राष्ट्रपति भवन और संसद भवन का निर्माण कब हुआ था ?
वर्ष 1911 में यह घोषणा की गई थी कि भारत की राजधानी कलकत्ता से दिल्ली ले जाई जाएगी । मशहूर ब्रितानी आर्किटेक्ट सर एडविन लैंडसीयर लुटियंस ने दिल्ली की ज्यादातर नई इमारतों की रूपरेखा तैयार की । इसके लिए इन्होंने सर हरबर्ट बेकर की मदद ली । जिसे आज हम राष्ट्रपति भवन कहते हैं , उसे तब वाइसरॉयस हाउस कहा जाता था । इसके नक्शे वर्ष 1912 में बन गए थे , लेकिन यह इमारत वर्ष 1931 में पूरी हो पाई । संसद भवन की इमारत वर्ष 1927 में बनकर तैयार हुई ।
दुनिया में सबसे पहले कपड़े किस जगह पर पहने गए ?
पुरातत्ववेत्ताओं और मानव विज्ञानियों के अनुसार सबसे पहले परिधान के रूप में घास - फूस , पत्तियों , जानवरों की खाल और चमड़े का इस्तेमाल हुआ था । दिक्कत यह है कि इस तरह की पुरातत्व सामग्री मिलती नहीं है । पत्थर , हड्डियों और धातुओं के अवशेष मिल जाते हैं , जिनसे निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं । लेकिन परिधान बचे नहीं हैं । पुरातत्ववेत्ताओं को रूस की गुफाओं से हाथी दांत की बनी सुइयां मिली हैं । मानव विज्ञानियों ने कपड़ों में मिलने वाली जुओं का जेनेटिक विश्लेषण किया है , जिनके अनुसार , इंसान ने एक लाख सात हजार साल पहले शरीर ढंकना शुरू किया होगा ।
पोलर लाइट्स क्या हैं और इनका रहस्य क्या है ?
ध्रुवीय ज्योति ( Aurora ) या मेरूज्योति वह चमक है , जो ध्रुवीय क्षेत्रों के वायुमंडल के ऊपरी भाग में दिखाई देती है । उत्तरी अक्षांशों की ध्रुवीय ज्योति को सुमेरू ज्योति ( Aurora borealis ) या उत्तरी ध्रुवीय ज्योति कहते हैं और दक्षिणी अक्षांशों की ध्रुवीय ज्योति को कुमेरू ज्योति ( Aurora australis ) या दक्षिणी ध्रुवीय ज्योति कहते हैं । यह रोशनी वायुमंडल के ऊपरी हिस्से यानी थर्मोस्फीयर में ऊर्जा से चार्ल्ड कणों के टकराने के कारण पैदा होती है । ये कण मैग्नेटोस्फीयर , सौर पवन से तैयार होते हैं । धरती का चुंबकीय घेरा इन्हें वायुमंडल में भेजता है । ज्यादातर ज्योति धरती के चुंबकीय ध्रुव के 10 से 20 डिग्री के बैंड पर होती हैं । इसे ओरल जोन कहा जाता है । इन ज्योतियों का भी वर्गीकरण कई तरह से किया जाता है ।
व्हाइट कॉलर जॉब क्या है ?
व्हाइट कॉलर शब्द एक अमरीकी लेखक अपटॉन सिंक्लेयर ने 1930 के दशक में गढ़ा । औद्योगिकीकरण के साथ शारीरिक श्रम करने वाले फैक्ट्री मजदूरों की यूनिफॉर्म डेनिम के मोटे कपड़े की ड्रेस हो गई । शारीरिक श्रम न करने वाले कर्मचारी सफेद कमीज पहनते थे । इसी तरह से तब खदानों में काम करने वाले ब्लैक कॉलर कहलाते थे । सूचना प्रौद्योगिकी से जुड़े कर्मचारियों के लिए अब ग्रे कॉलर शब्द इस्तेमाल होने लगा है ।
ट्रैफिक सिग्नल की शुरुआत सबसे पहले कहां हुई ?
ट्रैफिक सिग्नल की शुरुआत रेलवे से हुई है । रेलगाड़ियों को एक ही ट्रैक पर चलाने के लिए बहुत जरूरी था कि उनके लिए सिग्नलिंग की व्यवस्था की जाए । 10 दिसंबर 1868 को लंदन में ब्रिटिश संसद भवन के सामने रेलवे इंजीनियर जे पी नाइट ने ट्रैफिक लाइट लगाई , लेकिन यह व्यवस्था नहीं चली । सड़कों पर व्यवस्थित रूप से ट्रैफिक सिग्नल 1912 में अमरीका की सॉल्ट लेक सिटी यूटा में शुरू किए गए । सड़कों पर बढ़ते यातायात के साथ यह व्यवस्था दूसरे शहरों में भी शुरू हुई ।
उल्लू रात में कैसे देखता है ?
उल्लू ऐसा जंतु है , जो बहुत कम रोशनी में भी चीजों को आसानी से देख लेता है । इसकी अधिकतर प्रजातियां रात में देखने की क्षमता रखने वाली हैं । इनकी आंखों में कई प्रकार की अनुकूल क्षमता होती है । खासतौर पर आंखों का आकार बाकी पक्षियों की तुलना में काफी बड़ा होता है । इसके रेटिना में प्रकाश संवेदनशील कोशिकाएं होती हैं । कॉर्निया भी बड़ा होता है पर वे दूरदर्शी होते हैं । इस कारण पास की चीजें अच्छी तरह से देख नहीं पाते ।
दुनिया का सबसे छोटा हवाईअड्डा कहां है ?
कैरीबियन सागर के द्वीप सबा का " हवाईअड्डा दुनिया का सबसे छोटा हवाईअड्डा माना जाता है । इसका रनवे 400 मीटर लंबा है । इस हवाईअड्डे पर जेट विमान नहीं उतरते , क्योंकि उनके लिए लंबा रनवे चाहिए होता है ।
एमआरपी अधिकतम खुदरा मूल्य तय करने के मानक क्या हैं ?
भारत के उपभोक्ता सामग्री ( उत्पादन एवं अधिकतम मूल्य का अनिवार्य मुद्रण ) अधिनियम 2006 के अनुसार , देश में बिकने वाली उपभोक्ता सामग्री का अधिकतम मूल्य पैकट पर छपा होना चाहिए । दुनिया के तमाम देशों में इस आशय के अपने - अपने कानून हैं । इनका उद्देश्य एक ओर उपभोक्ता के अधिकारों की रक्षा करना है , वहीं दूसरी ओर यह बड़े और छोटे व्यापारियों के बीच की प्रतियोगिता में छोटे व्यापारियों के हितों की भी रक्षा करता है । जब इस तरह की व्यवस्था नहीं थी , तब बड़े व्यापारी अपनी मर्जी से चीजों की कीमतें तय कर देते थे । अब उत्पादक पर यह जिम्मेदारी है कि वह अपनी उत्पादन लागत के अलावा खुदरा व्यापारी तक उस वस्तु के जाने तक होने वाली मूल्य वृद्धि , माल भाड़े , चुंगी और अन्य टैक्य एवं मुनाफे को जोड़कर वाजिब कीमत तय कर दे । दुकानदार उससे अधिक कीमत पर उसे नहीं बेचेगा । यदि विक्रेता अपनी ओर से कुछ डिस्काउंट देगा तो ग्राहक को यह पता रहेगा कि उसे कितने प्रतिशत की छूट दी गई है ।
इंजेक्शन से दवाई देना पहली बार कब शुरू किया गया था ?
शरीर में चोट लगने पर दवाई सीधे लगाने की परंपरा तो काफी पुराने समय से चली आ रही है । शरीर में अफीम रगड़कर या शरीर के कटे हुए हिस्से पर अफीम लगाने से काफी राहत मिल सकती है । ऐसा विचार भी 15वीं - 16वीं शताब्दी में बन गया था । अफीम से कई रोगों का इलाज किया जाने लगा लेकिन डॉक्टरों को यह लगता था कि अफीम खिलाने से मरीज को इसकी लत लग सकती है । इसलिए इसे शरीर में प्रवेश करवाने का कोई और नया तरीका खोजा जाए । स्थानीय एनीस्थीसिया के रूप में भी मार्फीन आदि का इस्तेमाल होने लगा था । ऐसी सुई , जिसके भीतर खोखला बना हो , 16 - 17वीं शताब्दी से वह इस्तेमाल होने लगी थी , पर सबसे पहले वर्ष 1851 में फ्रांसिसी वैज्ञानिक चार्ल्स गैब्रियल प्रावाज ने हाइपोडर्मिक नीडल और सीरिंज का आविष्कार किया । इसमें महीन सुई और सीरिंज होती थी । तब से अब तक इंजेक्शन देने की इस प्रणाली और संबंधित उपकरणों में कई अहम सुधार किए जा चुके हैं ।
दुनिया में कितनी भाषाएं हैं ?
एथनोलॉग कैटलॉग के अनुसार , 7102 जीवंत भाषाएं हैं । इनमें से तकरीबन दो हजार भाषाएं तो ऐसी हैं , जिन्हें बोलने वाले लोगों की संख्या एक हजार से भी कम है ।