowledge Booster..!

Post a Comment (0)
Previous Post Next Post