समाजशास्त्रीय चिंतन Important For B.A. Final Year [Important PDF]

Sociological Thought In HIndi For BA Exam

प्रमुख सामाजिक विचारक एवं उनकी प्रमुख रचनाएँ

1. इमाइल दुर्खीम - आत्महत्या , समाज में श्रम विभाजन , दी रूल्स ऑफ सोशियोलोजिकल मैथड्स ( समाजशास्त्रीय पद्धति के नियम ) , दी डिवीजन ऑफ लेबर इन सोसाइटी , शिक्षा एवं समाजशास्त्र , नैतिक शिक्षा , दर्शनशास्त्र एवं समाजशास्त्र ।

2.मैक्स वेबर - धर्म का समाजशास्त्र , दि प्रोटेस्टेण्ट एथिक एण्ड दि स्पिरिट ऑफ केपिटेलिज्म , प्राचीन जूड़ावाद , सामाजिक निबन्ध , चीन का धर्म , कन्फ्यूशियस तथा ताओवाद ।

3. कार्ल मार्क्स - दास कैपिटल ( 1867 ) , साम्यवादी घोषणापत्र , दि होली फैमिली , दी पावर्टी ऑफ फिलासफी ( 1847 ) , दी जर्मन आइडियोलोजी , दर्शन की दरिद्रता ( 1847 ) , द क्लास स्ट्रगल इन फ्रांस ।

4.डी.पी. मुकर्जी - डायवर्सिटीज ( विविधताएँ ) , भारतीय परम्परा और सामाजिक परिवर्तन , समाजशास्त्र की मूल अवधारणाएँ , व्यक्तित्व और सामाजिक विज्ञान , प्राब्लम्स ऑफ इण्डियन यूथ , भारतीय संगीत का परिचय , सोशियोलोजी ऑफ इण्डियन कल्चर ।

5. जुर्गेन हेबरमास - थ्योरी एण्ड प्रैक्टिस ( 1963 ) , लेजीटिमेशन क्राइसिस ( 1973 ) , टुवर्ड ए रैशनल सोसाइटी ( 1970 ) , नॉलेज एण्ड ह्यूमन इन्टरेस्ट्स ( 1968 ) , द थ्योरी ऑफ कम्यूनिकेटिव एक्शन ( 1981 ) , दि फिलोसोफिकल डिस्कोर्स ऑफ मॉडरनिटी ( 1988 ) , मॉरल कॉन्सियसनेस एण्ड कम्यूनिकेटिव एक्शन ( 1990 ) , पोस्ट मेटाफिजिकल थिंकिंग , द फ्यूचर ऑफ ह्यूमन नेचर ।

6. एन्टीनियो ग्राम्शी - दि मॉडर्न प्रिन्स एण्ड अदर राइटिंग , सिलेक्शन फ्राम द प्रिजन नोटबुक्स , सलेक्शन फ्राम पोलिटिकल राइटिंग ।

7. एन्थोनी गिडिंग्स - कैपिटलिज्म एण्ड मॉडर्न सोशल थ्योरी , सोशल थ्योरी इन द ट्वैन्टियथ सेन्चुरी , द कन्टेम्पोरेरी क्रिटिक ऑफ हिस्टोरिकल मैटेरियलिज्म , प्रोफाइल एण्ड क्रिटिक्स इन सोशल थ्योरी , द कॉन्स्टीट्यूशन ऑफ सोसाइटी : आउटलाइन ऑफ द थ्योरी स्ट्रेकचरेशन ।

8. ए.आर. देसाई - भारतीय राष्ट्रवाद की सामाजिक पृष्ठभूमि ( सोशियल बैकग्राउण्ड ऑफ इण्डियन नेशनलिज्म ) ।

9. एम.एन. श्रीनिवास - कास्ट इन मार्डन इण्डिया , मैरिज एण्ड फैमिली इन मैसूर , द रिमेम्बर्ड विलेज , रिलिजन्स एण्ड सोसायटी एमंग द कुर्गस आफ साउथ इण्डिया , सोशल चेन्ज इन माडर्न इण्डिया ।

अवधारणाओं एवं सिद्धान्तों के प्रतिपादक

1. इमाइल दुर्खीम -सामूहिक प्रतिनिधान , सावयवी एवं यांत्रिकी एकता , आत्महत्या का सिद्धान्त , सामाजिक तथ्य , सामाजिक एकता , समाज में श्रम विभाजन का सिद्धान्त , सामूहिक चेतना , आदर्शहीनता की अवधारणा , अहंवादी और परार्थवादी आत्महत्या , सामान्य तथा व्याधिकीय तथ्य ।

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2.मैक्स वेबर- आदर्श प्ररूप , सत्ता की अवधारणा , सामाजिक क्रिया , धर्म का समाजशास्त्र , संवेगात्मक या भावनात्मक क्रिया ।

3.कार्ल मार्क्स -अधिसंरचना एवं अधोसंरचना , वर्ग संघर्ष , ऐतिहासिक भौतिकवाद की अवधारणा , द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद , अतिरिक्त मूल्य का सिद्धान्त ।

4. डी.पी. मुकर्जी -परम्पराओं का द्वन्द्व ।

5. जुर्गेन हेबरमास- वैधता का संकट , अभिव्यक्तिशील क्रिया , उपकरणिक कारण सिद्धान्त , सांस्कृतिक उपव्यवस्था का सिद्धान्त , अभिप्रेरण सिद्धान्त , अभिव्यक्ति का युक्तायुक्त सिद्धान्त ।

6. एन्टोनियो ग्राम्शी -हेजेमनी सिद्धान्त , नागरिक समाज का सिद्धान्त ।

7. एन्थोनी गिडेन्स -संरचनाकरण सिद्धान्त , द्वैधता का सिद्धान्त , आधुनिकता का सिद्धान्त ।

8. ए.आर. देसाई- राष्ट्रवाद की अवधारणा , विकास के मार्ग की अवधारणा ।

9. एम.एन. श्रीनिवास- संस्कृतिकरण , पश्चिमीकरण , आधुनिकीकरण ।

महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

कम्यूनिस्ट मैनिफेस्टो के दोनों लेखकों के नाम बताइए ।

कम्यूनिस्ट मैनिफेस्टो के रचनाकार कार्ल मार्क्स और ऐंजिल्स हैं ।

साम्यवाद को परिभाषित कीजिए । अथवा साम्यवाद क्या है ?

साम्यवाद वह आर्थिक - राजनीतिक व्यवस्था है जिसमें राज्य आवश्यकता के अभाव में नष्ट हो जाता है । सम्पूर्ण उत्पादन के साधन का नियंत्रण समाज द्वारा होता है तथा प्रत्येक व्यक्ति को योग्यता के अनुसार कार्य व आवश्यकता के अनुसार वेतन मिलता है । साम्यवाद समाजवाद के बाद की अवस्था है ।

कार्ल मार्क्स ने द्वन्द्वात्मकता की अवधारणा किससे ली ?

कार्ल मार्क्स ने द्वन्द्वात्मकता की अवधारणा हीगल से ग्रहण की ।

अलगाव की अवधारणा किसने प्रतिपादित की ?

अलगाव की अवधारणा कार्ल मार्क्स ने प्रतिपादित की ।

वर्ग संघर्ष का सिद्धान्त किसने दिया ?

वर्ग संघर्ष का सिद्धान्त कार्ल मार्क्स ने दिया ।

दास कैपिटल का रचयिता कौन है ?

दास कैपिटल का रचयिता कार्ल मार्क्स है ।

सामाजिक उद्विकास की अवधारणा किसने दी ?

सामाजिक उद्विकास की अवधारणा हरबर्ट स्पेन्सर ने दी ।

अतिरिक्त मूल्य किसे कहते हैं ?

मार्क्स के अनुसार प्रत्येक वस्तु के मूल्य का निर्धारणकर्ता श्रमिका का श्रम है तथा जिस कीमत पर वह बाजार में बिकती है , उसमें बहुत अंतर होता है । मार्क्स इस अन्तर को अतिरिक्त मूल्य मानता है जिसे बिना कुछ किए ही पूँजीपति बीच में हड़प जाता है । यह सिद्धान्त मार्क्स की पुस्तक ' दास कैपिटल ' में प्राप्त होता है ।

मार्क्स के अनुसार वर्ग को परिभाषित कीजिए ।

वर्ग से मार्क्स का अभिप्राय उन जन - समूहों से है जिनकी परिभाषा उत्पादन की प्रक्रिया में उनकी भूमिका के द्वारा की जा सकती है । “ वर्ग ऐसे लोगों के समूह को कहते हैं जो अपनी जीविका एक ही ढंग से कमाते हैं । ”

आदर्शवाद से क्या आशय है ?

आदर्शवाद ( Idealism ) के अनुसार हमारी चेतना , विचार , प्रत्यक्ष दर्शन उपलब्धि ( Perception ) और अनुभूति ( Sensation ) में ही भौतिक जगत , प्रकृति और जीवन का अस्तित्व है । यह भौतिकवाद का विरोधी विचार है ।

वर्ग एवं वर्ग संघर्ष को परिभाषित कीजिए ।

वर्ग लोगों का एक समूह है जो अपनी जीविका एक ही ढंग से कमाता है । दो विरोधी वर्गों के हितों में होने वाले संघर्ष को वर्ग संघर्ष कहा जाता है ।

कार्ल मार्क्स के अनुसार पूँजीवादी समाज के मुख्य वर्ग कौनसे हैं ?

कार्ल मार्क्स के अनुसार पूँजीवाद समाज में दो वर्ग होते हैं प्रथम वर्ग , पूँजीपति वर्ग ( बुर्जुआ ) और द्वितीय वर्ग , श्रमिकों ( सर्वहारा ) का होता है ।

मार्क्स किस प्रकार सामाजिक वर्ग को परिभाषित करते हैं ?

सामाजिक वर्ग – ऐतिहासिक परिवर्तन की इकाई तथा आर्थिक व्यवस्था द्वारा समाज में निर्मित श्रेणियाँ दोनों है ।

अलगाव को परिभाषित कीजिए । अथवा अलगाव क्या है ?

अलगाव वह स्थिति है जिसमें व्यक्ति व्यक्ति से , व्यक्ति समूह से , व्यक्ति समाज से , यहाँ तक कि व्यक्ति स्वयं से लगाव नहीं ( अ + लगाव ) रखता है । मार्क्स ने तीन प्रकार से अलगाव की विवेचना की है— ( 1 ) कार्य के उत्पादन से अलगाव , ( 2 ) समाज से अलगाव , ( 3 ) श्रम से अलगाव तथा उत्पादन की प्रक्रिया से अलगाव ।

“ द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद ” क्या है ?

द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद के अनुसार समस्त विश्व का आधार भौतिक पदार्थ है । इसके अनुसार विश्व में सभी परिणामों और परिवर्तनों का कारण भौतिक पदार्थ है । कार्ल मार्क्स की कोई छः प्रमुख रचनाओं का उल्लेख कीजिए । ( 1 ) पवित्र परिवार , ( 2 ) दर्शन की दरिद्रता , ( 3 ) साम्यवादी घोषणा - पत्र , ( 4 ) दास कैपिटल , ( 5 ) राजनीतिक अर्थव्यवस्था की विवेचना , ( 6 ) मूल्य , कीमत और लाभ ।

कार्ल मार्क्स के प्रमुख सिद्धान्त कौन - कौन से हैं ? अथवा कार्ल मार्क्स के प्रमुख योगदानों का उल्लेख कीजिए ।

( 1 ) द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद , ( 2 ) वर्ग संघर्ष , ( 3 ) अतिरिक्त मूल्य का सिद्धान्त , ( 4 ) अलगाववाद का सिद्धान्त , तथा ( 5 ) सामाजिक परिवर्तन का सिद्धान्त ।

द्वन्द्वात्मक का अर्थ क्या होता है ?

द्वन्द्वात्मक शब्द अंग्रेजी भाषा के Dialectics का हिन्दी रूपान्तरण है जो ग्रीक भाषा के डायलेगो शब्द से बना है , जिसका अर्थ वाद - विवाद करना होता है ।

हीगल के द्वन्द्वात्मक की कोई दो विशेषताएँ बताइए ।

( 1 ) विश्व निरन्तर प्रवाह की स्थिति में है , यह वाद , प्रतिवाद और संवाद से गुजरता है । ( 2 ) गति विरोध के संघर्ष पर निर्भर करती है ।

द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद के दो प्रमुख लक्षण या विशेषताएँ बताइए ।

( 1 ) प्रत्येक वस्तु गतिशील अवस्था में होती है । चूँकि , परिवर्तन प्रकृति का अवश्यम्भावी नियम है , अत : प्रत्येक वस्तु में परिवर्तन होता है । ( 2 ) विकास संघर्ष की प्रक्रिया द्वारा होता है ।

कार्ल मार्क्स और हीगल के द्वन्द्वात्मक की तुलना का एक बिन्दु लिखिए ।

हीगल के लिए विकास का अंतिम चरण निरपेक्ष विचार की अनुभूति है जबकि मार्क्स के लिए विकास का अंतिम चरण एक वर्गहीन समाज की स्थापना है ।

मार्क्स के द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद की कोई दो आलोचनाएँ लिखिए ।

( 1 ) अत्यन्त भौतिकवादी दर्शन , ( 2 ) अत्यधिक अस्पष्ट ।

द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद के महत्व को स्पष्ट कीजिए ।

( 1 ) पूँजीवाद का अन्त एवं समाजवाद की स्थापना , ( 2 ) मजदूर क्रान्ति का आह्वान , ( 3 ) पूँजीपतियों के लिए चेतावनी ।

हीगल के द्वन्द्ववाद की कोई चार विशेषताएँ बतलाइए ।

( 1 ) चेतना या विचार की प्रधानता , ( 2 ) निरन्तर प्रगतिमूलक , ( 3 ) इतिहास आत्म तत्त्व ( जीस्ट ) के निरन्तर विकास की कहानी , ( 4 ) सत्य वस्तु का कभी विनाश नहीं ।

वर्ग की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए ।

( 1 ) समूहों का उतार - चढ़ाव , ( 2 ) समान प्रस्थिति , ( 3 ) सीमित सामाजिक सम्बन्ध , ( 4 ) मुक्त द्वार , ( 5 ) जन्म का महत्व नहीं ।

मार्क्स ने कौन - कौन से वर्गों का उल्लेख किया है ?

( 1 ) वित्तीय बुर्जुआ , ( 2 ) औद्योगिक बुर्जुआ , ( 3 ) पेटीट बुर्जुआ , ( 4 ) कृषक वर्ग , ( 5 ) सर्वहारा वर्ग , ( 6 ) उपसर्वहारा वर्ग ।

क्या आदिम साम्यवादी समाज में वर्ग थे ?

नहीं , क्योंकि सभी की सामूहिक सम्पत्ति होती थी ।

दासत्व युग में कौन - कौन से वर्ग बने ?

दासत्व युग में दो वर्ग बने — दास स्वामी वर्ग और दास वर्ग ।

सामंती समाज में कौन - कौन से वर्गों का निर्माण हुआ ?

सामन्तवादी समाज में दो प्रमुख वर्ग बने — सामंत वर्ग व अर्द्धदास किसान वर्ग ।

पूँजीवादी समाज में कौन - कौन से वर्गों का निर्माण हुआ ? अथवा कार्ल मार्क्स के अनुसार पूँजीवादी समाज के मुख्य वर्ग कौनसे हैं ?

पूँजीवादी या बुर्जुआ वर्ग और श्रमिक या सर्वहारा वर्ग का निर्माण हुआ ।

कार्ल मार्क्स ने वर्ग संघर्ष के कौन - कौन से मुख्य कारण बताये हैं ?

व्यक्तिगत लाभ के लिए उत्पादन ; विशाल उत्पादन ; "" एकाधिकार व पूँजी का संचय ; आर्थिक संकटों एवं श्रमिकों के कष्टों में वृद्धि ; अतिरिक्त मूल्य को पूँजीपति वर्ग द्वारा उत्तर उत्तर उत्तर हड़प लेना ।

मार्क्स ने पूँजीवाद के विनाश के कौन - कौन से मुख्य कारण बताये हैं ?

( 1 ) व्यक्तिगत तत्त्व की समाप्ति , ( 2 ) पूँजीपति वर्ग द्वारा अतिरिक्त मूल्य को हड़प लेना , तथा ( 3 ) श्रमिकों में एकता का उदय ।

वर्ग चेतना को स्पष्ट कीजिए । अथवा वर्ग चेतना का अर्थ बताइए ।

एक - सी स्थिति में काम करने वाले श्रमिकों की इस स्थिति के प्रति उपजी व्यक्तिगत चेतना जब सामूहिक चेतना में बदल जाती है तो उसे वर्ग चेतना कहते हैं । प्रत्येक वर्ग के लोगों में वर्ग चेतना पाई जाती है ।

मार्क्स और हीगल के द्वन्द्ववाद में कोई दो अन्तर बताइए ।

( 1 ) मार्क्स का द्वन्द्ववाद भौतिक पदार्थ पर जबकि हीगल का द्वन्द्ववाद विचार पर आधारित है । ( 2 ) मार्क्स का द्वन्द्ववाद वास्तविक एवं व्यावहारिक है जबकि हीगल का द्वन्द्ववाद आदर्शवादी एवं काल्पनिक है ।

मार्क्स के द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद के कोई दो उद्देश्य बताइए ।

( 1 ) यह प्रमाणित करना कि पूँजीवादी समाज का विनाश अवश्यम्भावी है । ( 2 ) श्रमिक क्रान्ति तथा समाजवादी क्रान्ति को आवश्यक व उचित ठहराना ।

किसने धर्म को समाज में अफीम की संज्ञा दी है ?

कार्ल मार्क्स ने धर्म को समाज में अफीम की संज्ञा दी है ।

कार्ल मार्क्स ने द्वन्द्ववाद का दर्शन किससे ग्रहण किया है ?

कार्ल मार्क्स ने द्वन्द्ववाद का दर्शन हीगल से ग्रहण किया है ।

सामूहिक प्रतिनिधान की अवधारणा किसने प्रतिपादित की ?

सामूहिक प्रतिनिधान की अवधारणा इमाइल दुर्खीम ने प्रतिपादित की ।

प्रकार्य क्या है ?

दुर्खीम के अनुसार प्रकार्य तो वह कार्य है , जिसके अभाव में किसी सावयव की या उसके तत्वों की मौलिक आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं हो पाती ।

सामाजिक मूल्य को समझाइए ।

दुर्खीम के अनुसार , समस्त सामाजिक मूल्य समूह से उत्पन्न होते हैं समाज में प्रचलित समस्त मूल्य समाज की रुचियों की अभिव्यक्ति है । केवल नैतिक मूल्य ही नहीं बल्कि जिन - जिन प्रतिमानों या आदर्शों अथवा वस्तुओं को समूह प्राथमिकता देता है वे ही सामाजिक मूल्य बन जाते हैं ।

सामाजिक तथ्य की अवधारणा किसने दी है ?

सामाजिक तथ्य की अवधारणा दुीम ने दी ।

सामाजिक तथ्य को परिभाषित कीजिए । अथवा सामाजिक तथ्य क्या है ?

दुर्खीम के अनुसार सामाजिक तथ्य व्यक्ति के कार्य करने , व्यवहार करने , अनुभव करने तथा सोचने - समझने के तरीके हैं ।

यांत्रिक एकता की दो विशेषताएँ बताइए ।

दुर्खीम ने यान्त्रिक एकता की निम्नलिखित दो विशेषताएँ बताई हैं - ( 1 ) समूह का लघु आकार , और ( 2 ) धर्म का महत्त्व ।

सावयवी समाज की कोई दो विशेषताएँ बताइए ।

( 1 ) विभेदीकरण की जटिल प्रक्रिया , और ( 2 ) प्रतिकारी कानून ।

दुर्खीम के सामाजिक तथ्य के सिद्धान्त की दो आलोचनाएँ दीजिए ।

( 1 ) “ बाध्यता ” शब्द का प्रयोग अत्यन्त अनुपयुक्त है । ( 2 ) सामान्य तथ्य को वस्तु के समान समझना , किन्तु अर्थ स्पष्ट नहीं ।

दुर्खीम की प्रमुख रचनाओं के नाम लिखिए ।

दुर्खीम की प्रमुख रचनाएँ हैं- ( 1 ) समाज में श्रम विभाजन , ( 2 ) समाजशास्त्रीय पद्धति के नियम ( दी रूल्स ऑफ सोशियोलॉजीकल मेथड्स ) , ( 3 ) आत्महत्या ( दी सुसाइड ) , ( 4 ) धार्मिक सिद्धान्त , तथा ( 5 ) शिक्षा एवं समाजशास्त्र ।

दुर्खीम ने कौनसी सामाजिक एकताओं की व्याख्या की है ?

दुर्खीम ने यान्त्रिक एकता एवं सावयवी एकता की व्याख्या की है ।

यांत्रिक एकता किसे कहते हैं ?

यांत्रिक एकता आदिम सरल समाजों में पायी जाती है । ये समाज ऐसे होते हैं जिनका आकार छोटा होता है , जिसके सभी सदस्य रक्त सम्बन्धी होते हैं , जिनकी सामूहिक सम्पत्ति होती है , इसलिए उनमें परस्पर सहयोग पाया जाता है । इसी को यांत्रिक - एकता कहते हैं ।

सावयवी एकता किसे कहते हैं ?

सावयवी एकता आधुनिक जटिल समाजों में पायी जाती है । ये समाज इस प्रकार के होते हैं जिनका आकार बड़ा होता है , सदस्यों की निजी सम्पत्ति होती है लेकिन वे आवश्यकता पूर्ति के लिए एक - दूसरे पर निर्भर रहते हैं । इसीलिए उनमें सहयोग पाया जाता है , इसी को सावयवी एकता कहते हैं ।

सामाजिक तथ्य क्या होते हैं ?

सामाजिक तथ्य क्रिया करने , अनुभव करने , व्यवहार करने व सोचने के तरीके हैं ।

दुर्खीम ने सामाजिक तथ्यों में कौन - कौन सी विशेषताएँ बतायी हैं ?

( 1 ) सार्वभौमिकता , ( 2 ) सामाजिक उत्पत्ति , ( 3 ) बाध्यता , ( 4 ) बाह्यता , ( 5 ) सामाजिक तथ्य क्रिया करने , अनुभव करने व सोचने के तरीके होते हैं ।

दुर्खीम ने सामाजिक तथ्यों के अवलोकन के कौन - कौन से नियम बताये हैं ?

( 1 ) पूर्व मान्यताओं का निराकरण , ( 2 ) तथ्यों को वस्तु के रूप में समझना , ( 3 ) विषय - वस्तु की स्पष्ट परिभाषा , ( 4 ) व्यक्तिगत एवं सामाजिक तथ्यों को पृथक् करना ।

दुर्खीम के अनुसार सामान्य तथ्य किसे कहते हैं ?

जो तथ्य समाज में अधिक संख्या में पाये जाते हैं , जिनको समाज अपनी मान्यता प्रदान कर देता है , उन्हें सामान्य तथ्य कहते हैं ।

दुर्खीम के अनुसार व्याधिकीय तथ्य किसे कहते हैं ?

जो तथ्य कम संख्या में पाये जाते हैं , जिनमें परिवर्तन हो जाता है , जिन्हें समाज स्वीकृति नहीं देता है , उन्हीं को व्याधिकीय तथ्य कहते हैं ।

दुर्खीम ने समाज के कौन - कौन से प्रकार बताये हैं ?

( 1 ) सरल समाज , ( 2 ) साधारण बहु - खण्डीय समाज , ( 3 ) साधारण मिश्रित समाज , तथा ( 4 ) दोहरा मिश्रित बहुखण्डीय समाज ।

दुर्खीम ने सामान्य और व्याधिकीय तथ्यों में अन्तर करने के कौन - कौन से नियम बताये हैं ?

( 1 ) व्यापकता , ( 2 ) पिछली घटना का आकार , ( 3 ) अविकसित , अर्द्धविकसित से विकसित समाज की तुलना करके ।

दुर्खीम ने सामाजिक तथ्यों की प्रामाणिकता के कौन - कौन से नियम बताये हैं ?

( 1 ) ऐतिहासिकता , ( 2 ) तुलनात्मक आधार पर , ( 3 ) प्रकार्यात्मकता का आधार ।

यांत्रिक और सावयवी एकता में तीन अन्तर बताइए ।

( 1 ) यांत्रिक एकता सामूहिकता पर बल देती है जबकि सावयवी एकता व्यक्तिगत स्वतन्त्रता पर बल देती है । ( 2 ) यांत्रिक एकता आदिम सरल समाजों में पायी जाती है जबकि सावयवी एकता आधुनिक जटिल समाजों में पायी जाती है । ( 3 ) यांत्रिक एकता की अभिव्यक्ति दमनकारी कानूनों में होती है जबकि सावयवी एकता की प्रतिकारी कानूनों में ।

दुर्खीम ने कानून के कौन - कौन से प्रकार बताये हैं ? अथवा दमनकारी कानून क्या है ?

दुर्खीम ने कानून के दो प्रमुख प्रकार बताये हैं— ( 1 ) दमनकारी कानून , तथा ( 2 ) प्रतिकारी कानून । दमनकारी कानून दण्डकारी और व्याप्त होते हैं , जबकि प्रतिकारी कानून संवैधानिक , व्यावसायिक और प्रशासनिक होते हैं ।

दमनकारी एवं प्रतिकारी कानूनों में अन्तर कीजिए ।

दुर्खीम के अनुसार दमनकारी कानून दण्डकारी और व्याप्त होते हैं , जबकि प्रतिकारी कानून संवैधानिक , व्यावसायिक एवं प्रशासनिक होते हैं ।

दुर्खीम ने आत्महत्या के कौन - कौन से प्रकारों का उल्लेख किया है ?

( 1 ) आदर्शहीन , ( 2 ) घातक , ( 3 ) परार्थवादी , तथा ( 4 ) अहंवादी आत्महत्या ।

मैक्स वेबर के अनुसार सामाजिक क्रिया को परिभाषित कीजिए ।

वेबर के अनुसार , “ किसी भी क्रिया को हमें सामाजिक क्रिया तभी कहना चाहिए जबकि उस क्रिया को करने वाले व्यक्ति या व्यक्तियों के द्वारा लगाये गये व्यक्तिनिष्ठ अर्थ के अनुसार उस क्रिया में दूसरी व्यक्तियों के मनोभाव तथा क्रियाओं का समावेश हो और उसी के अनुसार उनकी गतिविधि हो । ”

आदर्श प्ररूप का क्या अर्थ है ?

वेबर के अनुसार , “ आदर्श प्ररूप प्राक्कल्पनात्मक मूर्त स्थितियाँ ( सामाजिक दशा , क्रान्ति , परिवर्तन , व्यक्ति , वर्ग आदि ) हैं । इनका निर्माण सामाजिक यथार्थ के आधार पर किया जाता है और इनका निश्चित उपयोग तुलनात्मक है । ”

मैक्स वेबर के अनुसार ‘ ज्वेकराशनल सामाजिक क्रिया ’ से क्या अभिप्राय है ? अथवा वेबर के अनुसार तार्किक क्रिया को परिभाषित कीजिए ।

वेबर के अनुसार जब व्यक्ति तर्क द्वारा कोई लक्ष्य निश्चित करता है तथा साधन का उपयोग उसकी प्राप्ति हेतु योजनाबद्ध रूप से करता है तो इन सबसे सम्बन्धित उस व्यक्ति की क्रिया ज्वेकराशनल सामाजिक क्रिया अथवा ‘ तार्किक क्रिया ’ कहलाती है ।

मैक्स वेबर के अनुसार मूल्य - अभिमुख तार्किक क्रिया से क्या अर्थ है ?

मैक्स वेबर के अनुसार मूल्य - अभिमुख तार्किक क्रिया में मूल्य को प्राप्त करना ही कर्ता का अन्तिम लक्ष्य होता है , इसे प्राप्त करने में कर्ता कीमत की चिन्ता नहीं करता है ।

मैक्स वेबर की प्रमुख रचनाओं के नाम लिखिए ।

( 1 ) दि प्रोटेस्टेण्ट एथिक एण्ड दी स्पिरिट ऑफ केपिटेलिज्म , ( 2 ) दि रिलीजन ऑफ चाइना , ( 3 ) दि रिलीजन ऑफ इण्डिया , ( 4 ) एनसिएण्ट जुडेइज्म , ( 5 ) इकोनोमी एण्ड सोसायटी , ( 6 ) एसेज इन सोसियोलॉजी , ( 7 ) दि सोसियोलोजी ऑफ रिलीजन ।

कौन मानता है कि सामाजिक क्रिया समाजशास्त्र की विषय - वस्तु है ?

मैक्स बेबर मानता है कि सामाजिक क्रिया समाजशास्त्र की विषय - वस्तु है ।

सामाजिक क्रिया किसे कहते हैं ? अथवा सामाजिक क्रिया से क्या अभिप्राय है ?

सामाजिक क्रिया एक ऐसी क्रिया है जो दूसरों के व्यवहारों द्वारा प्रभावित होती है । यह व्यवहार भावी , वर्तमान और भूतकालीन हो सकता है ।

मैक्स वेबर ने सामाजिक क्रिया के कौन - कौन से प्रकार बताये हैं ? अथवा मैक्स वेबर द्वारा प्रतिपादित सामाजिक क्रिया के प्रकार लिखिए ।

मैक्स वेबर ने सामाजिक क्रिया के चार प्रकार बताये हैं— ( 1 ) तार्किक क्रिया , ( 2 ) मूल्यांकन क्रिया , ( 3 ) भावात्मक क्रिया , तथा ( 4 ) परम्परात्मक क्रिया ।

मैक्स वेबर ने सामाजिक क्रिया की कौन - कौन सी विशेषताओं का उल्लेख किया है ?

( 1 ) प्रत्येक क्रिया भूतकालीन , वर्तमानकालीन और भावी व्यवहार से प्रभावित हो सकती है । ( 2 ) प्रत्येक क्रिया सामाजिक क्रिया नहीं । ( 3 ) प्रत्येक सम्पर्क सामाजिक सम्पर्क नहीं ।

मैक्स वेबर के आदर्श प्ररूप की अवधारणा क्या है ?

आदर्श प्ररूप का अर्थ वास्तविक सामाजिक जीवन में पाये जाने वाले तथ्यों में से पैमाने या मानक के रूप में विचारपूर्वक कुछ तथ्यों के चयन से है ।

मैक्स वेबर ने सत्ता के कौन - कौन से प्रकार बताये हैं ? अथवा मैक्स वेबर के अनुसार सत्ता के प्रकार बताइए ।

( 1 ) वैधानिक सत्ता , ( 2 ) परम्परात्मक सत्ता , तथा ( 3 ) चमत्कारिक सत्ता ।

मैक्स वेबर ने धर्म के समाजशास्त्र में किस बात का उल्लेख किया है ?

मैक्स वेबर ने धर्म के समाजशास्त्र में इस बात का उल्लेख किया है कि आधुनिक पूँजीवाद का प्रारम्भ यूरोप में प्रोटेस्टेण्ट धर्म के कारण हुआ है ।

मैक्स वेबर ने पूँजीवाद के आधार क्या बताये हैं ?

( 1 ) कार्य ही पूजा है , ( 2 ) ब्याज पर कर्ज देकर धन में वृद्धि की जाए , ( 3 ) अवकाश पर रोक , ( 4 ) जुआखोरी व शराबखोरी पर रोक ।

मैक्स वेबर के पद्धतिशास्त्र की दो मुख्य विशेषताएँ बताइए ।

( 1 ) वेबर ने प्राकृतिक विज्ञानों की भाँति ही सामाजिक घटनाओं को समझने के लिए कार्य - कारण सम्बन्धों के आधार पर व्याख्या करने पर जोर दिया । ( 2 ) सामाजिक घटनाओं को समझने के लिए आदर्श प्ररूप का निर्माण जरूरी है ।

आदर्श प्ररूप की मुख्य विशेषता बताइए ।

आदर्श प्ररूप सब कुछ का वर्णन या विश्लेषण नहीं करता वरन् किसी सामाजिक व्यवहार या घटना के महत्त्वपूर्ण पक्षों की व्याख्या या निर्वचन करता है ।

सत्ता की अवधारणा का प्रतिपादन किसने किया था ?

सत्ता की अवधारणा का प्रतिपादन मैक्स वेबर ने किया था ।

मैक्स वेबर ने सत्ता की क्या परिभाषा दी है ? अथवा वेबर के अनुसार सत्ता क्या है ?

मैक्स वेबर के अनुसार , सत्ता वह स्थिति है , जिसमें स्वामी की आज्ञा का पालन व्यक्ति या समूह करते हैं , जो अपनी स्थिति को स्वामी के कारण मानते हैं ।

मैक्स वेबर ने सत्ता के किन - किन प्रकारों का उल्लेख किया है ?

मैक्स वेबर ने सत्ता के तीन रूपों का उल्लेख किया है ( 1 ) परम्परागत सत्ता , ( 2 ) तार्किक सत्ता , और ( 3 ) करिश्माई अथवा चमत्कारिक सत्ता ।

परम्परागत सत्ता से क्या तात्पर्य है ? एक उदाहरण दीजिए ।

जब किसी व्यक्ति को किसी परम्परा के आधार पर प्राप्त पद से सत्ता प्राप्त होती है , तो उसे परम्परागत सत्ता कहा जाता है । उदाहरण -पितृसत्तात्मक परिवार में पिता को प्राप्त सत्ता परम्परागत सत्ता है ।

वैधानिक सत्ता से क्या आशय है ? अथवा मैक्स वेबर ने कानूनी सत्ता किसे कहा है ?

किसी व्यक्ति को राज्य के नियम - उपनियम के अनुसार अपने पद से सम्बन्धित अधिकारों के आधार पर सत्ता प्राप्त होती है , तो उसे वैधानिक अथवा कानूनी सत्ता कहते हैं ।

मैक्स वेबर द्वारा प्रतिपादित परम्परागत सत्ता के दो लक्षण ( विशेषताएँ ) बताइए ।

मैक्स वेबर की परम्परागत सत्ता के दो लक्षण हैं— ( 1 ) परम्परागत सत्ता प्राप्ति के स्रोत परम्पराएँ अथवा प्रथाएँ होती हैं । ( 2 ) परम्परागत सत्ता का क्षेत्र निश्चित नहीं होता है ।

मैक्स वेबर ने करिश्माई सत्ता किसे कहा है ? अथवा ‘ चमत्कारिक सत्ता ’ से आप क्या समझते हैं ?

वह सत्ता जो किसी नेता के करिश्माई व्यक्तित्व अथवा चमत्कार पर आधारित होती है , उसे करिश्माई अथवा चमत्कारिक सत्ता कहा जाता है ।

करिश्मात्मक अथवा चमत्कारिक सत्ता का क्षेत्र स्पष्ट कीजिए ।

करिश्मात्मक अथवा चमत्कारिक सत्ता का कोई निश्चित क्षेत्र नहीं होता है । इस सत्ता का क्षेत्र व्यापक होता है । यह नेता के व्यक्तित्व पर निर्भर करता है ।

वैधानिक अथवा कानूनी सत्ता का क्षेत्र बताइए ।

वैधानिक अथवा कानूनी सत्ता का क्षेत्र वैधानिक नियमों - उपनियमों द्वारा सीमित होता है । वैधानिक नियम - उपनियम द्वारा सत्ताधारी व्यक्ति को जो भी अधिकार प्रदान किए जाते हैं , वह उनसे बाहर सत्ता का प्रयोग नहीं कर सकता है ।

करिश्मात्मक सत्ता की अवधि कितनी होती है ?

करिश्मात्मक सत्ता की अवधि मूलतः अस्थायी प्रकृति की होती है । जब तक सत्ताधारी में करिश्मा अथवा चमत्कार रहता है , सत्ता बनी रहती है परन्तु जैसे ही सत्ताधारी का चमत्कार अथवा करिश्माई नेतृत्व कमजोर होने लगता है , वैसे ही उसकी सत्ता का पतन होने लगता है ।

वेबर के अनुसार शक्ति क्या है ?

वेबर के अनुसार , “ अन्य व्यक्तियों के व्यवहारों पर अपनी इच्छा को आरोपित करने की सम्भावना को ही शक्ति ( Power ) कहा जाता है । ”

जुर्गेन हेबरमास के प्रमुख योगदान बताइए ।

( 1 ) अभिव्यक्तिशील क्रिया का सिद्धान्त तथा ( 2 ) ज्ञान को महत्त्वपूर्ण स्थान ।

फ्रेंकफर्ट स्कूल से कौन जुड़ा हुआ है ?

जुर्गेन हेबरमास ।

जुर्गेन हेबरमास के बारे में आप क्या जानते हैं ?

जुर्गेन हेबरमास एक जर्मन विवेचनात्मक सिद्धान्तवेत्ता हैं जिन्हें राजनीतिक विचारकों में मार्क्सवादी विचारक माना जाता है ।

हेबरमास का जन्म कब और कहाँ पर हुआ था ?

जुर्गेन हेबरमास जर्मन समाजशास्त्री हैं जिनका जन्म सन् 1929 ई . में जर्मनी के एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था ।

हेबरमास द्वारा प्रतिपादित ‘ आलोचनात्मक सिद्धान्त ’ का उद्देश्य क्या है ?

हेबरमास द्वारा प्रतिपादित आलोचनात्मक सिद्धान्त का उद्देश्य है - अभिव्यक्तिशील क्रिया के माध्यम से सांस्कृतिक उद्विकास की उच्च अवस्था को समझना ।

जुर्गेन हेबरमास द्वारा लिखित किन्हीं तीन पुस्तकों के नाम बताइए ।

जुर्गेन हेबरमास द्वारा लिखित तीन प्रमुख पुस्तकों के नाम हैं— ( 1 ) लेजिटिमेशन क्राइसेस , ( 2 ) द थ्योरी ऑफ कम्यूनिकेटिव एक्शन , तथा ( 3 ) दी फ्यूचर ऑफ उत्तर ह्यूमन नेचर ।

जुर्गेन हेबरमास ने मार्क्सवाद की जो आलोचना की है , उसके किन्हीं दो बिन्दुओं का उल्लेख कीजिए ।

मार्क्सवाद की आलोचना के दो प्रमुख बिन्दु हैं— ( 1 ) मार्क्स द्वारा अधिसंरचना की पूर्णत : अवहेलना की गई है । ( 2 ) मार्क्स की श्रम और उत्पादन की अवधारणा सांस्कृतिक एवं राजनीतिक जीवन को समझने में असमर्थ रही है ।

वैधता के संकट के कारण जुर्गेन हेबरमास ने किनकी कड़ी आलोचना की है ?

हेबरमास ने समाज में वैधता के संकट के कारण पूँजीवादी समाज तथा प्रत्यक्षवादी विज्ञानों की कठोर आलोचना की है ।

हेबरमास के अनुसार संज्ञान क्या है ?

हेबरमास के अनुसार संज्ञान एक ऐसी मानसिक क्रिया है जिसके द्वारा हम अपनी इन्द्रियों के माध्यम से अपने समाज के बारे में बोध ग्रहण करते हैं ।

हेबरमास के अनुसार अभिप्रेरण संकट तथा वैधीकरण संकट कब उत्पन्न होते हैं ?

( 1 ) जब लोगों में प्रतिबद्धता पैदा करने वाले सांस्कृतिक प्रतीक जन्म नहीं ले पाते , तब सांस्कृतिक उपव्यवस्था में अभिप्रेरण का संकट पैदा होता है । ( 2 ) वैधीकरण संकट तब उत्पन्न होता है , जब पर्याप्त रूप से अभिप्रेरण नहीं होते हैं ।

‘ उपकरणिक कारण ’ की अवधारणा का प्रतिपादन किसके द्वारा किया गया ? अथवा ‘ उपकरणिक कारण की अवधारणा ’ किस प्रकार विकसित हुई है ?

प्रौद्योगिकी विकास के परिणामस्वरूप नई तकनीकी चेतना ने एक नई अवधारणा को विकसित किया है जिसे जुर्गन हेबरमास ने ‘ उपकरणिक कारण ’ की अवधारणा कहा है ।

हेबरमास के अनुसार तकनीकी चेतना के परिणामस्वरूप पूँजीवादी समाज कितनी उपव्यवस्थाओं में विभक्त हो गया है ?

तकनीकी चेतना के परिणामस्वरूप पूँजीवादी समाज तीन उपव्यवस्थाओं में विभक्त हो गया है- ( 1 ) आर्थिक , ( 2 ) राजनीतिक एवं प्रशासनिक , तथा ( 3 ) सांस्कृतिक ।

हेबरमास के अनुसार समाज में वैधता का संकट कब उत्पन्न होता है ?

हेबरमास के अनुसार प्रौद्योगिकी युग में लक्ष्य प्राप्त करने का साधन दक्षता हो गया है , जो कि मानकों एवं मूल्यों की उपेक्षा करता है । इसी के परिणामस्वरूप समाज में ‘ वैधता का संकट ’ उत्पन्न होता है ।

आर्थिक उपव्यवस्था तथा राजनीतिक , प्रशासनिक उपव्यवस्था में वैधता का संकट कब उत्पन्न होता है ?

( 1 ) जब आर्थिक उपव्यवस्था लोगों की आवश्यकताओं के अनुसार पर्याप्त उत्पादन नहीं कर पाती , तो इससे वैधता का संकट उत्पन्न होता है । ( 2 ) जब राजनीतिक प्रशासनिक उपव्यवस्था उपकरण सम्बन्धी पर्याप्त निर्णय नहीं ले पाती है , तो इससे वैधता का संकट उत्पन्न होता है ।

समाज में तकनीकों के प्रयोग के हेबरमास ने कौनसे चार चरणों का उल्लेख किया है ?

समाज में राज्य लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए तकनीकों के प्रयोग को निम्न चरणों में लागू करता है- ( 1 ) विज्ञान का प्रयोग , ( 2 ) दक्षता को आधार बनाना , ( 3 ) मूल्यों का दक्षता के संदर्भ में विश्लेषण करना , ( 4 ) कम्प्यूटर द्वारा निर्णय करना ।

हेबरमास की अभिव्यक्तिशील तर्क की अवधारणा क्या है ?

हेबरमास का मानना है कि समाज की मूल अभिसंरचना के निर्माण में संचार की भूमिका निर्णायक होती है । यही उनकी अभिव्यक्तिशील तर्क की अवधारणा है ।

हेबरमास का अभिव्यक्तिशील क्रिया का सिद्धान्त क्या है ?

हेबरमास ने सांस्कृतिक उद्विकास की उच्च अवस्था को समझने के लिए अभिव्यक्तिशील क्रिया तथा बुद्धिसंगतता को आधार बनाया है । इसी को उनका ‘ अभिव्यक्तिशील क्रिया का सिद्धान्त ’ कहा जाता है ।

हेबरमास का अभिव्यक्ति का ‘ युक्तायुक्त ( Rational ) सिद्धान्त ’ क्या है ?

मनुष्य की अपनी अभिव्यक्ति किन्हीं सामाजिक दशाओं में होती है । इसी को हेबरमास का ‘ अभिव्यक्ति का युक्तायुक्त सिद्धान्त ’ कहा जाता है ।

हेबरमास ने युक्तायुक्त उद्देश्यपरक क्रिया तथा अभिव्यक्तिशील क्रिया में क्या अन्तर बताया है ?

हेबरमास के अनुसार युक्तायुक्त उद्देश्यपरक क्रिया का लक्ष्य पर्यावरण को अपने अनुकूल बनाने से होता है , जबकि अभिव्यक्तिशील क्रिया का अर्थ कार्य और श्रम से होता है ।

हेबरमास के भाषाविद उपागम से आप क्या समझते हैं ?

भाषा अथवा व्याकरण के नियमों के समान हेबरमास ने समाज को भी अभिव्यक्तिशील संदर्भ में प्रस्तुत किया है । यही उनका भाषाविद उपागम है ।

इटालियन मार्क्सवादी कौन है ?

एन्टोनियो ग्राम्शी इटालियन मार्क्सवादी है ।

‘ प्रिजन नोट बुक्स ’ किसने लिखी ?

‘ प्रिजन नोट बुक्स ’ एन्टीनियो ग्राम्शी ने लिखी ।

आधिपत्य ( Hegemony ) की अवधारणा किसने दी है ?

आधिपत्य ( Hegemony ) की अवधारणा एन्टोनियो ग्राम्शी ने दी है ।

एक विचारक के रूप में ग्राम्शी को किन कारणों से प्रतिष्ठा मिली ?

1926 ई . में मुसोलिनी के शासनकाल में ग्राम्शी को जेल में डाल दिया गया । जहाँ उन्होंने तत्कालीन समाज के बारे में टिप्पणियाँ की थी । उनके कारण उन्हें एक मार्क्सवादी सामाजिक विचारक के रूप में प्रतिष्ठा मिली ।

ग्राम्शी के अनुसार कामगार आन्दोलन को सफलता कब प्राप्त होगी ?

ग्राम्शी के मतानुसार मूल्यों तथा मान्यताओं के क्षेत्र में बुर्जुआ तत्त्व की समाप्ति के बाद ही कामगार आन्दोलन को सफलता मिल सकेगी ।

ग्राम्शी के अनुसार आधुनिक बुर्जुआ समाज की सुदृढ़ता का महत्त्वपूर्ण स्रोत क्या है ?

ग्राम्शी का मानना था कि बुर्जुआ समाज की सुदृढ़ता का मूल स्रोत शासकवर्गीय सांस्कृतिक नेतृत्व होता है , जो जनसामान्य लोगों पर अपने मूल्यों की स्थायी छाप छोड़ता है ।

कार्ल मार्क्स द्वारा प्रतिपादित किन्हीं दो अवधारणाओं का उल्लेख कीजिए जिनका ग्राम्शी द्वारा विरोध किया गया ।

कार्ल मार्क्स द्वारा प्रतिपादित दो महत्त्वपूर्ण अवधारणाओं द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद , तथा आर्थिक निर्धारणवाद , का ग्राम्शी द्वारा विरोध किया गया ।

अपनी जेल डायरियों में ग्राम्शी ने किन - किन विषयों का विश्लेषण किया है ?

अपनी जेल डायरियों में ग्राम्शी ने समकालीन बौद्धिक शिक्षा , इटली के इतिहास , हेजमनी , फासीवाद , नागरिक समाज , फ्रायडवाद तथा राजनीतिक दल इत्यादि विषयों का विश्लेषण किया है ।

ग्राम्शी के अनुसार समाजवाद की स्थापना के लिए किस प्रकार के संघर्ष की आवश्यकता है ?

ग्राम्शी का मानना है कि केवल आर्थिक तत्त्व के आधार पर ही समाजवाद की स्थापना करना सम्भव नहीं है । इसके लिए पूँजीवाद के विरुद्ध वैचारिक संघर्ष की अत्यन्त आवश्यकता है ।

ग्राम्शी ने सामाजिक परिवर्तन के लिए किस कारण को प्रमुख माना है ?

ग्राम्शी ने सामाजिक परिवर्तन के लिए गैर - आर्थिक कारकों को सबसे प्रमुख माना है । गैर - आर्थिक कारकों से ही सामाजिक परिवर्तन होते हैं ।

ग्राम्शी ने ऐतिहासिक विकास में किस तथ्य पर सर्वाधिक बल दिया है ?

ग्राम्शी समाज के ऐतिहासिक विकास में भौतिक सम्बन्धों के स्थान पर विचारधारा , भाषा तथा प्रतीक पर सर्वाधिक बल देते हैं ।

ग्राम्शी के अनुसार समाज में यथार्थता का निर्माण किसके माध्यम से किया जा सकता है ?

ग्राम्शी का मानना है कि समाज में यथार्थता का निर्माण भाषा और प्रतीकों के माध्यम से किया जा सकता है क्योंकि इनका जनसामान्य पर स्थायी प्रभाव होता है ।

ग्राम्शी के लोकतांत्रिक समाजवादी नागरिक समाज में कौन - कौन से तत्त्व निर्णायक भूमिका अदा करते हैं ?

ग्राम्शी के लोकतांत्रिक समाजवादी नागरिक समाज में आर्थिक तत्त्वों के साथ साथ विचारधारा , भाषा , प्रतीक तथा राजनीति के तत्त्व भी अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं ।

प्रजातंत्र के बारे में ग्राम्शी की अवधारणा स्पष्ट कीजिए ।

ग्राम्शी का मानना है कि मानवता से युक्त उदारवादी प्रजातंत्र एक समाजवादी समाज के निर्माण में अत्यधिक सहायक हो सकता है ।

मार्क्स और ग्राम्शी के सिद्धान्तों में कोई एक अन्तर बताइए ।

मार्क्स ने सामाजिक परिवर्तन की व्याख्या वर्ग - सम्बन्धों के संदर्भ में की है , जबकि ग्राम्शी विचारधारा , भाषा और प्रतीक पर सर्वाधिक जोर देते हैं ।

नागरिक समाज से आप क्या समझते हैं ? अथवा नागरिक समाज को परिभाषित कीजिए ।

ग्राम्शी के अनुसार नागरिक समाज एक ऐसा समाज होगा , जो स्वचालित होगा और जिसमें शोषण , दमन तथा बल प्रयोग नहीं होगा और जो लोकतांत्रिक मूल्यों पर आधारित होगा ।

ग्राम्शी ने किस प्रकार के नागरिक समाज की कल्पना की है ?

ग्राम्शी ने एक ऐसे नागरिक समाज की कल्पना की है , जो लोकतांत्रिक समाजवादी समाज होगा , जो परिवर्तन और प्रतियोगिता से युक्त होगा तथा जिसमें शोषण , दमन , बल प्रयोग तथा हिंसा का बोलबाला नहीं होगा ।

ऐसे दो सिद्धान्तों के नाम बताइए जिन्हें एन्थोनी गिडिंग्स द्वारा प्रतिपादित किया गया ।

एन्थोनी गिडिंग्स द्वरा प्रतिपादित दो महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त हैं - ( 1 ) आधुनिकता का सिद्धान्त , तथा ( 2 ) संरचनाकरण का सिद्धान्त ।

संरचनाकरण का सिद्धान्त किसने दिया ?

संरचनाकरण का सिद्धान्त एन्थोनी गिडेंस ने दिया ।

गिडिंग्स के अनुसार ‘ द्वैधता सिद्धान्त ’ क्या है ?

एन्थोनी गिडिंग्स के अनुसार हमें समाज को भली - भाँति जानने - समझने के लिए व्यक्ति और संरचना दोनों को ही अपनाना चाहिए । यही उनका ‘ द्वैधता सिद्धान्त ’ है ।

ए . गिडिंग्स द्वारा लिखित किन्हीं दो पुस्तकों के नाम बताइए ।

एन्थोनी गिडिंग्स द्वारा लिखित दो प्रमुख पुस्तकों के नाम हैं- ( 1 ) सोशल थ्योरी इन दि ट्वेन्टियथ सेन्चुरी , तथा ( 2 ) दि कॉन्सटीट्यूशन ऑफ सोसाइटी ।

एन्थनी गिडेन्स के अनुसार संरचना और एजेन्सी को परिभाषित कीजिए । अथवा गिडेन्स के अनुसार संरचना को परिभाषित कीजिए ।

संरचना - ये वे नियम हैं जो प्रतिदिन के व्यवहार में काम में लिए जाते हैं तथा जिनकी सामान्य जानकारी कर्ता को होती है । संरचना हम पर दबाव डालती है ।
एजेन्सी - एजेन्सी वस्तुत : समाज पाई जाने वाली अन्त : क्रियाएँ हैं और इनका जीवनकाल अपेक्षाकृत लम्बा होता है ।

संरचनावाद की अवधारणा किसने दी है ?

एंथोनी गिडिंग्स ने संरचनावाद की अवधारणा दी है ।

संरचनाकरण क्या है ?

संरचनाकरण नियम - उपनियमों की एक प्रणाली है । यह एक ऐसा सिद्धान्त है जो यह स्थापित करता है कि एजेण्ट और संरचना का दोहरापन हमें समाज की सही सीख नहीं देता । इसे हटाकर हमें वैधता को अपनाना चाहिए ।

एन्थोनी गिडिंग्स द्वारा प्रतिपादित ‘ संरचनाकरण के सिद्धान्त ’ की कोई दो विशेषताएँ बताइए ।

एन्थोनी गिडिंग्स द्वारा प्रतिपादित ‘ संरचनाकरण के सिद्धान्त ’ की दो विशेषताएँ हैं— ( 1 ) द्वैधता सिद्धान्त को अपनाना , तथा ( 2 ) एजेन्ट और संरचना के दोहरेपन का विरोध ।

गिडिंग्स ने संस्था किसे बताया है ?

एन्थोनी गिडिंग्स के अनुसार संस्था वस्तुतः समाज में पाई जाने वाली अन्त : क्रियाएँ हैं जो समाज के सदस्यों के मध्य में होती हैं ।

गिडिंग्स के संरचना सिद्धान्त की आधारशिला ( नीव ) क्या है ?

संरचना के नियम और उपनियम ही एन्थोनी गिडिंग्स के संरचना सिद्धान्त की आधारशिला या नींव है ।

गिडिंग्स ने प्रमुख रूप से कितने प्रकार की संस्थाओं का उल्लेख किया है ?

गिडिंग्स ने प्रमुख रूप से चार प्रकार की संस्थाओं का उल्लेख किया है— ( 1 ) कानूनी संस्थाएँ , ( 2 ) आर्थिक संस्थाएँ , ( 3 ) राजनीतिक सिद्धान्त , तथा ( 4 ) भाषा , प्रतीक एवं विचार - विमर्श ।

एन्थोनी गिडिंग्स ने एजेन्ट किसे कहा है ?

एन्थोनी गिडिंग्स के मतानुसार एजेन्ट वह है , जो सामाजिक क्रियाओं को सम्पन्न करता है जिन्हें उन्होंने ‘ सामाजिक आचरण ’ की संज्ञा दी है ।

सामाजिक आचरण की जानकारी के बारे में गिडिंग्स कर्ता की अभिव्यक्ति कितने प्रकार की बताते हैं ?

सामाजिक आचरण की जानकारी के बारे में गिडिंग्स ने कर्ता की अभिव्यक्ति के तीन प्रकार बताए हैं— ( 1 ) व्यावहारिक जानकारी से , ( 2 ) तार्किक चेतना से , तथा ( 3 ) अचेतन आचरण से ।

एन्थोनी गिडिंग्स ने क्रिया को किस रूप में परिभाषित किया है ?

एन्थोनी गिडिंग्स ने क्रिया को परिभाषित करते हुए लिखा है- “ क्रिया एक ऐसा प्रवाह है , जिसकी न कोई शुरूआत है और न ही कोई अन्त । यह संरचनाकरण की क्रिया है ।”

गिडिंग्स के संरचना सिद्धान्त की कोई दो आलोचनाएँ बताइए ।

गिडिंग्स के संरचना सिद्धान्त की दो प्रमुख आलोचनाएँ हैं— ( 1 ) यह सिद्धान्त आनुभविक विश्लेषण में उपयोगी नहीं है । ( 2 ) संरचना क्रिया करने के दबाव की अभिव्यक्ति नहीं है ।

गिडिंग्स की क्रिया की कोई दो विशेषताएँ बताइए ।

गिडिंग्स की क्रिया की दो विशेषताएँ हैं- ( 1 ) क्रिया के पीछे व्यावहारिक चेतना होती है । ( 2 ) कर्ता को क्रिया के परिणाम की तार्किक चेतना नहीं होती है ।

किसने कहा कि आधुनिकता एक तरह का जगर्नाट है ?

एन्थोनी गिडिंग्स ने कहा कि आधुनिकता एक तरह का जगर्नाट है ।

गिडिंग्स की आधुनिकता की परिभाषा दीजिए ।

आधुनिकता को परिभाषित करते हुए गिडिंग्स ने लिखा है- “ आधुनिकता अनिवार्य रूप से बहुआयामी है । इसमें परिवर्तन और गत्यात्मकता अन्तर्निहित है । ” अथवा “ सामान्यत : आधुनिकता पूँजीवाद , उद्योगवाद , राष्ट्र - राज्य और उद्योगकृत युद्ध में अन्त : क्रिया है । इसमें इन चारों का वैश्वीकरण होता है । ”

गिडिंग्स ने आधुनिकता के असन्निहित कारक क्या बताए हैं ?

गिडिंग्स ने कहा है कि आधुनिक समाज में लोग समुदाय से हटकर जीवनयापन करते हैं । यही गिडिंग्स के अनुसार असन्निहितता अथवा असन्निहित कारक है ।

आधुनिकता के किन्हीं चार कारकों का उल्लेख कीजिए ।

आधुनिकता के चार प्रमुख कारक हैं— ( 1 ) पूँजीवाद , ( 2 ) उद्योगवाद , ( 3 ) राष्ट्र राज्य , तथा ( 4 ) प्रशासनिक शक्ति अथवा प्रशासनिक निगरानी ।

एन्थोनी गिडिंग्स ने प्रतिबिम्ब समाज किसे कहा है ?

वह आधुनिक समाज जिसमें समाज और स्थान अत्यधिक सिकुड़ गए हों , दूर रहकर भी लोग पल - पल पर एक - दूसरे से हों , प्रतिबिम्ब समाज कहलाता है ।

“ आधुनिक समाज एक भगोड़ा समाज है । ” गिडिंग्स ने इस कथन का क्या आशय बताया है ?

इस कथन से गिडिंग्स का आशय है कि आधुनिक समाज में गतिशीलता बहुत तीव्र है । इसमें नई संस्थाओं , नए राष्ट्र राज्य तथा नई तकनीकों को लेकर समाज तीव्र गति से परिवर्तन कर रहा है ।

एम.एन. श्रीनिवास का पूरा नाम क्या है ? उनका जन्म कहाँ हुआ था ?

प्रो . एम.एन.श्रीनिवास का पूरा नाम मैसूर नरसिंहाचार श्रीनिवास है । उनका जन्म मैसूर में हुआ था ।

एम.एन. श्रीनिवास की रचनाओं के नाम लिखिए ।

प्रो . एम.एन. श्रीनिवास ने निम्नलिखित रचनाएँ की- ( 1 ) रिलीजन एण्ड सोसायटी अमंग दि कुर्गस् ऑफ साउथ इण्डिया , ( 2 ) भारत के गाँव , ( 3 ) कास्ट इन मॉडर्न इण्डिया एण्ड अदर ऐसेज , ( 4 ) आधुनिक भारत में सामाजिक परिवर्तन , ( 5 ) मैसूर में विवाह और परिवार , ( 6 ) विलेज स्टडीज , तथा ( 7 ) A Note on Sanskritization and Westernization

प्रभु जाति की अवधारणा किसने दी है ?

प्रभु जाति की अवधारणा डॉ . एम.एन. श्रीनिवास ने दी है ।

प्रभु जाति पर एम.एन. श्रीनिवास के विचार लिखिए ।

एम.एन. श्रीनिवास के अनुसार प्रभु जाति में वे लोग आते हैं जिनकी संख्या अधिक है तथा जो आर्थिक , सामाजिक व राजनीतिक दृष्टि से शक्तिशाली हैं । जैसे ब्राह्मण , जाट , राजपूत आदि प्रभु जाति के रूप माने जाते हैं ।

‘ ब्राह्मणीकरण ’ की अवधारणा का प्रतिपादन किसने किया ? अथवा भारतीय समाजशास्त्र में ब्राह्मणीकरण अवधारणा का प्रयोग किसने किया ?

एम.एन. श्रीनिवास ने ।

एम.एन. श्रीनिवास ने संस्कृतीकरण की अवधारणा की व्याख्या किस पुस्तक में की है ?

‘ रिलीजन एण्ड सोसायटी अमंग द कुर्गस ऑफ साउथ इण्डिया ’ नामक पुस्तक में ।

संस्कृतीकरण की अवधारणा का प्रतिपादन किसने किया ?

संस्कृतीकरण की अवधारणा का प्रतिपादन एम.एन. श्रीनिवास ने किया ।

रामपुरा गाँव का अध्ययन किसने किया था ?

रामपुरा गाँव का अध्ययन एम.एन. श्रीनिवास द्वारा किया गया था ।

लौकिकीकरण से क्या अभिप्राय है ?

पहले जिन वस्तुओं को धार्मिक दृष्टि से देखा जाता था , आज उन्हीं वस्तुओं को तार्किक , बौद्धिक एवं लौकिक दृष्टि से देखा जाता है । इसी दशा को लौकिकीकरण कहा जाता है ।

संस्कृतीकरण से क्या अभिप्राय है ?

एम.एन. श्रीनिवास के अनुसार जब नीची जाति के लोग ऊँची जाति के जीवन आदर्शों को अपना लेते हैं तो उसी को संस्कृतीकरण कहते हैं । वर्तमान में नीची जाति के व्यक्ति ऊँची जाति के खान - पान , वेश - भूषा , रहन - सहन और व्यवहार के तौर - तरीकों को अपनाकर अपने आपको उच्च समझते हैं । यही दशा संस्कृतीकरण के रूप में जानी जाती है ।

संस्कृतीकरण की प्रक्रिया से क्या तात्पर्य है ?

संस्कृतीकरण की प्रक्रिया से तात्पर्य उन परिवर्तनों से है जो भारतीय गाँवों की निम्न जातियों द्वारा अपनाए जा रहे हैं ।

श्रीनिवास की संस्कृतीकरण की परिभाषा दीजिए ।

श्रीनिवास के अनुसार , “ संस्कृतीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा कोई समूह किसी उच्च जाति के रीति - रिवाज , कर्मकाण्ड और जीवन - पद्धति को अपनाने का प्रयत्न करता है । ”

संस्कृतीकरण की प्रक्रिया से किसमें महत्त्वपूर्ण परिवर्तन आते हैं ?

संस्कृतीकरण की प्रक्रिया से सामाजिक ढाँचे , ग्रामीण जीवन - शैली में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन होते हैं ।

प्रभु जाति की परिभाषा दीजिए ।

श्रीनिवास के अनुसार , “ प्रभु जाति कोई भी वह जाति है जो किसी गाँव या क्षेत्र में अधिक संख्या के कारण सबसे शक्तिशाली होती है तथा आर्थिक और राजनीतिक रूप से जिसमें अपने प्रभाव का उपयोग करने की क्षमता होती है । ”

संस्कृतीकरण की कोई दो विशेषताएँ लिखिए ।

( 1 ) संस्कृतीकरण का तात्पर्य केवल ब्राह्मण जातियों के व्यवहारों को ग्रहण करना नहीं है । ( 2 ) संस्कृतीकरण कुछ बाहरी दशाओं का परिणाम नहीं है ।

संस्कृतिकरण को प्रोत्साहन देने वाली दशाएँ क्या हैं ?

( 1 ) तीर्थस्थान तथा मठ , ( 2 ) परिवहन व संचार के साधन , ( 3 ) पश्चिमी शिक्षा , ( 4 ) लोकतांत्रिक व्यवस्था , ( 5 ) निम्न जातियों के विशेषाधिकार , ( 6 ) समाज सुधार आन्दोलन , और ( 7 ) औद्योगीकरण तथा नगरीकरण आदि ।

सामाजिक परिवर्तन में संस्कृतीकरण की भूमिका लिखिए ।

( 1 ) निम्न जातियों की जीवन शैली में परिवर्तन , ( 2 ) जातिगत नियमों की कठोरता में कमी , ( 3 ) समाज की शक्ति - संरचना में परिवर्तन , और ( 4 ) अन्तर्जातीय संबंधों में परिवर्तन आदि ।

प्रो . एम.एन. श्रीनिवास ने संस्कृतिकरण की अवधारणा का प्रयोग कब किया था ?

दक्षिण भारत में मैसूर की पूर्व रियासत में कुर्गों के अपने अध्ययन के दौरान एम.एन. श्रीनिवास ने संस्कृतिकरण की अवधारणा का प्रयोग किया था ।

संस्कृतिकरण को ‘ अग्रिम समाजीकरण ’ की प्रक्रिया किसने कहा है ?

प्रो . योगेन्द्रसिंह ने संस्कृतिकरण को ‘ अग्रिम समाजीकरण ’ की प्रक्रिया कहा है ।

द्विज जाति किसे कहते हैं ?

द्विज जाति वह है , जो दीक्षा लेकर जनेऊ धारण करते हैं । इसमें ब्राह्मण व इनकी उपजातियाँ आदि जातियाँ आती हैं ।

संस्कृतिकरण किस प्रकार की प्रक्रिया है ?

संस्कृतिकरण एक सार्वभौमिक प्रक्रिया है ।

भारतीय समाज के अध्ययन में डी.पी. मुकर्जी ने किस पद्धति का उपयोग किया है ?

डी.पी. मुखर्जी ने भारतीय समाज के अध्ययन में मार्क्सवादी द्वन्द्वात्मक पद्धति एवं संश्लिष्ट अध्ययन पद्धति का उपयोग किया है ।

डायवर्सिटीज ( विविधताएँ ) पुस्तक किसने लिखी है ?

डायवर्सिटीज पुस्तक डी.पी. मुकर्जी ने लिखी है ।

डी.पी. मुकर्जी का प्रमुख योगदान बताइए ।

डी.पी. मुकर्जी के प्रमुख योगदानों में संश्लिष्ट अध्ययन पद्धति , सम्पूर्णतावादी दृष्टिकोण , परम्पराओं का द्वन्द्व सम्बन्धी दृष्टिकोण , भारत के समाजशास्त्र को योगदान आदि महत्त्वपूर्ण है ।

डी.पी. मुकर्जी ने परम्पराओं में परिवर्तन के कौन - कौन से सिद्धान्त बताये हैं ? अथवा डी.पी. मुकर्जी के अनुसार परम्पराओं में परिवर्तन के तीन सिद्धान्त कौनसे हैं ?

श्रुति , स्मृति और अनुभव ; परम्पराओं में परिवर्तन के सिद्धान्त बताये गये हैं ।

संस्कृत साहित्य में परम्पराओं का संरक्षक किसे माना जाता है ?

संस्कृत साहित्य में परम्पराओं का संरक्षक ब्राह्मणों को माना जाता है । वे परम्पराओं की पवित्रता को सही उच्चारण व पवित्र पुस्तकों के माध्यम से बनाये रखते हैं ।

डी.पी. मुकर्जी के अनुसार समाजशास्त्र की विषय - वस्तु क्या है ?

वे सामान्य प्रघटनाएँ जिससे सामाजिक व्यवस्था और संस्कृति दोनों ही निकट रूप से सम्बन्धित हैं , समाजशास्त्र की विषय - वस्तु है ।

डी.पी. मुकर्जी ने धर्म से सम्बन्धित क्या विचार दिये हैं ?

डी.पी. मुकर्जी के अनुसार धर्म से सम्बन्धित परम्पराएँ जो आज भी अपनी निरन्तरता बनाये हुए हैं ।

डी.पी. मुकर्जी के अनुसार परम्पराओं वाहक कौन हैं ?

डी.पी. मुकर्जी के अनुसार परम्पराओं के वाहक एवं संरक्षक ब्राह्मण रहे हैं । परम्पराएँ मौखिक रूप से पीढ़ी - दर - पीढ़ी हस्तान्तरित होती रही हैं ।

डी.पी. मुकर्जी के अनुसार परम्पराओं के संरक्षण हेतु किन्हें प्रयुक्त किया जाता है ?

डी.पी. मुकर्जी के अनुसार परम्पराओं के संरक्षण हेतु आवाज और दर्शन को प्रयुक्त किया जाता है ।

आधुनिक भारतीय साहित्य में क्या गुण हैं तथा वे किसकी देन हैं ?

आधुनिक भारतीय साहित्य में मानवतावाद और विपथगमन के गुण पाये जाते हैं , जो पश्चिम की देन हैं ।

लौकिक साहित्य भारत में किसे माना जाता है ?

तुलसीदास की रामायण तथा भक्तमाल का हिन्दी अनुवाद महान लौकिक साहित्य है , जिस पर कोई भी देश गर्व कर सकता है ।

आधुनिक भारतीय साहित्य का वर्गीकरण किस प्रकार किया गया है ?

वैष्णववादी , राष्ट्रवादी , नैराश्य से पूर्ण के रूप में वर्गीकृत किया गया है । नाटक को दो भागों में बाँटा गया है कल्पना प्रधान और वास्तविकता ।

भारतीय साहित्य की प्रमुख विशेषताएँ बताइए ।

( 1 ) हास्य व व्यंग्य का अभाव , ( 2 ) समाज की बुराइ का चित्रण , ( 3 ) निम्न जातियों को आवश्यक स्थान नहीं , ( 4 ) प्रकृति का चित्रण कम ।

वर्तमान साहित्य की विषय - वस्तु क्या है ?

वर्तमान भारतीय साहित्य में धीरे - धीरे सामाजिक विषय - वस्तु पर अधिक से अधिक जोर दिया जा रहा है ।

भारतीय कला किस प्रकार की है ?

भारतीय कला विशुद्ध रूप से हिन्दुओं से ही सम्बन्धित हो , ऐसी बात नहीं है । इस पर हिन्दू , मुस्लिम आदि सभी का प्रभाव रहा है ।

वर्तमान कला के बारे में डी.पी. मुकर्जी के क्या विचार हैं ?

भारत में कला को आज उतना महत्त्व नहीं दिया जाता है जितना कि प्राचीन काल में दिया जाता था । गाँवों में इसे अधिक महत्त्व देते हैं लेकिन नगरों में कम ।

कौन - कौन सी साहित्यिक रचनाएँ सिनेमा चित्रों में लोकप्रिय हुई हैं ?

अभिज्ञान शाकुन्तलम , मेघदूत , जातक , रामायण , महाभारत , उमर खय्याम आदि रचनाएँ सिनेमा चित्रों में लोकप्रिय हुई हैं ।

भारत में नृत्य की कौन - कौन सी शैलियों का प्रचलन रहा है ?

मणिपुरी , तन्जौर , कत्थकली , गरबा आदि नृत्य की क्षेत्रीय शैलियों का प्रचलन भारत में पाया जाता है ।

लोक नृत्य पर डी.पी. मुकर्जी के विचार क्या हैं ?

भारत में लोक नृत्यों की बहुलता रही है । ऐसे नृत्यों में सामरिक नृत्यों का काफी प्रचलन रहा है जिनमें नर्तक के हाथों में डण्डियाँ , तलवार , लेजम , प्रत्यंचा आदि होते हैं ।

डी.पी. मुकर्जी की प्रमुख पुस्तकों या रचनाओं के नाम लिखिए ।

( 1 ) सोशियोलोजी ऑफ इण्डियन कल्चर , ( 2 ) डायवर्सिटीज , ( 3 ) समाजशास्त्र की मूल अवधारणाएँ , ( 4 ) भारतीय संगीत का परिचय ।

भारतीय समाज में किसका अध्ययन किया जाता है ?

भारतीय समाज में सामान्य मूर्त प्रघटनाओं का अध्ययन समूह क्रिया तथा समूह परम्पराओं के माध्यम से उत्तमता के साथ किया जाता है ।

डी.पी. मुकर्जी ने भारतीय परम्पराओं के क्या - क्या लक्षण बताये हैं ?

सार्वभौमिकता , निरन्तरता , अपरिवर्तनशीलता , प्राचीनता तथा सामूहिकता ।

भारतीय साहित्य में विपथगमन कहाँ - कहाँ पाया जाता है ?

भारतीय साहित्य में पाली , जैन साहित्य , मंगल काव्यों , लोक साहित्यों आदि में विपथगमन पाया जाता है ।

‘ परम्परा का द्वन्द्व ’ क्या है ?

पुरानी परम्परा और नई परम्परा , वृहद् परम्परा और स्थानीय परम्परा , आन्तरिक परम्परा तथा बाह्य परम्परा आदि में होने वाला संघर्ष ही परम्पराओं का द्वन्द्व है ।

डी.पी. मुकर्जी के अनुसार लघु एवं वृहद् परम्परा का अर्थ बताइए ।

वृहद् परम्पराएँ वे हैं जो भारतीय समाज में शास्त्रीय आधार पर चली आ रही हैं और लघु परम्पराएँ वे हैं जो इन वृहद् परम्पराओं में सुधार प्रेरक हैं ।

डॉ . मुकर्जी द्वारा बताए गए आधुनिक भारतीय साहित्य में उत्पन्न कोई दो विश्वास अथवा निष्ठाएँ लिखिए ।

( 1 ) कला , कला के लिए ' का विश्वास विकसित हुआ । ( 2 ) साहित्यिक मूल्यों में परिवर्तन आया और भारत के साहित्य में मानवतावाद का प्रसार हुआ । साथ ही नए - नए मूल्यों का प्रवेश हुआ , यथा स्वतन्त्रता , समानता , बन्धुता , बुद्धिवाद तथा राष्ट्रीयता आदि ।

भारतीय संस्कृति पर पाश्चात्य के पड़े दो प्रभाव बताइए ।

भारतीय संस्कृति पर पाश्चात्य संस्कृति के दो प्रमुख प्रभाव हैं- ( 1 ) खान - पान तथा वेशभूषा पर प्रभाव , ( 2 ) साहित्य पर प्रभाव ।

ए.आर. देसाई का पूरा नाम क्या है ?

अक्षय कुमार रमण लाल देसाई ।

ए.आर. देसाई ने राष्ट्रवाद को एक ऐतिहासिक तत्त्व कहकर क्यों सम्बोधित किया है ?

देसाई के अनुसार लोक जीवन के विकास क्रम में वस्तुनिष्ठ और अवनिष्ठ दोनों ही प्रकार के ऐतिहासिक तत्त्वों की परिपक्वता के पश्चात् राष्ट्रवाद का उदय हुआ । इसलिए राष्ट्रवाद एक ऐतिहासिक तत्त्व है

राष्ट्रवाद से आप क्या समझते हैं ?

व्यापक राष्ट्रीयता के आधार पर समाज , राज्य एवं संस्कृति के प्रति अहंभाव को ही राष्ट्रवाद के नाम से जाना जाता है ।

ब्रिटिश शासनकाल में रेलवे , मोटर तथा आवागमन के आधुनिक साधनों के कोई दो प्रभाव बताइए ।

( 1 ) इन्होंने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध भारतीय राष्ट्रवाद को संगठित करने का कार्य किया । ( 2 ) इन्होंने भारत में ब्रिटिश शासन को मजबूत व सुरक्षित बनाया ।

भारत में राष्ट्रवाद के उद्भव व विकास के लिए उत्तरदायी कोई दो कारण बताइए ।

भारत में राष्ट्रवाद के उद्भव व विकास के लिए उत्तरदायी दो कारण थे ( 1 ) एकीकृत राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था का विकास , ( 2 ) यातायात और संचार के साधन ।

ए.आर. देसाई ने भारतीय राष्ट्रवाद को किसका परिणाम माना है ?

ए.आर. देसाई के अनुसार भारतीय राष्ट्रवाद भारतीय जनता और उसके विभिन्न वर्गों के स्वतन्त्र विकास पर ब्रिटिश शासन के दबाव का परिणाम था ।

ए.आर. देसाई के अनुसार भारत में आधुनिक शिक्षा का प्रचार - प्रसार किन किन रास्तों से हुआ ?

ए.आर. देसाई के अनुसार भारत में आधुनिक शिक्षा का प्रचार - प्रसार तीन रास्तों से हुआ— ( 1 ) विदेशी ईसाई धर्म प्रचारकों के द्वारा , ( 2 ) ब्रिटिश सरकार के द्वारा , तथा ( 3 ) प्रगतिशील भारतीयों के द्वारा ।

ब्रिटिश शासनकाल में आवागमन के साधनों व आधुनिक उद्योगों के परिणामस्वरूप किन - किन वर्गों का उदय हुआ ?

ब्रिटिश शासनकाल में आधुनिक उद्योगों व आवागमन के साधनों के परिणामस्वरूप ( 1 ) पूँजीपति वर्ग , ( 2 ) मजदूर वर्ग , ( 3 ) काश्तकार वर्ग , तथा ( 4 ) नए श्रमिक वर्ग का उदय हुआ ।

ए.आर. देसाई के अनुसार नए भूमि सम्बन्धों पर ब्रिटिश शासन का क्या प्रभाव पड़ा ?

ब्रिटिश शासनकाल में नए भूमि सम्बन्धों से ग्रामीण समुदाय तंत्र के स्थान पर जमींदार वर्ग का उदय हुआ तथा जीवन पर उनकी निजी मिल्कियत स्थापित हुई ।

ए.आर. देसाई के पद्धतिशास्त्र का उल्लेख कीजिए ।

ए.आर. देसाई ने मार्क्सवादी ऐतिहासिक द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद पद्धति को अपनाया । उन्होंने मार्क्सवादी उपागम से ही भारतीय सामाजिक यथार्थ को समझने पर जोर दिया ।

ब्रिटिश शासनकाल से पूर्व भारतीय नगरों में राष्ट्रीय चेतना का अभाव था । कोई दो कारण बताइए ।

इसके लिए उत्तरदायी दो कारण हैं— ( 1 ) धर्मनिरपेक्ष कला अभिजातवर्गीय थी , न कि सम्पूर्ण राष्ट्र की । ( 2 ) उस काल में नगरों का सांस्कृतिक जीवन राष्ट्रीय चेतना से अनुप्रेरित नहीं था ।

ए.आर. देसाई ने ब्रिटिशकाल में कृषि के क्षेत्र में किन नए सामाजिक वर्गों का उल्लेख किया है ? किन्हीं चार नाम लिखिए ।

कृषि क्षेत्र में नए वर्ग थे— ( 1 ) जमींदार वर्ग , ( 2 ) अन्यत्रवासी भूस्वामी वर्ग , ( 3 ) पट्टेदार वर्ग , ( 4 ) काश्तकार मालिकों का वर्ग , ( 5 ) खेतिहर मजदूर वर्ग , ( 6 ) नया व्यापारी वर्ग , तथा ( 7 ) सूदखोर महाजनों का नया वर्ग ।

ब्रिटिश शासनकाल में भारत में बुद्धिजीवी वर्ग के उत्कर्ष व विकास के लिए उत्तरदायी दो कारण बताइए ।

ब्रिटिश शासनकाल में भारत में बुद्धिजीवी वर्ग के उत्कर्ष व विकास के दो कारण थे— ( 1 ) अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली , तथा ( 2 ) आर्थिक विकास व आधुनिक शिक्षा विस्तार का समानुपाती न होना ।

सन् 1918 के बाद भारतीय मजदूरों के संगठित आन्दोलन के विकास के लिए उत्तरदायी दो कारण बताइए ।

मजदूरों के संगठित आन्दोलन के विकास के लिए उत्तरदायी दो कारण थे— ( 1 ) युद्ध के बाद का आर्थिक संगठन , तथा ( 2 ) मजदूर संगठनकर्ताओं का आविर्भाव ।

भारत में संगठित मजदूर आन्दोलन के विकास के किन्हीं चार चरणों का उल्लेख कीजिए ।

ये चार चरण थे— ( 1 ) उद्योगों में आर्थिक हड़तालों का व्यापक रूप , ( 2 ) राजनीतिक हड़तालों की शुरूआत , ( 3 ) मजदूर संघों की स्थापना , ( 4 ) ऑल इण्डिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस की स्थापना ।

राजा राममोहन राय द्वारा प्रकाशित किन्हीं दो समाचार - पत्रों के नाम बताइए ।

राजा राममोहन राय द्वारा प्रकाशित समाचार - पत्रों के नाम थे— ( 1 ) संवाद कौमुदी , तथा ( 2 ) मिरातुल अखबार ।

ब्रिटिश शासनकाल में भारत में समाज व धर्म सुधार आन्दोलन को ए.आर. देसाई ने किसका परिणाम बताया है ?

ए.आर. देसाई ने भारत में समाज व धर्म सुधार आन्दोलन को उदीयमान राष्ट्रीय चेतना तथा उनके बीच पश्चिम के उदारवादी विचारों के प्रसार का परिणाम बताया है ।

ए.आर. देसाई के अनुसार भारत के सामाजिक वर्गों के कोई दो लक्षण बताइए ।

ए.आर. देसाई के अनुसार भारत के सामाजिक वर्गों के दो लक्षण हैं- ( 1 ) नए सामाजिक वर्गों के अखिल भारतीय संगठन बने । ( 2 ) इन वर्गों में संयुक्त राष्ट्रीय आन्दोलन का विकास हुआ ।

ए.आर. देसाई ने नए सामाजिक वर्गों के जो उदाहरण दिए हैं , उनमें से दो के नाम बताइए ।

ए.आर. देसाई के अनुसार नए सामाजिक वर्गों के दो उदाहरण हैं - ( 1 ) इण्डियन चैम्बर ऑफ कॉमर्स , तथा ( 2 ) ऑल इण्डिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस ।

भारत में राष्ट्रीय प्रेस का संस्थापक किसे माना जाता है ?

राजा राममोहन राय को भारत में राष्ट्रीय प्रेस का संस्थापक माना जाता है ।

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❊Information
File Name - समाजशास्त्रीय चिंतन Important For B.A. Final Year
Language - Hindi
Size - 504 KB
Number of Pages -20
Writer - #NA
Published By - Knowledge Hub
ISBN - #NA
Copyright Date: 28-07-2021
Copyrighted By: Knowledge Hub
Source - RAJA One Week Series
Categories: Educational Materials
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Tags:PDF, BA, University

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