एक कोशिकीय प्राणियों में जीवन की समस्त जैविक क्रियाएं जैसे- पाचन , श्वसन तथा जनन , एक ही कोशिका द्वारा संपन्न होती हैं । बहुकोशकीय प्राणियों के जटिल शरीर में उपर्युक्त आधारभूत क्रियाएं भिन्न - भिन्न कोशिका समूहों द्वारा व्यवस्थित रूप से संपन्न की जाती हैं । सरल प्राणी हाइड्रा शरीर विभिन्न प्रकार की कोशिकाओं का बना हुआ है , जिनमें प्रत्येक कोशिका को संख्या हजारों में होती है । मानव का शरीर अरबों कोशिकाओं का बना हुआ है , जो विविध कार्य संपन्न करता है । ये कोशिकाएं शरीर में एक साथ कैसे काम करती हैं ? बहुकोशिकीय प्राणियों में समान कोशिकाओं का समूह , अंतरकोशिकीय पदार्थों सहित एक विशेष कार्य करता है , कोशिकाओं का ऐसा संगठन ऊतक ( tissue ) कहलाता है ।
आपको आश्चर्य हो सकता है कि सभी जटिल प्राणियों का शरीर केवल चार प्रकार के आधारभूत ऊतकों का बना हुआ है । ये सब ऊतक एक विशेष अनुपात एवं प्रतिरूप से संगठित होकर अंगों का निर्माण करते हैं , जैसे- आमाशय , फुप्फुस ( lungs ) , हृदय और वृक्क ( kidney ) । जब दो या दो से अधिक अंग अपनी भौतिक एवं रासायनिक पारस्परिक क्रिया से एक निश्चित कार्य को संपन्न कर अंग - तंत्र का निर्माण करते हैं जैसे - पाचन तंत्र , श्वसन तंत्र इत्यादि । समस्त शरीर को जैविक क्रियाए , कोशिका , ऊतक , अंग तथा अग तंत्र में श्रम विभाजन के द्वारा संपन्न होती हैं और पूरे शरीर को जीवित रखने के लिए योगदान देती हैं ।
प्राणी ऊतक ( Animal Tissue )
कोशिका की संरचना उसके कार्य के अनुसार बदलती रहती है । इस प्रकार ऊतक भिन्न - भिन्न होते हैं और उन्हें मोटे तौर पर निम्नलिखित से चार प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है -
- उपकला ऊतक ( Epithelial Tissue )
- संयोजी ऊतक ( Connective Tissue )
- पेशी ऊतक ( Muscular Tissue )
- तंत्रिका ऊतक ( Narvous Tissue )
उपकला ऊतक
हम उपकला ऊतक को सामान्यतः उपकला ही कहते हैं । इस ऊतक में एक मुक्त स्तर होता है जो एक और तो देह तरल ( body fluid ) और दूसरी ओर बाह्य वातावरण के संपर्क में रहता है और इस प्रकार देह का आवरण अथवा आस्तर ( lining ) का निर्माण करता है । कोशिकाएं अंतराकोशिकीय आधात्री ( intercellular matrix ) द्वारा दृढतापूर्वक जुड़ी रहती हैं । उपकला ऊतक दो प्रकार के होते हैं - सरल उपकला ( Simple epithelial ) तथा संयुक्त उपकला ( Compound Epithelial ) ।
सरल उपकला एक ही स्तर का बना होता है तथा यह देहगुहाओं , वाहिनियों , और नलिका का आस्तर है । संयुक्त उपकला कोशिकाओं को दो या दो से अधिक स्तरों की बनी होती है और इसका कार्य रक्षात्मक है जैसे कि हमारी त्वचा । कोशिका के सरचनात्मक रूपांतरण के आधार पर सरल उपकला ऊतक तीन प्रकार के हैं - शल्की ( squammaus ) उपकला , घनाकार ( cuboid ) उपकला तथा स्तंभाकार ( columnar )
संयुक्त उपकला एक से ज्यादा कोशिका स्तरों ( बहु - स्तरित ) की बनी होती है और इस प्रकार प्रवण और अवशोषण में इसकी भूमिका सौमित है । इसका मुख्य कार्य रासायनिक यांत्रिक प्रतिबलों ( stresses ) से रक्षा करना है । यह त्वचा को शुष्क सतह , मुख गुहा की नम सतह पर , ग्रसनी , लार ग्रंथियों और अग्नाशयी की वाहिनियों के भीतरी आस्तर को ढकता है ।
उपकला की सभी कोशिकाएं एक दूसरे से अंतरकोशिकीय पदार्थों से जुड़ी रहती हैं । लगभग सभी प्राणि ऊतकों में कोशिकाओं के विशेष जोड़ व्यक्तिगत ( individual ) कोशिकाओं को संरचनात्मक एवं कार्यात्मक संधि प्रदान करते हैं । उपकला और अन्य ऊतकों में तीन प्रकार की संधि ( junctions ) पाई जाती हैं । ये हैं दृढ़ , आंसजी एवं अंतराली संधिा दृढ़ संधि पदार्थों को ऊतक से बाहर निकलने से रोकती है । आसजी संधियों पड़ोसी कोशिकाओं के कोशिका द्रव्य को एक दूसरे से जोड़ने का काम करती हैं ।
अंतराली संधियों आयनों तथा छोटे अणुओं एवं कभी - कभी बड़े अणुओं के तुरंत स्थांतरित करने में सहायता करती हैं । वे ऐसा संलग्न कोशिकाओं के कोशिकाद्रव को आपस में जोड़कर करती हैं ।
संयोजी ऊतक ( Connective Tissue )
जटिल प्राणियों के शरीर में संयोजी ऊतक बहुतायत एवं विस्तृत रूप से फैला हुआ पाया जाता है । संयोजी ऊतक नाम शरीर के अन्य ऊतकों एवं अंग को एक दूसरे से जोड़ने तथा आलंबन के आधार पर दिया गया है । संयोजी ऊतक में कोमल ऊतक से लेकर विशेष प्रकार के कतक जैसे- उपास्थि , अस्थि , वसीय ऊतक तथा रक्त सम्मिलित हैं । रक्त को छोड़कर सभी संबोजी ऊतकों में कोशिका संरचनात्मक प्रोटीन का तंतु स्रावित करती हैं . जिसे कोलेजन या इलास्टिन कहते हैं । ये ऊतक को शक्ति , प्रत्यास्थता एवं लचीलापन प्रदान करते हैं । ये कोशिका रूपांतरित पॉलिसेकेराइड भी नावित करती है , जो कोशिका और तंतु के बीच में जमा होकर आधात्री का कार्य करता है । संयोजी ऊतक को तीन प्रकारों में विभक्त किया गया है - ( i ) लचीले संयोजी ऊतक , ( Loose connective tissue ) ( ii ) संघन संयोजी ऊतक ( Dense connective tissue ) एवं ( ii ) विशिष्टकृत संयोजी ऊतक ।
लचीले संयोजी ऊतक में कोशिका एवं तंतु एक दूसरे से अर्धतरल आधारीय पदार्थ में शिथिलता से जुड़े रहते हैं , उदाहरण - त्वचा गर्तिका ऊतक जो त्वचा के नीचे पाया जाता है । यह प्राय : उपकला के लिए आधारीय ढाँचे का कार्य करता है । इस संयोजी ऊतक में प्राय : तंतु कोरक ( जो तंतु को जन्म देता है ) , महाभक्षकाणु एवं मास्ट कोशिकाएं होती हैं । वसा ऊतक दूसरा लचीला संयोजी ऊतक है जो मुख्यतया त्वचा के नीचे स्थिति होता है । इस ऊतक की कोशिकाएं वसा संग्रहण के लिए विशिष्ट होती हैं । भोजन के जो पदार्थ प्रयोग में नहीं आते , वे क्सा के रूप में परिवर्तित कर इस ऊतक में संग्रहित कर लिए जाते हैं ।
सघन संयोजी ऊतकों में ततु एवं तंतु कोशिकाएं दृढ़ता से व्यवस्थित रहती हैं । अभिविन्यास के आधार पर तंतु तथा तंतुकारक सघन संयोजी ऊतक को नियमित संयोजी ऊतक तथा अनियमित संयोजी ऊतक में विभाजित किया गया है । सघन नियमित ऊतक में तंतु कोरक समानांतर तंतु के गुच्छों के बीच में कतार में उपस्थित होते हैं । कंडराएं जो कंकाल पेशी को अस्थि से जोड़ती हैं तथा स्नायु , जो एक अस्थि को दूसरी अस्थि जोड़ती हैं इसका उदाहरण है ।
कोलेजन तंतु का गुच्छा कंडराओं को प्रतिरोधी क्षमता प्रदान करता है और इसे टूटने से बचाता है । सघन नियमित संयोजी ऊतक लचीली स्नायु ( ligament ) में पाया जाता है । सघन अनियमित ऊतक में तंतु तथा तंतुकारक होते हैं ( तंतु में अधिकांश कोलेजन होता है ) जिनका अभिविन्यास अलग होता है । यह ऊतक त्वचा पाया जाता है । उपास्थि , अस्थि एवं रक्त विशेष प्रकार के संयोजी ऊतक हैं ।
उपास्थि का अंतराकोशिक पदार्थ ठोस , विशिष्ट आनम्य एवं संपीडन रोधी होता है । इस ऊतक को बनाने वाली कोशिकाएं ( उपास्थि अणु ) स्वयं द्वारा स्रावित आधात्री में छोटी छोटी गुहिकाओं में बंद हो जाती है । कशेरुकी भ्रूण में विद्यमान अधिकांश उपास्थियां , वयस्क अवस्था में अस्थि द्वारा प्रतिस्थापित हो जाती हैं । वयस्क में कुछ उपास्थि नाक की नोंक , बाला कान संधियों , मेरुदंड को आस पास की अस्थियों के मध्य तथा पैर और हाथ में पाई जाती है ।
अस्थि खनिज युक्त ठोस संयोजी ऊतक है , इसका आनम्य आधात्री कॉलेजन तंतु एवं कैल्सियम लवण युक्त होता है जो अस्थि को मजबूती प्रदान करता है । यह शरीर का मुख्य ऊतक है जो कि शरीर के कोमल अंगों का संरचनात्मक ढाँचा बनाता है तथा ऊतकों को सहारा एवं सुरक्षा देता है । अस्थि कोशिकाएं आधात्री के अंदर रिक्तिकाओं में उपस्थित रहती है । पैर की अस्थि जैसे आपकी लंबी अस्थि भार वहन का कार्य करती है । अस्थि कंकाल पेशी से जुड़कर परस्पर क्रिया द्वारा गति प्रदान करती है । कुछ अस्थियों में अस्थि मन्जा , रक्त कोशिकाओं का उत्पादन करती है ।
रक्त तरल : संयोजी ऊतक होता है जिसमें जीवद्रव्य , लाल रुधिर कणिकाएं , सफेद रुधिर कणिकाएं और पट्टिकाणु ( platlets ) पाए जाते हैं रक्त मुख्य परिसंचारी तरल है जो कि विभिन्न पदार्थों के परिवहन में सहायता करता है ।
पेशी ऊतक ( Muscular Tissue )
पेशी ऊतक अनेक लंबे , बेलनाकार तंतुओं ( रेशों ) से बना होता है जो समानांतर - पंक्ति में सजे रहते हैं । यह तंतु कई सूक्ष्म तंतुकों से बना होता है जिसे पेशी तंतुक ( myofibril ) कहते हैं । समस्त पेशी तंतु समन्वित रूप से उद्दीपन के कारण संकुचित हो जाते हैं तथा पुनः लंबा होकर अपनी असंकुचित अवस्था में आ जाते हैं । पेशीय ऊतक की क्रिया से शरीर वातावरण में होने वाले परिवर्तनों के अनुसार गति करता है तथा शरीर के विभिन्न अंगों की स्थिति को संभाले रखता है । सामान्यतया शरीर की सभी गतियों में पेशियां प्रमुख भूमिका निभाती हैं । पेशीय ऊतक तीन प्रकार के होते हैं -
- कंकाल पेशी ( Skeletal muscle )
- चिकनी पेशी ( Smooth muscle )
- हृदय पेशी ( Cardiac muscle )
कंकाल पेशी - मुख्य रूप से कंकाली अस्थि से जुड़ी रहती है । प्रारूप ( typical ) पेशी जैसे द्विशिरस्का ( biceps ) ( दो सिर वाली ) पेशी में रेखीय कंकाल पेशी तंतु एकसमूह में एक साथ समानांतर रूप में पाए जाते हैं । पेशी ऊतक के समूह के चारों ओर कठोर संयोजी ऊतक का आवरण होता है ।
चिकनी पेशी - चिकनी पेशीय ऊतक को संकुचनशील कोशिका के दोनों किनारे पतले होते हैं तथा इनमें रेखा या धारियों नहीं होती हैं । कोशिका संधिया उन्हें एक साथ बौधे रखती हैं तथा ये संयोजी ऊतक के आवरण से ढके समूह रहते हैं । आंतरिक अंगों जैसे- रक्त नलिका , अग्नाशय तथा आंत की भित्ति में इस प्रकार का पेशी कतक पाया जाता है । चिकनी पेशी का संकुचन “ अनैच्छिक ” होता है ; क्योंकि इनकी क्रियाविधि पर सीधा नियंत्रण नहीं होता है । जैसा कि हम कंकाल पेशियों के बारे में कर सकते हैं . चिकनी पेशी को मात्र सोचने भर से हम संकुचित नहीं सकते हैं ।
हृदय पेशी - संकुचनशील ऊतक है जो केवल हृदय में हो पाई जाती है । हृदय पेशी की कोशिकाएं कोशिका संधियों द्वारा द्रव्य कला से एकरूप होकर चिपकी रहती हैं संचार संधियों अथवा अंतर्विष्ट डिस्क ( intercalated disc ) के कुछ संगलन बिंदुओं पर कोशिका एक इकाई रूप में संकुचित होती है । जैसे कि जब एक कोशिका संकुचन के लिए संकेत ग्रहण करती है तब दूसरी पास की कोशिका भी संकुचन के लिए उद्दीपित होती है ।
तंत्रिका ऊतक ( Nervous tissue )
तंत्रिका ऊतक मुख्य रूप से परिवर्तित अवस्थाओं के प्रति शरीर की अनुक्रियाशीलता ( responsiveness ) के नियंत्रण के लिए उत्तरदायी होता है । तत्रिका कोशिकाएं उत्तेजनशील कोशिकाएं हैं , जो तंत्रिका तंत्र की संचार इकाई है । तंत्रिबंध ( Neuroglial ) कोशिका बाकी तंत्रिका तंत्र को संरचना प्रदान करती है तथा तंत्रिका कोशिकाओं को सहारा तथा सुरक्षा देती है । हमारे शरीर में तंत्रिवध कोशिकाएं तंत्रिका ऊतक का आयतन के अनुसार आधा से ज्यादा हिस्से बनाता है ।
बहुकोशीय प्राणियों में उपयुक्त वर्णित ऊतक संगठित होकर अग और अगतंत्र की रचना करते हैं । इस तरह का संगठन लाखों कोशिकाओं द्वारा निर्मित जीव की सभी क्रियाओं को अधिक दक्षतापूर्वक एवं समन्वित रूप से चलाने के लिए आवश्यक होता है । शरीर के प्रत्येक अंग एक या एक से अधिक प्रकार के ऊतकों से बना होता है । उदाहरणार्थ , हृदय में चारों तरह के ऊतक होते हैं , उपकला , संयोजी , पेशीय तथा तंत्रकीय ऊतक । ध्यान पूर्वक अध्ययन के बाद हम यह देखते हैं कि अंग अंगतंत्र की जटिलता एक निश्चित इंद्रियगोचर प्रवृत्ति को प्रदर्शित करती है । यह इंद्रियगोचर प्रवृत्ति एक विकासीय प्रवृत्ति कहलाती है ।
पादप ऊत्तक ( Plant Tissues )
ऊत्तक की कोशिकाओं के विभाजित होने तथा नई कोशिकाओं के निर्माण के आधार पर पादप ऊत्तक का मुख्यतः दो वर्गों में बाटा गया है - विभज्योत्तक ऊत्तक ( Meristematic Tissues ) तथा स्थायी ऊत्तक ( Permanent Tissues )
1. विभज्योत्तक ऊतक ( Meristematic Tissues ) - विभज्योत्तक ऊत्तक का निर्माण , पौधों की वृद्धि के लिए उत्तरदायी कोशिकाओं द्वारा होता है । ऐसे ऊत्तकों की कोशिकाओं में हमेशा तीव्र गति से विभाजित होते रहने का गुण रहता है । यह ऊत्तक पौधों के वर्धी भागों ( Vegetative Parts ) जैसे - तने तथा जड़ो के अग्र सिरे में पाये जाते है । विभज्योत्तक ऊत्तक मुख्यतः तीन प्रकार के होते है -
2. स्थायी ऊत्तक ( Permanent Tissues ) - विभाज्योत्तक ऊत्तक की कोशिकाओं के विभाजन से बनी नयी कोशिकाओं की रचना तथा आकृति भिन्न होती है । अत : इन नयी कोशिकाओं में पुनः विभाजित हो जाने की क्षमता समाप्त हो जाती है । ऐसी कोशिकाओं के समूह का स्थायी ऊत्तक कहते है । स्थायी कत्तक मुख्यतः चार प्रकार के होते है -
क . सरल स्थायी ऊत्तक ( Simple Permanent Tissues )
सरल स्थायी ऊत्तक वे ऊत्तक है , जो एक ही प्रकार की आकृति तथा एक ही तरह के कार्य को संपादन करने वाली कोशिकाओं के समूह है । सरल स्थायी ऊतक को पुनः तीन वर्गों में बांटा गया है -
I. मृदुत्तक ( Parenchyma )
मृदुत्तक अधिकांशतः पौधों के मुलायम भाग तथा विभिन्न अंगों में ( जैसे- बाह्य त्वचा और फलों के गूदे आदि ) पाये जाते है , जो भोजन निर्माण तथा भोजन संग्रह का कार्य करते है । कोशिका - भित्ति पतली होती है । जलीय पादपों में मृदुत्तक की कोशिकाओं के बीच दीर्घ वायु स्थान ( Air Spaces ) बन जाते है , इन्हें वायु ऊत्तक ( Aerenchyma ) कहते है । इसी प्रकार जब मृदुत्तक मे हरित लवक होता है तब इन्हें क्लोरे - काइमा कहा जाता है ।
II . स्थूल कोण ऊत्तक ( Collenchyma )
स्थूल कोण ऊत्तक मृदुतक का ही रूपान्तरित रूप होता है तथा यह शाकीय पौधों की बाड़ा त्वचा के नीचे और पत्तियों के पर्णवन्तों में पाया जाता है । स्थूल कोण ऊत्तक का मुख्य कार्य पौधों को यांत्रिक आधार प्रदान करना तथा क्लोरोफिल की मौजूदगी में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा भोजन का निर्माण करना है ।
III . दृढ़ ऊत्तक ( Sclerenchyma )
दृढ़ ऊत्तक उन पौधों में पायें आते है , जिनकी कोशिकाओं लिग्निन ( Lignin ) युक्त होती हैं । ये पटसन , नारियल नाशपाती के गूदें तने व पत्तियों में पाये जाते है । ये दृढ़ता प्रदान करते है । नाशपाती की कोशिकाओं में पाये जाने वाले स्थूल कोण ऊत्तक को इढ़ कोशिकाएं ( Stone Cells ) या स्क्लेरीड्स ( Sclereids ) कहते है ।
ख . जटिल स्थायी ऊत्तक ( Comlex Permanent Tissues ) -
जटिल स्थायी ऊत्तकों का निर्माण विभिन्न आकार व संरचना वाले सरल ऊत्तकों के मिलने से होता है । ऐसे ऊत्तकों को कोशिकाएं आकार व संरचना में भिन्न होते हुए भी एक जैसे कार्य का ही संपादपन करती है । जटिल स्थायी ऊत्तक को ' संवहन ऊत्तक ' भी कहते हैं , क्योकि ये ऊत्तक जल एव खनिज लवणों को जड़ से पौधं तक पहुचने का कार्य करते है । जटिल स्थायी ऊतक दो प्रकार के होते हैI . दारू ऊत्तक ( xylem Tissues )
ये ऊत्तक पतली लंबी नलिकाओं के रूप में पौधों की जड़ से लेकर पत्तियों तक होते हैं । दारू उत्तक जल तथा लवणों को जड़ों से पत्तियों तक पहुँचाने का कार्य करते है तथा पौधों को दृढ़ता भी प्रदान करते है । लकड़ी ( Wood ) जाइलम ऊत्तकों का ही समूह होता है । दारू ऊत्तक को सामन्यत : काष्ठ भी कहते है । इसके दो मुख्य कोशिकीय प्रकार , वाहिकायें ( Tracheids ) तथा वाहिनिकायें ( Vessels ) होते है । ये दोनों ही मृत कोशिकाएं है ।
II . फ्लोएम ऊत्तक ( Phloem Tissues )
फ्लोएम ऊत्तक का मुख्य कार्य पत्तियों में बने खाद्य पदार्थों को पौधे के अन्य भागों तक पहुंचाना है । जूट , पटसन आदि फ्लोएम ऊत्तक के उदाहरण है । फ्लोएम के मुख्य संघटक चालनी नलिकाएं ( Sieve Tubes ) , सह कोशिकाएं ( Companion Cells ) फ्लोएम रेशे ( Fibres ) तथा फ्लोएम मृदुत्तक होते है ।
ग . रक्षी ऊत्तक ( Protective Tissues )
रक्षी ऊत्तक मिलकर पौधों के सबसे बाहरी भाग अर्थात् एपीडर्मिस कॉर्क एवं छाल आदि का निर्माण करते है । एपिडर्मिस की बाह्य सतह पर क्यूटिन ( Cutin ) अथवा सूबेरिन ( Suberin ) नामक कड़ा पदार्थ जमा रहता है , जो पौधों में वाष्पोत्सर्जन से होने वाली जल की हानि को कम करता है ।
घ . विशिष्ट ऊत्तक ( Special Tissues )
विशिष्ट ऊत्तक विभिन्न प्रकार के पदार्थो का स्त्राव करते है । इसी कारण इन्हें स्त्रावी ऊत्तक भी कहते है । उदाहरण - मदार के पत्ते को तोड़ने पर उससे रबर क्षीर ( Litex ) नामक तरल पदार्थ का स्त्रावण ।
Dear sir, download nhi ho rha, , please help me
ReplyDeleteWhat's Error its showing ?
DeleteDownload nahi ho raha h
ReplyDeletedownlode ni ho rha h
ReplyDeleteAppreciate thiss blog post
ReplyDelete