भारत की पूर्व प्राचीन संस्कृतियाँ Important One Liners

Bhaarat ki Prachin Sanskriti

भारतीय इतिहास के लेखन की परम्परा आधुनिक भारत में 18 वीं शताब्दी से प्रारम्भ हुई .

सन् 1784 ई . में वारेन हेस्टिंग्स एवं सर विलियम जोन्स ने कलकत्ता में ' एशियाटिक सोसायटी ऑफ बंगाल ' की स्थापना कर भारतीय इतिहास को पुनर्जीवित किया .

भारतीय इतिहासकारों ने 19 वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में भारतीय इतिहास की रचना की .

भारत को ईरानियों ने हिन्दुस्तान , यूनानियों ने इण्डिया नाम दिया .

मत्स्यपुराण के अनुसार वृहत्तर भारतवर्ष के नौ भेद हैं - इन्द्रद्वीप , कसेरू , ताम्रपर्णी , गभस्तिमान , नागद्वीप , सौम्य , गन्धर्व , वारूण एवं सागर से घिरा भारत .

प्राचीन भारत उत्तरी गोलार्द्ध में 7° और 37° अक्षांश एवं 62 ° तथा 98 ° देशान्तर के मध्य अवस्थित था .

भारतवर्ष की उत्तरी सीमा हिमालय , पश्चिमोत्तर सीमा सुलेमान , सफेद कोह एवं किरथर , दृढ़ पश्चिमोत्तर सीमा के रूप में हिन्दुकुश और पामीर , पूर्वोत्तर की सीमा दक्षिण की ओर झुकने वाली हिमालय की शृंखलाएँ पटकोई , जयन्तिया , नागा खासी , गोरा , लुसाई एवं आराकानयोमा तथा नीचे के क्षेत्र के तीनों तरफ की सीमा का निर्माण हिन्द महासागर द्वारा होता है .

सम्पूर्ण प्राचीन भारतवर्ष को पाँच प्राकृतिक विभागों में वर्गीकृत किया है - हिमालय श्रृंखला , उत्तर भारत के मैदान विन्ध्यमेखला , दक्षिणी प्रायद्वीप एवं सुदूर दक्षिण .

प्राचीन भारत के निवासियों में प्रमुख रूप से चार जातियाँ विद्यमान थी - आर्य , द्रविड़ , शवर- पुलिन्द , किरात या मंगोल .

आर्य जाति विन्ध्याचल एवं हिमालय पर्वत के मध्य द्रविड़ सुदूर दक्षिण में , शवर- पुलिन्द विन्ध्यमेखला के जंगली एवं पहाड़ी क्षेत्रों में तथा किरात जाति हिमालय के उत्तरी - पूर्वी भाग में निवास करती थी .

प्राचीन भारत में चार भाषा परिवार विद्यमान थे - आर्य भाषा परिवार , द्रविड़ भाषा परिवार , शबर - पुलिन्द भाषा परिवार , किरात भाषा परिवार .

सभ्यता के आरम्भ मानव के उद्भव एवं प्रारम्भिक विकास की प्रक्रिया को जानने का स्रोत ' प्रागैतिहास ' है .

प्रागैतिहास के द्वारा 30 लाख वर्ष पूर्व से 3000 ई . पू . के पहले का अध्ययन किया जाता है .

इतिहास के अध्ययन की दो पद्धतियाँ ऐतिहासिक एवं पुरातात्त्विक पद्धति है .

प्रागैतिहास के लिए दो विधियाँ प्रचलित हैं - उपकरण प्ररूप एवं स्तर क्रम विज्ञान .

प्रागैतिहासिक काल में निम्नलिखित उपकरण एवं हथियार -
1. गंडासा और खण्डक उपकरण ( Chooper & chooping tools )
2. हस्तकुठार ( Hand axe )
3. विदारणी ( Clever )
4. खुरचनी ( Scraper )
5. बेधनी ( Point )
6 . बेधक ( Boter )
7. तक्षणी ( Burin )

तिथि निर्धारण विधियों में सर्वाधिक प्रचलित विधि रेडियो कार्बन विधि ( Radio carbon method ) या C - 14 है

हिन्दू धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार ब्रह्मा ने सम्पूर्ण संसार की रचना की एवं मनु को सबसे पहले बनाया .

आधुनिक विज्ञान के अनुसार जीवों के क्रमिक विकास मछली → मेढक → सरीसृप → मानव के रूप में मानव का विकास हुआ .

मानव समप्राणी ( होमोनिड ) का उद्भव 1 करोड़ 20 लाख वर्ष से 90 लाख वर्ष तक पुराना माना जाता है .

होमोसेपियन्स अर्थात् ज्ञानी मानव वर्तमान प्रजाति के मानव से साम्यता रखता है जिसका आविर्भाव 50,000 वर्ष पूर्व हुआ .

मानव वैज्ञानिकों के अनुसार प्राचीन भारत में निम्न पाँच प्रजातियाँ थीं -
1. निग्रीटो ( Negrito )
2. आय आस्ट्रेलियाई ( Proto - Australoid )
3. काकेशसी ( Caucassoids )
4. मंगोलाम ( Mangoloids )
5. भूमध्यसागरीय प्रजाति ( Mediterranean )

पाषाणकालीन मानव के नरकंकालों से मिलते हुए नरकंकाल निम्न स्थानों पर प्राप्त हुए हैं -
सराय नाहरराय ( इलाहबाद , उ . प्र . )
बागाईखोर एवं लेखानिया मिर्जापुर , उ . प्र . )
बागोर ( भीलवाड़ा , राजस्थान )

मानव सभ्यता के काल को दो प्रमुख भागों में विभक्त किया गया है
( 1 ) पाषाण युग
( 2 ) धातु युग

पूर्व - पुरापाषाणकाल का अधिकांश समय हिमयुग के अन्तर्गत व्यतीत हुआ .

पूर्व - पुरापाषाणकालीन साक्ष्यों में गुफाएँ , प्रागैतिहासिक कला कृतियाँ एवं चित्रित शैलाश्रय मध्य प्रदेश के भीमवेटका एवं उत्तर प्रदेश के वेलन घाटी क्षेत्र से उत्खनन के दौरान प्राप्त हुए

प्रसिद्ध भारतीय पुरातत्त्ववेत्ता डॉ . एच . डी . साँकलिया ने मध्य - पुरापाषाणयुग को फलक संस्कृति ( Flake - culture ) कहा .

मध्यपुरापाषाणकाल के हथियार एवं उपकरण जैस्पर एवं चर्ट पत्थरों से बनाये जाते थे .

अग्नि एवं मृतक संस्कार की परम्परा का आविर्भाव मध्य पुरापाषाणकाल में हुआ .

बेधक ( Borer ) , खुरचनी ( Scrapper ) वेधनियाँ ( Points ) एवं हाथ की कुल्हाड़ी ( Hand axe ) मध्य पुरापाषाण काल के प्रमुख हथियार थे .

पुरापाषाणकाल की अवधि 4 लाख वर्ष पूर्व से 10,000 वर्ष तक मानी जाती है .

हिमयुग ( Ice Age ) के अन्त में उत्तर - पुरापाषाणकाल का उदय हुआ .

उत्तर - पाषाणकाल के मानव की प्रजाति होमोसेपियन्स थी .

हड्डी की मातृदेवी उत्तर पुरापाषाणकालीन साक्ष्य के उत्खनन में बेलन घाटी ( उत्तर प्रदेश ) से प्राप्त हुई .

उत्तर - पुरापाषाणकाल में चित्रकारी , नक्काशी , मूर्तिकला एवं सिलाई कला का आविष्कार हो चुका था .

मध्य - पाषाणकाल के अस्तित्व की पुष्टि 19 वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में फ्रांस के मॉस द अजिल ( Mas d Azil ) नामक स्थान पर प्राप्त अवशेषों , साक्ष्यों से हुई . मध्य - पाषाणकाल के उपकरण , हथियारों को छोटे होने के कारण माइकोलिथ ( Microlith ) कहा जाता था .

मध्य - पाषाणकालीन संस्कृति का उदय 8000 वर्ष पूर्व हुआ था .

मध्य - पाषाणकाल की संस्कृति का पहला मानव कंकाल एवं झोंपड़ियाँ उत्तर प्रदेश के सराय नाहर राय एवं महादाहा में प्राप्त हुई .

मध्य - पाषाणकाल में हथियार हड्डी एवं पत्थर के हत्थे से युक्त होते थे .

पुरापाषाणकालीन संस्कृति स्थल आदमगढ़ एवं बागोर का समय 5,000 ई . पू . निर्धारित किया है .

विन्ध्याचल की गुफाओं में मध्यपाषाणकाल के साक्ष्य के रूप में युद्ध एवं नृत्य के चित्र प्राप्त हुए हैं .

नवपाषाणकालीन संस्कृति का उद्भव एवं प्रसार गॉर्डन चाइल्ड के अनुसार पश्चिमी एशिया के धन्वाकर क्षेत्र ( Fertile Crescent ) में हुआ .

नवपाषाणकाल की संस्कृति का आविर्भाव विश्व स्तर पर 7000 ई . पू . हुआ .

नवपाषाणकालीन संस्कृति के प्रस्तर उपकरण सर्वप्रथम उत्तर प्रदेश की टोंस नदी घाटी में सन् 1860 ई . में लेन्मेसुरियर ने प्राप्त किए .

नवपाषाणकालीन बस्तियों एवं कृषि के स्पष्ट और सबसे पहले साक्ष्य मेहरगढ़ ( पाकिस्तान ) में प्राप्त हुए .

नवपाषाणकालीन संस्कृति में कबीली प्रथा , वर्ण व्यवस्था , पुनर्जन्म एवं पूजा का प्रचलन प्रारम्भ हुआ था .

वुर्जहोम एवं गुफ्फकराल ( कश्मीर ) में नवपाषाणकालीन संस्कृति के साक्ष्य बतौर गर्तघर , मृद्भाण्ड , दफने हुए शव एवं उपकरण प्राप्त हुए हैं .

बुनने का सुआ एवं मछली पकड़ने का जाल नवपाषाण कालीन संस्कृति के प्रमुख आविष्कार थे .

नवपाषाणकालीन संस्कृति स्थलों में अवशेष के रूप में चिरौद ( बिहार ) से हड्डी के बने उपकरण , हरिण के सींगों से बने हथियार एवं पिकलीहल , उटनूर ( आन्ध्र प्रदेश ) से शंख के ढेर , निवास स्थान तथा कोलडीहवा ( उ.प्र . ) से चावल उत्पादन के प्राचीनतम साक्ष्य मिले हैं .

कुम्भकारी , भोजन उत्पादन , जादूगरी , वर्गीय व्यवस्था को नवपाषाणकालीन संस्कृति में अपनाया जा चुका था .

नवपाषाणकाल में मृतकों को सम्मान प्रदान करने की दृष्टि से कब्रगाहों पर बड़े पत्थर लगाये जाते थे जिन्हें महापाषाण ( Megalithis ) कहा जाता था .

ताम्र युग में ताँबे के साथ - साथ पत्थर के उपकरण एवं हथियारों का प्रयोग भी किया जाता था . अतः ताम्र युग को ' ताम्रपाषाणकाल ' ( Chalcolithic Age ) कहा जाता था .

ताम्रपाषाणकाल के मानव को जुए , हल - बैल , पहिए , नाव एवं मुहर का ज्ञान था .

ताम्रपाषाणकालीन संस्कृति स्थलों में मध्य प्रदेश के गुंगेरिया नामक स्थल से साक्ष्य स्वरूप 424 ताम्र उपकरण एवं 102 चाँदी के पतले पत्तर पाये गये जो सर्वाधिक ताम्र निधि का उदाहरण है .

ताम्रपाषाणकालीन संस्कृति ग्राम्य संस्कृति थी , लेकिन शहरी सभ्यता को स्थापित करने की दिशा में अग्रसर थी .

पुरातत्त्ववेत्ताओं के अनुसार 5000 ई . पू . ताँबे का सबसे पहले उपयोग किया .

ताम्रपाषाणकालीन संस्कृति के सर्वाधिक अवशेष पश्चिमी महाराष्ट्र से प्राप्त हुए जिनमें अहमदनगर के जोर्वे , नेवासा , दयमाबाद , पुणे के सोनगाँव , इनामगाँव , चन्दोली प्रमुख रूप से थे . इस संस्कृति को जोर्वे संस्कृति भी कहा जाता था .

1200 ई . पू . अनावृष्टि के कारण ताम्रपाषाणकालीन संस्कृति लुप्त हो गई .

ताम्रपाषाणकालीन संस्कृति के अवशेषों में कायथ नामक स्थल पर लाल - काले मृद्भाण्ड प्राप्त हुए जिनमें प्राकू हड़प्पन एवं हड़प्पोत्तर संस्कृति के प्रभाव दृष्टिगत होते हैं .

ताम्रकालीन संस्कृति को पुरातत्त्ववेत्ता हड़प्पा संस्कृति से सम्बद्ध मानते हैं .

गंगा घाटी ताम्र निधि का विकास अनुमानतः 2000 से 1800 ई . पू . के मध्य हुआ .

ताम्र युग के साक्ष्य गंगा घाटी एवं गंगा - यमुना दोआब क्षेत्र में प्राप्त हुए जिनमें हाथ की कुल्हाड़ी , मत्स्य भाले , शृंगिका युक्त तलवार , मानवतारोपी मूर्तियाँ प्राप्त हुई .

कांस्य युग ( The Bronze Age ) का आविर्भाव 3000 ई . पू . हुआ था .

कांस्य युग की संस्कृति के मानव के व्यावसायिक सम्बन्ध पश्चिमी एशिया एवं मध्य एशिया के साथ थे .

कांस्य युग में 2000-1700 ई . पू . के मध्य सिन्धु घाटी एवं राजस्थान , हरियाणा , पंजाब , गुजरात , पश्चिमी उत्तर प्रदेश में शहरी सभ्यता का विकास हुआ .

कांस्य युग में हड़प्पा , मोहनजोदड़ो , लोथल , कालीबंगा एवं बनवाली जैसे शहरों का उदय हुआ .

राज्य एवं केन्द्रीय शक्ति का विकास कांस्य युग में हुआ .

लोहे के प्रयोग लगभग 1400 ई . पू . होना प्रारम्भ हुए .

लौह युग में साम्राज्यवादी प्रगति का विकास , सिक्कों का प्रचलन प्रारम्भ हुआ .

आर्यों का आगमन लौह युग में हुआ था .

लौह युग को रंग - बिरंगे चाक से बने बर्तन अवशेष में प्राप्त होने के कारण ' चित्रित धूसर मृद्भाण्ड संस्कृति ' कहते हैं .

लौह युग की संस्कृति के निम्नलिखित स्थल प्रमुख थे -
1. अहिच्छत्र
2. आलमगीरपुर
3. अंतरजीखेड़ा
4. हस्तिनापुर
5 . मथुरा
6. रोपड़
7. नोह
8. जखेड़ा
9. नागदा
10. एरण
11. पाण्डु
12. पांडुराजार दिष्वी
13. महिसदल
14. चिरौद
15 . सोनपुर

Download PDF

Download & Share PDF With Friends

Download PDF
Free

Tags- Bhaart ki prachin sanskriti, Indian old history pdf download, bharat ka itihaas pdf, taamra yug, loh yug, kaansy yug, himyug, pracheen bharat ke parivaar , indian history pdf download

Post a Comment (0)
Previous Post Next Post