हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश पिनाकी चंद्र घोष भारत के पहले लोकपाल होगे । चयन समिति ने लोकपाल अध्यक्ष और आठ सदस्यों के नाम तय किए है । जस्टिस घोष वर्तमान में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सदस्य हैं । प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यों की चयन समिति द्वारा लोकपाल के सदस्यों का चयन किया जायेगा । चयन समिति में शामिल सदस्य - इस चयन समिति में प्रधानमंत्री , लोकसभा अध्यक्ष , भारत के मुख्य न्यायाधीश लोकसभा विपक्ष के नेता व एक - कानून विद् शामिल होंगे ।
❍ ओम्बड्समैन का तात्पर्य उस संस्था से है जो कुप्रशासन से नागरिकों की रक्षा करती है । ओम्बड्समैन नामक यही संस्था भारत में लोकपाल या लोकायुक्त कहलाती है । इसकी स्थापना सर्वप्रथम सन् 1809 में स्वीडन में हुई । स्कन्डिनेवियन देशों के अतिरिक्त यह संस्था न्यूजीलैंड ब्रिटेन कनाडा तथा अमेरिका में भी कार्यरत है । ओम्बड्समैन एक निष्पक्ष तथा कार्यकुशल संस्था मानी जाती है , क्योंकि यह स्वतंत्रतापूर्वक किसी मुद्दे की जाँच कर सरकार को कार्यवाही करने का परामर्श देती है ।
भारत में सन 1963 में सर्वप्रथम राजस्थान प्रशासनिक सुधार समिति ( हरिशचंद्र माथुर समिति ) ने यह सुझाव दिया था कि ओम्बड्समैन जैसी संस्था भारत में भी होनी चाहिए । प्रशासनिक सुधार आयोग ( प्रथम ) ने भी अपने जन अभियोग निराकरण की समस्याएँ ( 1966 ) नामक प्रतिवेदन में यह इंगित किया था कि केन्द्रीय स्तर पर लोकपाल तथा राज्य स्तर पर लोकयुक्त संस्थाओं की स्थापना की जानी चाहिए । आयोग की सिफारिश के आधार पर सर्वप्रथम मई 1968 को लोकपाल तथा लोकायुक्त विधेयक संसद में प्रस्तुत किया गया ।
✺ लोकपाल तथा लोकायुक्त
❍ लोकपाल - लोकपाल मंत्रियों , केंद्र तथा राज्य के सचिवों से संबंधित शिकायतों को देखता है ।
❍ लोकायुक्त -
✺ लोकपाल व लोकायुक्त के कार्य
❍ यह दोनों स्वतंत्र व निष्पक्षता शिकायत निवारण संस्था हैं ।
❍ इन की जांच सेवा कार्यवाही गुप्त रूप से होती है । उनकी नियुक्ति गैर राजनीतिक है ।
❍ यह अपने विवेकानुसार क्षेत्र में व्याप्त अन्याय , भ्रष्टाचार से संबंधित मामले देखते हैं ।
❍ इनकी कार्यवाही में न्यायिक हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता है ।
✺ लोकपाल का अधिकार क्षेत्र
❍ लोकपाल के पास सेना को छोड़कर प्रधानमंत्री से लेकर चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी तक किसी भी जन सेवक ( किसी भी स्तर का सरकारी अधिकारी , मंत्री , पंचायत सदस्य आदि ) के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायत की सुनवाई का अधिकार होगा । साथ ही वह इन सभी की संपत्ति को कुर्क भी कर सकता है ।
❍ विशेष परिस्थितियों में लोकपाल को किसी व्यक्ति के खिलाफ अदालती ट्रायल चलाने और 2 लाख रुपये तक का जुर्माना लगाने का भी अधिकार होगा ।
❍ भारतीय प्रशासनिक सुधार आयोग ( 1966 - 70 ) की सिफारिश पर नागरिकों की समस्याओं के समाधान हेतु इन दोनों की नियुक्ति हुई थी ।
❍ इनकी स्थापना स्कैंडिनेवियन देशों के इंस्टिट्यूट और न्यूजीलैंड के पार्लियामेंट्री कमीशन ऑफ इन्वेस्टिगेशन की तर्ज पर की गई थी ।
✺ भारत एवं स्वीडन के ओम्बड्समैन में अंतर
1 . स्वीडन में लोकपाल संवैधानिक तथा प्रभावी संस्था है जबकि , भारत में राज्यों के लोकायुक्त वैधानिक तथा अल्प प्रभावी संस्थाएँ है ।
2 . स्वीडन में प्रधानमंत्री एवं अन्य मंत्रियों के विरुद्ध जाँच नहीं कर सकता है जबकि , भारत में मंत्रियों तथा कुछ राज्यों में मुख्यमंत्रियों के विरुद्ध जाँच कर सकता है ।
3 . स्वीडन में न्यायाधीश सैनिक प्रशासन स्थानीय संस्थाओं सहित समस्त लोकसेवक जाँच के दायरे में हैं जबकि , भारत में केवल मंत्रियों और लोकसेवकों के विरुद्ध जाँच की जा सकती है ।
4 . स्वीडन में लोकपाल प्रेस को जानकारी दे सकता है जबकि भारत में प्रेस को जानकारी नहीं दी जाती है ।
5 . स्वीडन में निर्णित प्रकरण की पत्रावली कोई भी देख सकता है जबकि , भारत में प्रशासनिक गोपनीयता के कारण फाइल नहीं दिखाई जाती है ।
✺ जन लोकपाल विधेयक
❍ जन लोकपाल बिल भारत में नागरिक समाज द्वारा प्रस्तावित भ्रष्टाचार निरोधी बिल का मसौदा है । यह सशक्त जन लोकपाल के स्थापना का प्रावधान करता है जो चुनाव आयुक्त की तरह स्वतंत्र संस्था होगी ।
✺ जन लोकपाल बिल के मुख्य प्रावधान
❍ इस नियम के अनुसार केंद्र में लोकपाल और राज्य में लोकायुक्त का गठन होगा ।
❍ यह संस्था निर्वाचन आयोग और उच्चतम न्यायालय की तरह सरकार से स्वतंत्र होगी ।
❍ किसी भी मुकदमें की जांच 3 महीने के भीतर तथा सुनवाई अगले 6 महीने में पूरी होगी । इसके अंतर्गत भ्रष्ट नेता , अधिकारी या न्यायाधीश को 1 साल के भीतर जेल भेजा जाएगा ।
❍ भ्रष्टाचार के कारण से सरकार को जो नुकसान हुआ है अपराध साबित होने पर उसे दोषी से वसूला जाएगा ।
❍ अगर किसी नागरिक का काम तय समय में नहीं होता तो लोकपाल दोषी अधिकारी पर जुर्माना लगाएगा जो शिकायतकर्ता को क्षतिपूर्ति के तौर पर मिलेगा ।
❍ लोकपाल के सदस्यों का चयन न्यायाधीश , नागरिक और संवैधानिक संस्थाएं मिलकर करेंगी । नेताओं का कोई हस्तक्षेप नहीं होगा ।
❍ लोकपाल / लोक आयुक्तों का काम पूरी तरह पारदर्शी होगा । लोकपाल के किसी भी कर्मचारी के खिलाफ शिकायत आने पर उसकी जांच 2 महीने में पूरी कर उसे बर्खास्त कर दिया जाएगा ।
❍ सीवीसी , विजिलेंस विभाग और सीबीआई के एंटि - करप्शन विभाग का लोकपाल में विलय हो जाएगा ।
❍ लोकपाल को किसी भी भ्रष्ट जज , नेता या अफसर के खिलाफ जांच करने और मुकदमा चलाने के लिए पूरी शक्ति और व्यवस्था होगी ।
सरकारी लोकपाल के पास भ्रष्टाचार के मामलों पर स्वयं या आम लोगों की शिकायत पर सीधे कार्रवाई शुरू करने का अधिकार नहीं होगा । सांसदों से संबंधित मामलों में आम लोगों को अपनी शिकायतें राज्यसभा के सभापति या लोकसभा अध्यक्ष को भेजनी पड़ेगी । वहीं प्रस्तावित जनलोकपाल बिल के तहत लोकपाल खुद किसी भी मामले की जांच शुरू करने का अधिकार रखता है । इसमें किसी से जांच के लिए अनुमति लेने की जरूरत नहीं है ।
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