संसद , विभिन्न समितियों के माध्यम से अपने कर्तव्यों का निर्वहन करती है ।
ये समितियां सदन द्वारा नियुक्त अथवा निर्वाचित की जाती हैं या अध्यक्ष / सभापति द्वारा नामनिर्देशित की जाती हैं ।
ये अध्यक्ष / सभापति के निर्देशानुसार कार्य करती हैं तथा अपना प्रतिवेदन सदन को या लोकसभाध्यक्ष / सभापति को सौंपती हैं ।
संसदीय समितियों को मुख्यतः दो भागों में विभाजित किया जाता है ( i ) स्थायी समितियां ( ii ) तदर्थ समितियां
स्थायी समितियां , स्थायी प्रकृति की होती हैं , जो निरंतरता के आधार पर कार्य करती हैं ।
इनका गठन प्रत्येक वर्ष अथवा समय - समय पर किया जाता है ।
तदर्थ समितियों की प्रकृति अस्थायी होती है ।
जिस उद्देश्य के लिए उनका गठन किया जाता है , उसके पूरा होते ही इनका कार्यकाल भी समाप्त हो जाता है ।
स्थायी समितियां हैं -
1. वित्त समितियां
2. विभागीय स्थायी समिति
3. जांच समिति
4 . परीक्षण एवं नियंत्रण के लिए गठित समिति
5 . सदन के दैनिक कार्यों से संबंधित समितियां
6 . सदन समिति अथवा सेवा समिति
वित्त समितियों के अंतर्गत लोक लेखा समिति , प्राक्कलन समिति तथा सार्वजनिक उपक्रम समिति शामिल हैं ।
अपवादस्वरूप कुछ समितियों को छोड़कर लगभग सभी स्थायी समितियों में लोक सभा एवं राज्य सभा के सदस्यों का अनुपात क्रमशः 2 : 1 का होता है ।
लोक लेखा समिति में कुल 22 सदस्य होते हैं , जिनमें 15 सदस्य लोक सभा से और 7 सदस्य राज्य सभा से होते हैं ।
यह समिति भारत सरकार के विनियोग लेखा और उन पर नियंत्रक तथा महालेखापरीक्षक के प्रतिवेदन की जांच करती है ।
इस समिति का कार्यकाल एक वर्ष होता है ।
प्राक्कलन समिति में सदस्यों की संख्या 30 होती है ।
इसके सदस्य केवल लोक सभा से निर्वाचित होते हैं ।
यह समिति यह बताती है कि प्राक्कलनों में निहित नीति के अनुरूप क्या मितव्ययिता बरती जा सकती है तथा संगठन , कार्यकुशलता और प्रशासन में क्या - क्या सुधार किए जा सकते हैं ।
सरकारी उपक्रम समिति में 22 सदस्य ( 15 लोक सभा 7 राज्य सभा ) होते हैं ।
यह समिति सरकारी उपक्रमों के प्रतिवेदनों और लेखाओं की जांच करती है ।
याचिका समिति के सदस्यों की संख्या 15 होती है ।
लोक लेखा समिति अपनी रिपोर्ट लोक सभा के अध्यक्ष को सौंपती है ।
सामान्यतया लोक सभा से विपक्ष के किसी सदस्य को इसका अध्यक्ष नियुक्त किए जाने की परंपरा है ।
इस समिति के अध्यक्ष की नियुक्ति लोक सभाध्यक्ष द्वारा की जाती है ।