मराठा साम्राज्य का संस्थापक शिवाजी थे ।
शिवाजी का जन्म 6 अप्रैल , 1627 ई . में शिवनेर दुर्ग ( जुन्नार समीप ) में हुआ था ।
शिवाजी के पिता का नाम शाहजी भोसले एवं माता का नाम जीजाबाई था ।
शाहजी भोंसले की दूसरी पत्नी का नाम तुकाबाई मोहिते था ।
शिवाजी के गुरु कोंडदेव थे । आध्यात्मिक क्षेत्र में शिवाजी के आचरण पर गुरु रामदास का काफी प्रभाव था ।
शिवाजी का विवाह साइबाई निम्बालकर से 1640 ई . में हुआ ।
शाहजी ने शिवाजी को पूना की जागीर प्रदान कर स्वयं बीजापुर रियासत में नौकरी कर ली ।
अपने सैन्य अभियान के अन्तर्गत 1644 ई . में शिवाजी ने सर्वप्रथम बीजापुर के तोरण नामक पहाड़ी किले पर अधिकार किया ।
1656 ई . में शिवाजी ने रायगढ़ को अपनी राजधानी बनाया ।
बीजापुर के सुल्तान ने अपने योग्य सेनापति अफजल खाँ को सितम्बर , 1665 ई . में शिवाजी को पराजित करने के लिए भेजा । शिवाजी ने अफजल खाँ की हत्या कर दी ।
शिवाजी ने सूरत को 1664 ई . एवं 1670 ई . में लूटा ।
पुरन्दर की संधि 1665 ई . में महाराजा जयसिंह एवं शिवाजी के मध्य सम्पन्न हुई ।
1672 ई . में शिवाजी ने पन्हाला दुर्ग को बीजापुर से छीना ।
5 जून , 1674 ई . को शिवाजी ने राजगढ़ में वाराणसी ( काशी ) के प्रसिद्ध विद्वान श्री गंगाभट द्वारा अपना राज्याभिषेक करवाया । मूल रूप से गंगाभट्ट महाराष्ट्र का एक सम्मानित ब्राह्मण था , जो लंबे समय से वाराणसी में रह रहा था ।
महाराष्ट्र के प्रमुख संत
1. ज्ञानदेव या ज्ञानेश्वर ( 1275 - 1296 ई . ) महाराष्ट्र में भक्ति आदोलन के जनक , मराठी भाषा और साहित्य के संस्थापक , भगवतगीता पर भावार्थदीपिका नामक बृहत टीका लिखी , जिसे सामान्य रूप से ज्ञानेश्वरी के नाम से जाना जाता है ।
2 . नामदेव ( 1270 - 1350 ई . ) इनके आराध्य देव पंढरपुर के बिठोबा या विट्ठल ( विष्णु के रूप ) थे । बिठोबा या विट्ठल की उपासना को वरकरी संप्रदाय के नाम से जाना जाता है , जिसकी स्थापना नामदेव ने की थी । इनमें कुछ पद गुरुग्रन्थ साहिब में संकलित है ।
3 . एकनाथ ( 1533 - 1599 ई . ) इन्होंने रामायण पर भावार्थ रामायण नामक टीका लिखी ।
4 . तुकाराम ( 1598 - 1650 ई . ) इन्होंने भक्तिपरक कविताएँ लिखी जिन्हें अभंग कहा जाता है । ये अभंग भक्तिपरक काव्य के ज्योतिपुंज है ।
5 . रामदास ( 1608 - 1681 ई . ) : महाराष्ट्र के अंतिम महान संत कवि । दशबोध उनकी रचनाओं और उपदेशों का संकलन है । शिवाजी को औरंगजेब ने मई , 1666 ई . में जयपुर भवन में कैद कर लिया , जहाँ से वे 16 अगस्त , 1666 ई . में भाग निकले ।
मात्र 53 वर्ष की आयु में 3 अप्रैल , 1680 ई . को शिवाजी की मृत्यु हो गयी ।
शिवाजी के मंत्रीमंडल को अष्टप्रधान कहा जाता था । अष्टप्रधान में पेशवा का पद सर्वाधिक महत्वपूर्ण एवं सम्मान का होता था ।
शिवाजी ने दरबार में मराठी को भाषा के रूप में प्रयोग किया ।
शिवाजी की सेना तीन महत्वपूर्ण भागों में विभक्त थी -
1 . पागा सेना नियमित घुड़सवार सैनिक ।
2. सिलहदार अस्थायी घुड़सवार सैनिक ।
3 . पैदल पैदल सेना ।
अष्टप्रधान
प्रधानमंत्री -राज्य का प्रशासन एवं अर्थव्यवस्था की देख रेख
सरी - ए - नौबत ( सेनापति )- सैन्य प्रधान
अमात्य ( राजस्व मंत्री )- आय - व्यय का लेखा - जोखा
वाकयानवीस सूचना , गुप्तचर एवं संधि - विग्रह के विभागों का अध्यक्ष
चिटनिस राजकीय पत्रों को पढ़कर उसकी भाषा - शैली को देखना ।
सुमन्त विदेश मंत्री
पंडित राव धार्मिक कार्यों के लिए तिथि का निर्धारण
न्यायाधीश न्याय विभाग का प्रधान
शिवाजी की कर - व्यवस्था मलिक अम्बर की कर व्यवस्था पर आधारित थी । शिवाजी ने रस्सी द्वारा माप की व्यवस्था के स्थान पर काठी एवं मानक छड़ी के प्रयोग को आरंभ किया ।
शिवाजी के समय कुल उपज का 33 % भाग राजस्व के रूप में वसूला जाता था , जो बढ़ कर 40 % हो गया था ।
चौथ एवं सरदेशमुखी नामक कर शिवाजी के द्वारा लगाया गया । चौथ किसी एक क्षेत्र को बर्बाद न करने के बदले दी जाने वाली रकम को कहा गया है । सरदेशमुखी - इसके हक का दावा करके शिवाजी स्वयं को सर्वश्रेष्ठ देशमुख प्रस्तुत करना चाहते थे ।
नोट - शिवाजी ने मुगल व्यापारिक केन्द्र सूरत को दो बार ( 1664 एवं 1670 ई. ) में लूटा
शिवाजी के उत्तराधिकारी
शिवाजी का उत्तराधिकारी शम्भाजी था । शम्भाजी ने उज्जैन के हिन्दी एवं संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान कवि कलश को अपना सलाहकार नियुक्त किया ।
मार्च , 1689 ई . को मुगल सेनापति मखर्रब खाँ ने संगमेश्वर में छिपे हुए शम्भाजी एवं कवि कलश को गिरफ्तार कर लिया और उसकी हत्या कर दी ।
शम्भाजी के बाद 1689 ई . में राजाराम को नए छत्रपति के रूप में राज्याभिषेक किया गया ।
शिव जी के किले की सुरक्षा में नियुक्ताधिकारी
हवलदार -किले की आंतरिक व्यवस्था की देख - रेख ।
सरेनौबत - किले की सेना का नेतृत्व |
सवनिस - किले की अर्थव्यवस्था पत्र व्यवहार एवं भंडार की देख - रेख ।
राजाराम ने अपनी दूसरी राजधानी सतारा को बनाया ।
राजाराम मुगलों से संघर्ष करता हुआ 2 मार्च , 1700 ई . में मारा गया ।
राजाराम की मृत्यु के बाद उसकी विधवा पत्नी ताराबाई अपने 4 वर्षीय पुत्र शिवाजी - II का राज्याभिषेक करवाकर मराठा साम्राज्य की वास्तविक संरक्षिका बन गई ।
1707 ई . में औरंगजेब की मत्य के बाद शम्भाजी के पुत्र साहू ( जो औरंगजेब के कब्जे में था ) भोपाल के निकट के मुगल शिविर से वापस महाराष्ट्र आया ।
साहू एवं ताराबाई के बीच 1707 ई . में खेड़ा का युद्ध हुआ , जिसमें साहू विजयी हुआ ।
साहू ने 22 जनवरी , 1708 ई . को सतारा में अपना राज्याभिषेक करवाया ।
साहू के नेतृत्व में नवीन मराठा साम्राज्यवाद के प्रवर्तक पेशवा लोग थे , जो साहू के पैतृक प्रधानमंत्री थे । पेशवा पद पहले पेशवा के साथ ही वंशानुगत हो गया था । पेशवा पुणे में रहता था ।
1713 ई . में साहू ने बालाजी विश्वनाथ की पेशवा बनाया । इनकी मृत्यु 1720 ई . में हुई । इसके बाद पेशवा बाजीराव प्रथम हुए ।
पेशवा बाजीराव प्रथम ने मुगल साम्राज्य की कमजोर हो रही स्थिति का फायदा उठाने के लिए साहू को उत्साहित करते हुए कहा कि आओ , हम इस पुराने वृक्ष के खोखले तने पर प्रहार करें , शाखाएँ तो स्वयं गिर जायेगी , हमारे प्रयत्नों से मराठा पताका कृष्णा नदी से अटक तक फहराने लगेगी । उत्तर में साहू ने कहा - निश्चित रूप से ही आप इसे हिमालय के पार गाड़ देंगे , निःसन्देह आप योग्य पिता के योग्य पुत्र हैं ।
पालखेड़ा का युद्ध 7 मार्च , 1728 ई . बाजीराव प्रथम एवं निजामुल मुल्क के बीच हुआ जिसमें निजाम की हार हुई । निजाम के साथ मुंगी शिवागांव की संधि हुई ।
दिल्ली पर आक्रमण करने वाला प्रथम पेशवा बाजीराव प्रथम था , जिसने 29 मार्च , 1737 ई . को दिल्ली पर धावा बोला था । उस समय मुगल बादशाह मुहम्मदशाह दिल्ली छोड़ने के लिए तैयार हो गया था ।
बाजीराव प्रथम मस्तानी नामक महिला से संबंध होने के कारण चर्चित रहा था ।
1740 ई . में बाजीराव प्रथम की मृत्यु हो गयी । बाजीराव प्रथम की मृत्यु के बाद बालाजी बाजीराव 1740 ई . में पेशवा बना ।
1750 ई . में संगोला संधि के बाद पेशवा के हाथ में सारे अधिकार सुरक्षित हो गए ।
बालाजी बाजीराव को नाना साहब के नाम से भी जाना जाता था । झलकी की संधि हैदराबाद के निजाम एवं बालाजी बाजीराव के मध्य हुई । बालाजी बाजीराव के समय में ही पानीपत का तृतीय युद्ध ( 14 जनवरी , 1761 ई . ) हुआ , जिसमें मराठों की हार हुई । इस हार को नहीं सह पाने के कारण बालाजी की मृत्यु 1761 ई . में हो गयी ।
माधवराव नारायण प्रथम 1761 ई . में पेशवा बना । इसने मराठों की खोयी हुई प्रतिष्ठा को पुनः प्राप्त करने का प्रयास किया ।
माधवराव ने ईस्ट इंडिया कंपनी की पेंशन पर रह रहे मुगल बादशाह शाह आलम - II को पुनः दिल्ली की गद्दी पर बैठाया ।
मुगल बादशाह अब मराठों का पेंशनभोगी बन गया ।
पेशवा नारायण राव ( 1772 - 73 ई . ) की हत्या उसके चाचा रघुनाथ राव के द्वारा कर दी गई ।
पेशवा माधवराव नारायण - II की अल्पायु के कारण मराठा राज्य की देख - रेख बारहभाई सभा नाम की 12 सदस्यों की एक परिषद् करती थी । इस परिषद् के दो महत्वपूर्ण सदस्य थे - महादजी सिंधिया एवं नाना फड़नबीस । नाना फड़नवीस का मूल नाम बालाजी जनार्दन भानु था । अंग्रेज जेम्स ग्रांट डफ ने इन्हें मराठों का मैकियावेली कहा था ।
अंतिम पेशवा राघोवा का पुत्र बाजीराव - II था , जो अंग्रेजों की सहायता से पेशवा बना था । मराठों के पतन में सर्वाधिक योगदान इसी का था । यह सहायक संधि स्वीकार करने वाला प्रथम मराठा सरदार था ।
1776 ई . में पुरन्दर की संधि हुई । इसके तहत कंपनी ने रघुनाथ राव के समर्थन को वापस ले लिया ।
प्रथम आंग्ल - मराठा युद्ध- प्रथम युद्ध 1782 ई . में सालबाई संधि के साथ खत्म हुआ ।
द्वितीय आंग्ल - मराठा युद्ध - 1803 - 05 ई . में हुआ । इसमें भोसले ( नागपुर ) ने अंग्रेजों को चुनौती दी । इसके फलस्वरूप 7 सितम्बर , 1803 ई . को देवगाँव की संधि हुई ।
तृतीय आंग्ल - मराठा युद्ध - 1817 - 19 ई . में हुआ । इस युद्ध के बाद मराठा शक्ति और पेशवा के वंशानुगत पद को समाप्त कर दिया गया ।
पेशवा बाजीराव - II ने कोरेगाँव एवं अष्टी के युद्ध में हारने के बाद फरवरी , 1818 ई . में मेल्कम के सम्मुख आत्मसमर्पण कर दिया । अंग्रेजों ने पेशवा के पद को समाप्त कर बाजीराव - II को पुणे से हटाकर कानपुर के निकट बिठूर में पेंशन पर जीने के लिए भेज दिया , जहाँ 1853 ई . में इसकी मृत्यु हो गयी ।
अंग्रेज - मराठा संघर्ष के अन्तर्गत होने वाली प्रमुख संधियाँ
संधियाँ | वर्ष |
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सूरत की संधि | 1775 |
पुरन्दर की संधि | 1776 |
बड़गाँव की संधि | 1779 |
सालाबाई की संधि | 1782 |
बसीन की संधि | 1802 |
देवगाँव की संधि | 1803 |
सुर्जी अर्जुनगाँव की संधि | 1803 |
राजापुर घाट की संधि | 1804 |
नागपुर की संधि | 1816 |
ग्वालियर की संधि | 1817 |
पूना की संधि | 1817 |
मंदसौर की संधि | 1818 |