पाषाण युग के बाद दक्षिण भारत में महापाषाण संस्कृति ( Megaliths ) का आविर्भाव हुआ .
महापाषाणकालीन लोगों का प्रमुख देवता मुरूगन था .
संगम साहित्य की रचना तमिलकम् प्रदेश में प्रथम से तृतीय शताब्दी के मध्य हुई थी .
विद्वानों की सभा परिषद या मण्डली संगम था , जिसे राजकीय संरक्षण प्राप्त था .
तमिल भाषा का अत्यन्त पुराना अंश संगम साहित्य माना गया है .
संगम का गठन पाण्ड्यों के संरक्षण में उनकी राजधानी मदुरै में हुआ था .
विभिन्न स्रोतों से तीन संगमों का उल्लेख मिलता है .
प्रथम संगम 89 पाण्ड्य शासकों के संरक्षण में मदुरै में सम्पन्न हुआ अगस्त्य ऋषि प्रथम संगम के अध्यक्ष थे .
प्रथम संगम 4400 वर्षों तक चलता रहा . मदुरै में बाढ़ आ जाने से प्रथम संगम का अन्त हो गया था .
59 पाण्ड्य शासकों के संरक्षण में द्वितीय संगम अलैवे या कपाटपुरम् में सम्पन्न हुआ , जिसमें 49 विद्वान् सम्मिलित हुए थे .
प्रारम्भ में द्वितीय संगम के अध्यक्ष अगस्त्य ऋषि थे एवं बाद में इन्हीं के शिष्य तोलकप्पियर द्वितीय संगम के अध्यक्ष बने .
49 पाण्ड्य शासकों के संरक्षण में तृतीय संगम का आयोजन उत्तरी मदुरै में हुआ , जिसकी अध्यक्षता नक्कीरर ने की थी .
तृतीय संगम में 49 विद्वानों ने भागीदारी निभाई थी .
' इरयनार अग्गपोरूल में तीनों संगमों का विस्तृत वर्णन प्राप्त होता है .
तीनों संगमों का काल 9900 वर्ष था , जिसे 197 पाण्ड्य शासकों ने संरक्षण दिया .
तीनों संगमों में 8598 विद्वानों ने साहित्यिक रचनाएँ की थीं . संगम साहित्य में लगभग 473 विद्वानों की विभिन्न रचनाएँ लगभग 2289 की संख्या में उपलब्ध हैं .
संगम साहित्य में आठ कविता संग्रहों में लगभग 20,000 कविताओं की पंक्तियाँ रची गई थीं .
पादिनेकिलकण्क्कु एवं पत्तु - पत्तु संगम साहित्य की दो प्रमुख श्रेणियाँ हैं .
पत्तु - पत्तु में चोल , पाण्ड्य एवं मुरुगन की प्रशंसा में गीत लिखे गए हैं .
पादिनेकिलकण्क्कु प्रेम , युद्ध , नीति एवं चेर - चोल के राजनीति से सम्बन्धित गीतों का संग्रह है .
संगम साहित्य आख्यान एवं उपदेशात्मक दो श्रेणियों में वर्गीकृत है .
संगम साहित्य का वृहत् रूप आठ खण्ड या एतुतोकै जिसमें 200 कवियों की 2282 कविताएँ हैं .
एत्तुतोक के आठ ग्रंथों में तमिल प्रदेश के विभिन्न पहलू समाहित हैं .
तमिल के महाकाव्य शिल्प्पदिकारम के रचनाकार ' इलांगो आदिगल ' और मणिमैकल के रचनाकार ' सत्तनार ' थे .
' तोलकप्पियम ' ऋषि अगस्त्य के शिष्य तोलकप्पियर की रचना है . ' तोलकप्पियम ' तमिल व्याकरण की रचना है .
तोलकप्पियम के तीन खण्ड हैं और इसमें 1,16,172 सूत्र हैं .
तिरुक्कुरल तमिल भूमि की बाइवल ' के नाम से प्रसिद्ध है .
‘ मणिमैकलै ' ग्रन्थ में ललित कला का वर्णन किया गया है .
तमिल रामायण कम्बन ' द्वारा लिखी गई थी . कम्बन की रामायण में रावण को महानायक बताकर राम से श्रेष्ठ सिद्ध किया गया है .
संगम युग में आर्यों का प्रसार सुदूर दक्षिण में महर्षि अगस्त्य ने किया था .
संगम साहित्यों एवं अन्य स्रोतों - अभिलेखों में चेर , चोल , पाण्ड्य तथा क्षेत्रीय राज्यों का वर्णन किया गया है .
चेर , चोल , पाण्ड्य में सबसे पुराना साम्राज्य चेर था , चेर राज्य का प्रथम शासक उदियनजेरल था .
चेर राज्य का दूसरा शासक ' नेदुनजेरल आदन ' था उसे ' इमयवरम्बन ' भी कहा जाता था .
उदियनजेरल का दूसरा पुत्र कुट्टवन चेर राज्य का तीसरा शासक बना , जो अनेक हाथियों के नाम से विख्यात था .
कुट्टवन के बाद ' नेदुनजेरल आदन ' का पहला पुत्र , जिसे ' चेरकलंगे ' के नाम से जाना जाता था . शासक बना .
नेदुनजेरल के दूसरे पुत्र शेनगुडवन चेर राज्य का अगला शासक था , जिसके काल में कण्णगी या पत्तिनी पूजा ( आदर्श पत्नी ) की प्रथा प्रारम्भ हुई .
चेर ( केरल ) राज्य एक कुल संघ के समान था .
उदियनजेरल वंशीय शासकों के अतिरिक्त अन्य शासकों में अन्दुवन एवं उसका पुत्र शेलवक्क डुंगोवाली आदन प्रमुख थे .
संगम साहित्य में चेर राज्य के अन्य समकालीन सरदारों में ' आय ' एवं ' पारि ' का उल्लेख मिलता है .
दक्षिण में ईख की खेती का प्रारम्भ करने का श्रेय नदिमान अंजि को दिया जाता है .
चेर वंश का अन्तिम शासक कुडुको इलनजेराल इरम्पोरई था .
चोल साम्राज्य को ' चोलमण्डम ' के नाम से भी जाना जाता था , जिसकी राजधानी ' उरैयुर ' थी .
चोल शासकों का प्रमुख शासक करिकाल था , जो जले हुए पैरों वाला ' नाम से विख्यात था .
कावेरीपट्टनम चोल राज्य की दूसरी राजधानी थी .
करिकाल के बाद शेंगनान नामक शिव भक्त शासक का उल्लेख संगम साहित्य में मिलता है , जिसने लगभग 70 मन्दिरों का निर्माण कराया था .
पाण्ड्यों की राजधानी मदुरै थी , एवं यह राज्य भारतीय प्रायद्वीप के सुदूर दक्षिण एवं दक्षिणी - पूर्वी भाग में फैला हुआ था .
पहला पाण्ड्य शासक ' नेडियोन ' था .
विभिन्न संगम साहित्यों में पल्लशालई मुदुकुडुमी को पहला ऐतिहासिक पाण्ड्य राजा वर्णित किया है .
' नेदुजेलियन ' नाम का संगम शासक अत्यन्त विख्यात शासक था , जिसका काल 275 ई . माना गया है .
पाण्ड्य राज्य मोतियों के लिए प्रसिद्ध था .
शिरुयान अरुपड्डई में संगमकालीन राज्यों के पतन का उल्लेख मिलता है .
पुहार ( कावेरीपत्तनम् ) का निर्माण करिकाल ने कराया था . चेर राज्य का चिह्न ' धनुष ' था .
तिरुननक्कारासु नयनार ने सर्वप्रथम संगम शब्द का उल्लेख किया था . पाण्ड्यों का सबसे पहले उल्लेख मेगस्थनीज ने किया था .
चेर , चोल , पाण्ड्य राज्यों की शासन प्रणाली राजतन्त्रात्मक थी एवं उनका स्वरूप कुलसंघ के समान था .
संगमकालीन राजपद वंशानुगत एवं उत्तराधिकार युद्ध पर आधारित था .
संगमकालीन राजा शक्तिमान एवं निरंकुश होता था , लेकिन स्वेच्छाचारी नहीं होता था .
राजा का प्रतिवर्ष जन्मदिन मनाया जाता था जिसे पेरुनल कहा जाता था .
राजा को परामर्श देने के लिए एक परिषद् होती थी .
सर्वोच्च न्यायालय एवं परामर्शी संस्था के रूप में एक ' सभा ' राजधानी में कार्यरत होती थी .
गाँव की ' मनरम् ' नामक संस्था होती थी , जो ग्रामीण समस्याओं पर विचार करती थी .
सर्वोच्च न्यायिक अधिकारी राजा होता था .
सेना का प्रमुख सेनापति संगमकाल में ' इनाडी ' होता था .
संगमकालीन राज्यों में चतुरंगिणी सेना होती थी , घोड़े के स्थान पर रथ में बैल जोड़े जाते थे .
राजा की सुरक्षा का कार्य शस्त्रधारी महिलाएँ करती थीं .
युद्ध में मरे हुए सैनिकों के लिए स्मृति पत्थर लगाने की प्रथा थी .
संगमकाल में भूमि - कर को ' करे ' कहा जाता था . उस काल में भू - राजस्व की दर उत्पादन का 1/6 भाग था .
सीमा शुल्क को संगम या उल्गुक कहा जाता था . राजा को कर देने की प्रथा पाडू या कडमै कहलाती थी .
पट्टिनपालै नामक काव्य के कवि को चोल राजा करिकाल ने 16,00,000 सोने की मुद्राएँ भेंटस्वरूप प्रदान की थीं .
संगम साहित्य के अनुसार मरवा नामक जनजाति में गौ - हरण की प्रथा विद्यमान थी .
संगमकालीन समाज में जातियों को कुड़ि कहा जाता था .
संगमकाल में उत्कृष्ट एवं प्रतिष्ठित वर्ग ब्राह्मण था , जो राजा का कवि एवं सलाहकार होता था .
किसानों को बेल्लार एवं उसके मुखिया को ' वेलिर ' कहते थे .
धनी किसान राजा के साथ वैवाहिक सम्बन्ध , शिकार , युद्ध एवं मनोरंजन में भाग ले सकता था .
संगमकाल में व्यापारी वर्ग को मदुरै में पुलिसकर्मी , सैनिक एवं महलों का रक्षक नियुक्त किया जाता था .
संगमकाल में धनी लोग चूने एवं पत्थर के सुसज्जित मकान में एवं गरीब लोग झोपड़ियों में निवास करते थे .
संगमकालीन समाज में स्त्रियों की सम्माननीय स्थिति थी .
पतिव्रता स्त्री की तुलना कण्णगी से की जाती थी .
विधवाओं को सिर मुंड़ाना पड़ता था एवं प्रतिबन्धित जीवन जीने को बाध्य होना पड़ता था .
संगमकाल में गणिकाओं एवं वेश्याओं का भी अस्तित्व था .
व्यभिचारी स्त्री को पाप से मुक्त होने के लिए कन्याकुमारी में स्नान करना पड़ता था .
संगमकाल में आठ प्रकार के विवाहों का प्रचलन था . संगमकालीन लोग आभूषण एवं रेशमी तथा सूती वस्त्र पहनते थे .
तमिलवासी उच्चवर्ग मद्यपान ( ताड़ी एवं गन्ने की रस की शराब ) पुरुष एवं स्त्री दोनों पीते थे .
संगमकाल में मार्ग एवं देशी नृत्य की दो शैलियाँ थीं .
संगमकालीन तमिलवासी विभिन्न अंधविश्वासों को मानते थे .
उनके अनुसार बरगद के पेड़ में भगवान् का निवास होता था .
दाह संस्कार , दफनाने एवं मृतकों का दाह संस्कार करने के बाद स्मृति पत्थर या समाधि बनाने का प्रचलन था .
कृषि कार्य निम्नवर्गीय महिलाएँ सँभालती थीं , जिसे कदैसियर कहा जाता था .
चेर राज्य कटहल , कालीमिर्च एवं हल्दी के लिए विख्यात था . संगमकाल में आयात निर्यात एवं विदेशी व्यापार से तमिल राज्यों की अर्थव्यवस्था सुदृढ़ हो चुकी थी .
संगमकाल में विदेशी व्यापार का केन्द्रीय बन्दरगाह ' कावेरीपत्तनम् ' था .
तमिल प्रदेश के धर्म में ऋषि अगस्त्य एवं कौण्डिण्य का प्रभाव परिलक्षित होता था .
संगमकाल का प्रमुख देवता मुरुगन या सुब्रह्मण्यम् माना जाता था जिसका प्रतियोगी देवता त्योमल था
वरुण , कुवेर , इन्द्र यम को संगमकाल में यम कहा जाता था .
संगमकाल में ' कुर्रम ' मृत्यु का देवता एवं ' कन्नगी ' कौमार्य की देवी मानी जाती थी .
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