विद्युत आवेश ( Electric Charge )
इतिहास के अनुसार ईसा से लगभग 600 वर्ष पूर्व ग्रीस देश के मिलेटस के निवासी थेल्स ( Thales ) ने देखा कि जब ऐम्बर ( Amber ) को रेशेदार पदार्थ जैसे ऊन से रगड़ा जाता है तो वह कागज के छोटे - छोटे टुकड़े , भूसे के टुकड़े आदि पदार्थों को आकर्षित कर लेता है । ऐम्बर का ग्रीक नाम इलेक्ट्रॉन ( electron ) और इसी आधार पर शब्द विद्युतिकी ( electricity ) की स्थापना हुई । इसी प्रकार काँच की छड़ को रेशम से रगड़ने पर तथा ऐबोनाइट की छड़ को बिल्ली की खाल से रगड़ने पर भी इनमें भी ऐसा ही गुण उत्पन्न हो जाता है । ऐसी अवस्था में इन पदार्थों को आवेशित कहा जाता है ।घर्षण से किसी पदार्थ के विद्युतमय हो जाने का भौतिक अर्थ है कि वह पदार्थ सामान्य से अलग व्यवहार प्रदर्शित करता है और यह कहा जा सकता है कि पदार्थ ने एक विशेष गुण ( आवेश ) ग्रहण कर लिया है । विद्युतमय पदार्थ के इस लाक्षणिक गुण को विद्युत आवेश ( electric charge ) कहते हैं ।
विद्युतमय पदार्थ को आवेशित पदार्थ भी कहा जाता है । आवेश , पदार्थ को निर्मित करने वाले मूल कणों का नैज गुण है अर्थात् यह वह गुण है जो इन कणों के अस्तित्व में होने के कारण स्वतः ही उद्गमित होता है । यद्यपि आवेश की कोई सहज परिभाषा नहीं दी जा सकती । इसे इसके प्रभावों के आधार पर ही समझा जाता है फिर भी यह कहा जा सकता है कि किसी द्रव्य पर आवेश एक ऐसा लक्षण ( गुण ) है जिसके कारण यह विद्युत एवं चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करता है अथवा इनका अनुभव करता है ।
उदाहरण : काँच की छड़ को सिल्क के कपड़े से रगड़ने पर काँच की छड़ धनावेशित तथा सिल्क ( रेशम का कपड़ा ) ऋणावेशित हो जाता है ।
आवेश के प्रकार ( Types of Charge )
आवेश दो प्रकार के होते हैं -- धनात्मक आवेश
- ऋणात्मक आवेश
यदि काँच की छड़ को रेशम के कपड़े से रगड़कर एक धागे से स्टैण्ड पर स्वतंत्रतापूर्वक लटका दें तथा काँच की एक अन्य छड़ को रेशम के कपड़े से रगड़कर पहली छड़ के पास लायें तब लटकी हुई छड़ दूर हट जाती है । इसी प्रकार , यदि एबोनाइट की छड़ को बिल्ली की खाल से रगड़कर इसी प्रकार से रगड़ी गई एबोनाइट की एक अन्य लटकी हुई छड़ के पास लायें तब लटकी हुई छड़ दूर हट जाती है । परन्तु यदि एबोनाइट की छड़ को बिल्ली की खाल से रगड़कर स्वतंत्रतापूर्वक लटका दें तथा काँच की छड़ को रेशम के कपड़े से रगड़कर एबोनाइट की छड़ के पास लायें तब एबोनाइट की छड़ काँच की छड़ की ओर आकर्षित होती है ।
चित्र ( A ) आवेशों के प्रकार से सम्बन्धित प्रयोग |
विद्युत आवेश के लिए , धनात्मक और ऋणात्मक नाम बेंजामिन फ्रैंकलिन ( Benjamin Franklin ) ने प्रस्तावित किए थे ।
चालक - जिन पदार्थों में से विद्युत आवेश ( सामान्यतः इलेक्ट्रान ) का मुक्त प्रवाह हो सकता है उन्हें चालक ( conductor ) कहते हैं उदाहरणार्थ तांबा ।कुचालक - ऐसे पदार्थ जिनमें से विद्युत आवेश प्रवाहित नहीं होते है उन्हें विद्युत रोधी या कुचालक ( insulators ) या परावैद्युत ( dielectric ) पदार्थ कहते हैं । जैसे काँच , प्लास्टिक , ऐबोनाइट इत्यादि ।
वस्तुओं को आवेशित करने की विधियां
( अ ) घर्षण द्वारा आवेशन ( Charging by Friction )
जब दो वस्तुओं को आपस में रगड़ा जाता है तब उनमें उत्पन्न विद्युत को घर्षण विद्युत कहते हैं । ऐसा करने पर किसी एक वस्तु से दूसरी वस्तु में इलेक्ट्रॉनों का स्थानांतरण हो जाता है इलेक्ट्रॉन त्याग रही वस्तु धनावेशित तथा इलेक्ट्रॉन ग्रहण कर रही वस्तु ऋणावेशित हो जाती है । उदाहरण के लिए काँच की छड़ को रेशम से रगड़ने पर काँच की छड़ धनावेशित तथा रेशम का कपड़ा ऋणावेशित हो जाता है ।( ब ) चालन ( स्पर्श ) द्वारा आवेश ( Charging by Conduction ( Contact ) )
जैसा कि हम देख चुके हैं कि चालक ऐसे पदार्थ हैं जिनमें विद्युत आवेश का मुक्त प्रवाह होता है । किसी चालक को जब आवेश दिया जाता है तब आवेश का प्रवाह होकर इस प्रकार पुनर्वितरण होता है कि सम्पूर्ण आवेश तुंरत ही चालक के बाहरी पृष्ठ पर वितरित हो जाता है जबकि विद्युत रोधी में ऐसा नहीं होता विद्युत रोधी पर जहाँ आवेश दिया जाता है आवेश वहीं बना रहता है । ऐसा किस कारण होता है यह अगले अध्याय में जान सकेंगे ।संपर्क में स्थित दो वस्तुओं में एक वस्तु से दूसरी वस्तु को सीधे आवेश स्थानांतरण को संपर्क द्वारा आवेशन कहा जाता है । आवेशित वस्तु से चालन में समान प्रकृति के आवेशों का स्थानान्तरण निहित है । दो चालक वस्तुओं पर विचार करें जो कुचालक स्टैण्डों पर स्थित हैं इनमें एक आवेशित है तथा दूसरी अनावेशित ( चित्र B) है । इन्हें परस्पर स्पर्श कराने पर आवेश ( चाहे धन हो या ऋण ) अपने स्वयं के प्रतिकर्षण के कारण दोनों चालकों पर वितरित हो जाता है । अतः दोनों चालकों पर समान प्रकृति का आवेश हो जाता है । अर्थात अनावेशित चालक भी आवेशित हो जाता है इसे चालन ( संपर्क ) द्वारा आवेशन कहते हैं ।
चित्र B चालन द्वारा आवेशन |
( स ) प्रेरण द्वारा आवेशन ( Charging by Induction )
वह प्रक्रिया जिसके अन्तर्गत एक आवेशित वस्तु द्वारा अनावेशित वस्तु पर स्पर्श किये बिना विपरीत प्रकृति का आवेश उत्पन्न कर दिया जाये , प्रेरण द्वारा आवेशन कहलाती है ।चित्र C इसका एक उदाहरण दर्शाता है । यहाँ एक अनावेशित धातु की गेंद एक विद्युत रोधी स्टैंड पर आधारित है ( चित्र C ( अ ) ) । ' जब आप इसके निकट ( इसे स्पर्श किये बिना ) एक ऋणावेशित छड़ लाते हैं ( चित्र C ( ब ) तब धातु की गेंद में मुक्त इलेक्ट्रॉन प्रतिकर्षण के कारण छड़ से परे दाहिनी ओर विस्थापित हो जाते हैं । ये धातु से बाहर नहीं आ सकते क्योंकि गेंद कुचालक आधार पर रखी है तथा बांई सतह पर इतनी ही मात्रा में ऋणावेशों की कमी ( अर्थात् नेट धनात्मक आवेश ) हो जाती है ये अतिरिक्त आवेश , प्रेरित आवेश कहलाते हैं । गेंद अपनी विद्युत उदासीन अवस्था में रहती है ।
यदि किसी चालक तार के द्वारा गेंद की दाहिनी सतह को भू संपर्कित किया जाता है ( चित्र C स ) तब तार द्वारा ऋणावेश ( इलेक्ट्रॉन ) पृथ्वी में प्रवाहित हो जाते हैं । अब यदि गेंद का भूसंपर्क तोड़ दिया जाए ( चित्र C द ) तथा फिर आवेशित छड़ को भी हटा लिया जाए ( चित्र C य ) तब गेंद पर एक नेट धनावेश रह जाता है । इस प्रक्रिया में ऋण आवेशित छड़ के आवेश में कोई परिवर्तन नहीं होता है । पृथ्वी उतना ऋणावेश प्राप्त करती है जो कि परिमाण में गेंद पर उपस्थित प्रेरित धनावेश के बराबर होता है ।
चित्र C धातु की गेंद का प्रेरण द्वारा आवेशन |
चालक के निकट धनावेशित छड़ लाकर तथा उपर्युक्त पदों को दोहराकर इसे ऋणावेशित भी किया जा सकता है ।
एक आवेशित ( धन अथवा ऋण ) वस्तु एक अनावेशित वस्तु को किस प्रकार आकर्षित करती है : जब एक अनावेशित वस्तु एक आवेशित वस्तु के निकट लायी जाती है तब विद्युत प्रेरण होता है । इसके कारण अनावेशित वस्तु का आवेशित वस्तु के निकट वाला सिरा विपरीत आवेश प्राप्त करता है तथा इस प्रकार दो असमान आवेशित वस्तुओं में आकर्षण होता है । पूर्व में अनावेशित वस्तु का वह सिरा जो आवेशित वस्तु से दूर है । आवेशित वस्तु के समान प्रकृति का ही आवेश प्राप्त करता है तथा दोनों में प्रतिकर्षण होता है पर अधिक दूरी के कारण यह दुर्बल होता है अतः एक आवेशित वस्तु तथा एक अनावेशित वस्तु में नेट बल आकर्षण का ही होता है । इसके उदाहरण के रूप में हम देख सकते हैं कि सूखे बालों में प्लास्टिक का कंघा करने के बाद कंघे को यदि कागज के छोटे - छोटे टुकड़ों के निकट लाया जाए तो यह इससे आकर्षित होते हैं ।
वस्तु के आवेशन के संबंध में निम्नांकित महत्वपूर्ण तथ्य है :
- समान द्रव्यमान के दो सर्वसम धात्विक गोले लिए गए हैं । एक को धनात्मक Q आवेश दिया गया है जबकि दूसरे को इतना ही ऋणावेश । सिद्धान्ततः आवेशन के बाद इनके द्रव्यमान भिन्न होंगे ऋणावेशित गोले का द्रव्यमान अधिक होगा । ऐसा इस कारण है कि ऋणावेशित गोला अतिरिक्त इलेक्ट्रॉन ग्रहण करता है जिससे इसका द्रव्यमान बढ़ता है जबकि धनावेशित गोले का घटता है । व्यवहार में यह कमी या वृद्धि उपेक्षणीय होती है ।
- विद्युतीकरण का सही परीक्षण प्रतिकर्षण है ना कि आकर्षण क्योंकि एक आवेशित तथा एक अनावेशित वस्तु के मध्य भी आकर्षण हो सकता है ।
- आवेश का संसूचन एवं मान , स्वर्णपत्र विद्युतदर्शी , इलेक्ट्रो मीटर , वोल्टामीटर तथा प्रक्षेपधारामापी से हो सकता है ।
- जब X - किरणें ( 0.1Å से 10Å के मध्य तरंगदैर्ध्य परास के विद्युत चुम्बकीय विकिरण ) एक धातु सतह पर आपतित होती है तो धातु में से इलेक्ट्रान उत्सर्जित होते हैं । अतः सतह धनावेशित हो जाती है ।
विद्युतदर्शी ( Electroscope )
किसी वस्तु पर आवेश की उपस्थिति के संसूचन के लिये एक सरल उपकरण स्वर्ण पत्र विद्युतदर्शी ( Gold Leaf Electroscope ) है । यह अत्यधिक संवेदी ( Sensitive ) है ।चित्र D स्वर्णपत्र विद्युतदर्शी |
चित्र D के अनुसार स्वर्ण पत्र विद्युतदर्शी में काँच का जार होता है जिसमें धात्विक छड़ ऊर्ध्वाधर लगी रहती है । छड़ के ऊपरी सिरे पर धात्विक डिस्क होती है जबकि निचले सिरे पर दो स्वर्ण पत्तियाँ बँधी रहती हैं । जब किसीआवेशित वस्तु को धात्विक डिस्क के सम्पर्क में लाया जाता है तब कुछ आवेश स्वर्ण पत्तियों पर स्थानान्तरित हो जाता है तथा प्रतिकर्षण के कारण पत्तियाँ फैल जाती हैं । पत्तियों का फैलाव सम्पर्कित वस्तु पर आवेश की मात्रा के बारे में अनुमानित जानकारी देता है । यदि किसी आवेशित वस्तु को पहले से आवेशित विद्युतदर्शी के समीप लाते हैं तथा यदि वस्तु पर आवेश एवं विद्युतदर्शी पर उपस्थित आवेश समान प्रकृति का है तो पत्तियाँ और अधिक फैल जाती हैं तथा यदि विपरीत प्रकृति का है तो पत्तियाँ सामान्यतः सिकुड़ जाती हैं ।
आवेश का मात्रक ( Unit of Charge )
S . I . पद्धति में विद्युत धारा को मूल राशि माना गया है । विद्युत धारा का मात्रक ऐम्पियर ( A ) है ।
S . I . पद्धति में आवेश का मात्रक कूलॉम ( Coulomb ) है इसे C से प्रदर्शित करते हैं ।
1 C = 1As
अतः विद्युत आवेश की विमा [ Q ] = M0L0T1 A1 होती है
➛ 1 μC = 10-6 C
➛ 1 nC = 10-9 C➛ 1pC = 10-12 C
आवेश की CGS पद्धति में मात्रक स्टेट कूलॉम या फ्रैंकलिन ( Franklin ) होता है ।
1C = 3×109 esu
आवेश एक अन्य मात्रक फैराडे ( ना कि फैरड ) भी है जहाँ
1 Faraday = 96500 C