हमने यह देखा कि आवेश दो प्रकार के होते हैं - धनात्मक और ऋणात्मक । सजातीय आवेश एक - दूसरे को प्रतिकर्षित करते हैं , जबकि विजातीय आवेश एक - दूसरे को आकर्षित करते हैं । यहाँ पर हम विद्युत आवेशों के कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण गुणों का वर्णन करेंगे ।
विद्युत आवेशों की योज्यता ( Additivity of Electric Charges )
“ आवेशों की योज्यता वह गुण है जिसके द्वारा किसी निकाय का कुल आवेश उसके विभिन्न आवेशों के बीजीय योग से प्राप्त किया जाता है ।” अर्थात् आवेशों को वास्तविक संख्याओं की भाँति जोड़ा जा सकता है अथवा आवेश द्रव्यमान की भाँति अदिश राशि है ।यदि किसी निकाय में n आवेश q1 , q2 , q3 , . . . . qn हैं तो निकाय का कुल आवेश q1 , q2 , q3 , . . . . qn है । आवेश का द्रव्यमान की भाँति ही परिमाण होता है , दिशा नहीं होती । किसी वस्तु का द्रव्यमान सदैव धनात्मक होता है जबकि कोई आवेश या तो धनात्मक हो सकता है अथवा ऋणात्मक । अतः किसी निकाय का आवेश ज्ञात करते समय उचित चिन्ह का प्रयोग करना होता है ।
उदाहरण के लिए , यदि किसी निकाय में + 2q , - 5q व + 7q आवेश है तो निकाय का कुल आवेश q = + 2q - 5q + 7q = + 4q होगा ।
नोट - यदि किसी पदार्थ पर आवेशों का योग शून्य हो तो वह पदार्थ उदासीन कहा जाता है ।
विद्युत आवेश की निश्चरता ( Invariance of Electric Charge )
किसी वस्तु पर आवेश परिवर्तित नहीं होता है , वस्तु या प्रेक्षक की चाल चाहे जो भी हो । अर्थात् दूसरे शब्दों में , इसे इस प्रकार से व्यक्त किया जा सकता है कि किसी कण पर विद्युत आवेश ( q ) का मान ( आवेश ) के वेग पर निर्भर नहीं करता है ।विरामावस्था में आवेश = गतिमान अवस्था में आवेश
अर्थात्
qविरामावस्था = qगतिमान अवस्था
यहां पर यह तथ्य इसलिए बताया गया है कि विशिष्ट आपेक्षिकता के सिद्धान्त के अनुसार अति उच्च वेग जो प्रकाश के वेग की कोटि ( V ~ c ) का है , परन्तु कण का द्रव्यमान इसके विराम द्रव्यमान से कई गुणा बडा हो जाता है पर आवेश अप्रभावित रहता है । किसी कण के आवेश q तथा इसके द्रव्यमान m का अनुपात (q/m) कण का विशिष्ट आवेश कहलाता है । यह वस्तु के वेग पर निर्भर करता है तथा अत्यधिक वेग ( V ~ c ) पर विशिष्ट आवेश घट जाता है ।
विद्युत आवेश का संरक्षण ( Conservation of Electric Charge )
आवेश संरक्षण को समझने के लिए हम विलगित निकाय लेते हैं । विलगित निकाय से अभिप्राय ऐसे तन्त्र से है , जिसमें न तो कोई आवेश प्रवेश कर सकता है तथा न ही कोई आवेश बाहर निकल सकता है । “ किसी भी विलगित तन्त्र में आवेश की कुल मात्र नियत रहती है । इसे आवेश संरक्षण का नियम कहते हैं । ”यदि किसी विलगित निकाय के तन्त्र में दो पिण्ड पर आवेश q1 व q2 हैं एवं इनमें परस्पर अभिक्रिया के फलस्वरूप आवेश q3 व q4 हो जाते हैं तो आवेश संरक्षण के नियमानुसार तंत्र में कुल आवेश की मात्रा स्थिर रहनी चाहिए अतः
क्रिया से पूर्व आवेश = क्रिया के पश्चात् आवेश
अर्थात्
q1 + q2 = q4 + q5
इसी प्रकार किसी रासायनिक या विद्युत प्रक्रिया में किसी तन्त्र में कुछ धन आवेश उत्पन्न होता है तो उतने ही ऋण आवेश भी उत्पन्न होने चाहिए , जिससे इनका योग प्रक्रिया से पूर्व आवेश के मान के बराबर हो जाए । काँच की छड़ को जब आवेशित करते हैं तो उसे रेशम के कपड़े से रगड़ते हैं , जिससे काँच की छड़ एवं रेशम पर विपरीत आवेश उत्पन्न होते हैं । रगड़ने के कारण आवेशन की प्रक्रिया में आवेश का बीजगणितीय योग अपरिवर्तित रहता है ।
इसी प्रकार नाभिकीय क्रियाओं में भी आवेश संरक्षित रहता है ।
92U235 + n01 ⟶ 56Ba141 + 3 0n1 + ऊर्जा
इस समीकरण में बायीं ओर आवेश की मात्रा = 92 + 0 = 92
दायीं ओर आवेश की मात्रा = 36 + 56 = 92
अत : आवेश संरक्षित है ।
युग्म उत्पादन ( Pair Production ) - नाभिकीय अभिक्रियाओं में जब 1.02 MeV से अधिक ऊर्जा के फोटोन द्रव्य से अन्योन्य क्रिया करते हैं तो एक इलेक्ट्रॉन व एक पॉजीट्रान का उत्पादन होता है ।
γ = | e+ | + | e- |
पॉजीट्रॉन | इलेक्ट्रॉन |
और अन्य उदाहरण भी नीचे दिये गये हैं ।
( 1 ) जब इलेक्ट्रॉन और इसका प्रतिकण पोजीट्रॉन आपस में टकराते हैं तो वे परस्पर विनाश कर विद्युत चुम्बकीय विकिरण उत्पन्न करते हैं , जो आवेश रहित होते हैं । शून्यीकरण ( Annihilation ) की इस प्रक्रिया के प्रारम्भ में कुल आवेश शून्य था और अन्त में भी कुल आवेश शून्य है । यह प्रक्रिया इस प्रकार लिखी जाती है -
e- | + | e+ | ⟶ | γ ( 1.02 MeV ) |
इलेक्ट्रॉन | पोजीट्रॉन |
23892U ⟶ 23490Th + 42
He ( α - कण )
Qi = 92 e Qf = 90 e + 2 e = 92 eनाभिकीय अभिक्रिया
147N + 42He ⟶ 178O + 11H
7 e + 2e ⟶ 9 e ⟶ 8 e + e9 e = 9 e
आवेश का क्वान्टीकरण ( Quantization of Charges )
प्रयोगों द्वारा यह पाया गया कि प्रत्येक आवेशित वस्तु ( छोटी अथवा बड़ी ) पर उपस्थित आवेश सदैव आवेश की एक न्यूनतम मात्रा का पूर्ण गुणक होता है । आवेश की इस न्यूनतम मात्रा को मूल आवेश ( Fundamental Charge ) कहते हैं तथा इसे e से प्रदर्शित करते हैं । सन् 1912 में वैज्ञानिक मिलीकॉन ने अपने प्रयोग द्वारा यह ज्ञात किया कि आवेश की यह न्यूनतम मात्रा e = 1.6 × 10-19 कूलॉम होती है । यह इलेक्ट्रॉन पर उपस्थित आवेश का ही परिमाण है । अतः प्रकृति में e से छोटा कोई आवेश नहीं है अतः किसी भी आवेशित वस्तु अथवा कण पर उपस्थित आवेश ज्ञात करें तो वह सदैव e , 2e , 3e , . . . . अथवा - e , - 2e , - 3e , . . . . ही होगा , e के भिन्न रूप में नहीं अर्थात् 0.7e , 3.5e , . . . . . 1.5e आदि नहीं । अत : इस तथ्य से स्पष्ट होता है कि “ किसी वैद्युत / आवेश को अनिश्चित रूप में विभाजित नहीं किया जा सकता है । आवेश का यह गुण आवेश की परमाणुकता ( Atomicity of Charge ) कहा जाता है ।”वैज्ञानिक मिलिकॉन ने मूल आवेश e को विद्युत का क्वान्टम कहा । इस गुण का कारण यह है कि वस्तुओं के वैद्युतीकरण में इलेक्ट्रॉन पूर्ण संख्या में ही एक वस्तु से दूसरी वस्तु में स्थानान्तरित हो सकते हैं , भिन्नात्मक रूप में नहीं ।अतः आवेशित वस्तुओं पर वैद्युत आवेश सतत परिमाण में न होकर असतत विवक्त परिमाण में होता है । वैद्युत आवेश का यह गुण आवेश का क्वाण्टमीकरण कहलाता है ।
इसका अर्थ है कि किसी आवेशित वस्तु पर उपस्थित आवेश सदैव मूल आवेश ( e ) का पूर्ण गुणक होता है अर्थात् q = ne ( जहाँ पर n = ± 1 , ± 2 , ± 3 , . . . . )
महत्त्वपूर्ण तथ्य
1 . आवेश हमेशा द्रव्यमान से सम्बद्ध होता है अर्थात् द्रव्यमान के बिना आवेश का अस्तित्व सम्भव नहीं है किन्तु इसका विलोम सत्य हो सकता है । फोटॉन एक द्रव्यमानहीन एवं आवेशहीन कण है । न्यूट्रॉन का द्रव्यमान है पर आवेश शून्य है किन्तु हर आवेशित कण का कुछ न कुछ द्रव्यमान होता है ।2 . स्थिर आवेश विद्युत क्षेत्र , समान वेग से गतिमान आवेश विद्यत । एवं चम्बकीय क्षेत्र दोनों उत्पन्न करते हैं । यदि आवेश की गति त्वरित है तब यह विद्युत एवं चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न करने के साथ - साथ परिवेश में विद्युत चुम्बकीय विकिरण भी उत्सर्जित करता है ।